सन्दर्भ:
हाल ही में भारतीय सरकार ने भारत में साइबर अपराध पर प्रभावी कार्रवाई करते हुए, भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) को मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (PMLA), 2002 के तहत शामिल कर लिया है। इस पहल का उद्देश्य साइबर अपराध और वित्तीय जांच एजेंसियों के बीच समन्वय को मजबूत करना है, ताकि डिजिटल अपराध और मनी लॉन्ड्रिंग के बीच बढ़ते आपसी संबंधों पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सके।
इस निर्णय की प्रमुख विशेषताएँ:
- I4C को सशक्त बनाना: अब I4C को पीएमएलए की धारा 66 के अंतर्गत यह अधिकार प्राप्त हो गया है कि वह प्रवर्तन निदेशालय (ED) और अन्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ आवश्यक सूचनाएँ साझा कर सके और उनसे जानकारी प्राप्त भी कर सके। इससे साइबर अपराधों से जुड़े वित्तीय मामलों की जांच तेज़, समन्वित और अधिक प्रभावी ढंग से हो सकेगी।
- धारा 66 (सूचना का प्रकटीकरण): प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक या उनके द्वारा नामित किसी अधिकारी द्वारा, किसी भी संबद्ध एजेंसी के साथ कार्रवाई हेतु जानकारी साझा करने के सम्बन्ध में वर्णित है।
- धारा 66 (सूचना का प्रकटीकरण): प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक या उनके द्वारा नामित किसी अधिकारी द्वारा, किसी भी संबद्ध एजेंसी के साथ कार्रवाई हेतु जानकारी साझा करने के सम्बन्ध में वर्णित है।
- पैसे के लेन-देन का पता लगाना: साइबर अपराधी आमतौर पर अवैध धन को डिजिटल माध्यमों के द्वारा छिपाने के लिए मनी लॉन्ड्रिंग का उपयोग करते हैं। I4C को पीएमएलए के तहत शामिल करने से सरकार इन धन-प्रवाहों को ट्रैक कर सकेगी, साइबर धोखाधड़ी से जुड़े वित्तीय नेटवर्क को ख़त्म कर सकेगी और इन गतिविधियों के पीछे सक्रिय अपराधी तक पहुँच सकेगी।
- एजेंसियों के बीच समन्वय में सुधार: अब I4C और प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसियों के बीच समन्वय और अधिक मजबूत होगा। इससे उन मामलों की जांच भी सही से होगी जो मामले साइबर अपराध और वित्तीय धोखाधड़ी से आपस में जुड़े होते हैं। यह कदम साइबर और वित्तीय जांच प्रक्रियाओं के बीच मौजूदा अंतर को कम करने में सहायक होगा।
- साइबर अपराध पर कड़ी कार्रवाई: पीएमएलए के तहत मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित डेटा तक पहुँच मिलने से I4C को साइबर अपराधों की गहराई से और सटीक जांच करने में मदद मिलेगी। इससे अपराधियों पर ठोस कार्रवाई की जा सकेगी और देश-विदेश में सक्रिय संगठित ऑनलाइन ठगी नेटवर्कों को ख़त्म करने में उल्लेखनीय सफलता मिल सकती है।
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के बारे में:
भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) गृह मंत्रालय की एक पहल है, जिसे 2018 में ₹415.86 करोड़ की लागत से शुरू किया गया था। इसका औपचारिक उद्घाटन जनवरी 2020 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा नई दिल्ली में किया गया था।
यह भारत में साइबर अपराध से निपटने वाली मुख्य एजेंसी के रूप में कार्य करता है। इसके अंतर्गत कई प्रमुख घटक शामिल हैं:
- नेशनल साइबरक्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल: आम जनता के लिए साइबर अपराध की रिपोर्टिंग हेतु पोर्टल।
- नेशनल साइबरक्राइम फॉरेंसिक लैब (NCFL): डिजिटल सबूतों की जाँच के लिए प्रयोगशाला।
- नेशनल साइबरक्राइम ट्रेनिंग सेंटर (NCTC): देशभर की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को साइबर अपराध की पहचान, जांच और नियंत्रण संबंधी प्रशिक्षण प्रदान करने वाला विशेष प्रशिक्षण संस्थान।
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ:
- 2020: राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से 59 चीनी मोबाइल ऐप्स पर प्रतिबंध की सिफारिश में योगदान।
- 2023: गूगल के डिजीकवच प्रोजेक्ट के साथ साझेदारी कर ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी से लोगों को सुरक्षा देना।
निष्कर्ष:
जैसे-जैसे साइबर अपराध अधिक जटिल और वित्तीय रूप से प्रेरित होते जा रहे हैं, ऐसे में I4C को मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक कानून (PMLA) के तहत लाना सरकार की एक समयानुकूल और रणनीतिक पहल है। इस कदम से न केवल साइबर अपराधों की निगरानी और जांच को मजबूती मिलेगी, बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े डिजिटल अपराधों पर भी प्रभावी नियंत्रण संभव होगा। साइबर सुरक्षा और वित्तीय पारदर्शिता को एक साथ जोड़कर भारत ने डिजिटल अपराधों से निपटने की दिशा में एक ठोस और दूरदर्शी कदम उठाया है।