संदर्भ:
केरल सरकार ने 16 सितंबर से 45-दिन की एक विशेष योजना की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों और वन-सीमावर्ती इलाकों में बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना है। यह पहल वन विभाग के नेतृत्व में तीन चरणों में लागू की जाएगी। योजना का मुख्य लक्ष्य संघर्ष की मूल वजहों की पहचान कर उनका समाधान करना और प्रभावित समुदायों को त्वरित राहत प्रदान करना है।
45 दिवसीय शमन कार्यक्रम के बारे में:
45 दिवसीय शमन कार्यक्रम तीन चरणों में लागू होगा—पहले चरण में रेंज कार्यालयों पर हेल्प डेस्क से शिकायतों का त्वरित समाधान, दूसरे चरण में जिला स्तर की समिति द्वारा जटिल मामलों का निपटारा, और तीसरे चरण में राज्य सरकार दीर्घकालिक नीतियाँ बनाकर स्थायी समाधान सुनिश्चित करेगी।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के बारे में:
मानव-वन्यजीव संघर्ष उस स्थिति को कहते हैं जब मानव गतिविधियाँ सीधे वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास से टकराती हैं। इसके परिणामस्वरूप संपत्ति का नुकसान, आजीविका पर असर और कई बार मानव जीवन की हानि भी हो जाती है। यह समस्या आज एक वैश्विक चुनौती के रूप में सामने है, जो सतत विकास, खाद्य सुरक्षा और संरक्षण प्रयासों को प्रभावित करती है। संयुक्त राष्ट्र की जैव विविधता संधि ने भी अपनी 2020 के बाद की वैश्विक जैव विविधता रूपरेखा में मानव-वन्यजीव संघर्ष को गंभीर चिंता का विषय माना है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण:
· जनसंख्या दबाव और अतिक्रमण: बढ़ती आबादी के कारण बस्तियाँ संरक्षित क्षेत्रों में फैलने लगी हैं, जिससे संघर्ष बढ़ रहा है।
· आवास का नुकसान और विखंडन: जैसे काजीरंगा में बुनियादी ढाँचे के विकास से वन्यजीव गलियारे टूट गए हैं, जिससे संघर्ष बढ़ा।
· आवास की गुणवत्ता में गिरावट: वनों में नीलगिरी और अकासिया जैसी व्यावसायिक पौधरोपण ने प्राकृतिक आवास को कमजोर किया है।
· कृषि पद्धतियों में बदलाव: आधुनिक खेती के तौर-तरीकों ने वन्यजीवों भोजन की तलाश में जंगल से बाहर आये।
मानव-वन्यजीव संघर्ष के परिणाम:
· मानव पर असर: 2021 से 2025 के बीच केरल में वन्यजीव घटनाओं के कारण 344 लोगों की जान गई।
· आर्थिक नुकसान: हाथियों और जंगली सूअरों जैसे जानवरों के कारण किसानों को वार्षिक फसल का 10-15% नुकसान होता है।
· वन्यजीवों के लिए खतरा: संघर्ष के दौरान जानवर अक्सर प्रतिशोध या दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं, जिससे संरक्षण प्रयासों पर असर पड़ता है।
· वित्तीय बोझ: केरल ने पिछले 6 सालों में मुआवज़े और सुरक्षा उपायों पर 79.3 करोड़ रुपये खर्च किए।
मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकने के लिए सरकारी पहल:
· राष्ट्रीय मानव-वन्यजीव संघर्ष शमन रणनीति: यह रणनीति समय रहते चेतावनी देने, निवारक उपाय अपनाने और संबंधित संस्थाओं की क्षमता बढ़ाने पर केंद्रित है।
· कैम्पा निधि (CAMPA): इसके माध्यम से वनीकरण, प्राकृतिक आवास का सुधार और जलस्रोतों का निर्माण किया जाता है।
· केंद्रीय प्रायोजित योजनाएँ: जैसे प्रोजेक्ट टाइगर, जो वन्यजीव संरक्षण के लिए वित्तीय सहयोग प्रदान करती है।
· पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्र: संरक्षित क्षेत्रों के आसपास बनाए गए बफर ज़ोन, जो मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित कर वन्यजीवों की रक्षा सुनिश्चित करते हैं।
आगे की राह:
· आवास संपर्क को मज़बूत करना: वन्यजीव गलियारों का पुनर्निर्माण करना और स्थानीय समुदायों को सह-अस्तित्व के महत्व के बारे में जागरूक करना।
· सह-अस्तित्व को बढ़ावा देना: मानव-वन्यजीव संघर्ष के समाधान को ग्रामीण विकास और शहरी नियोजन में भी शामिल करना।
· सुरक्षा बाधाएँ स्थापित करना: सौर ऊर्जा से चलने वाली बाड़ और जैविक बाड़ का उपयोग कर वन्यजीवों को बस्तियों और खेती की ज़मीनों से दूर रखना।
· समय पर चेतावनी प्रणाली विकसित करना: उपग्रह-आधारित ट्रैकिंग, गति संवेदक और अन्य तकनीकी साधनों के माध्यम से समुदायों को वन्यजीवों की गतिविधियों के बारे में पहले से सूचना देना।
निष्कर्ष:
केरल की यह तीन-चरणीय शमन योजना मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने की दिशा में एक अहम कदम है। इसमें स्थानीय समुदायों, सरकारी अधिकारियों और संरक्षणवादियों की भागीदारी है। उम्मीद है कि इस पहल से एक व्यापक और प्रभावी व्यवस्था बनेगी, जो उन अन्य राज्यों (जहाँ इसी तरह की समस्याएँ सामने आती हैं) के लिए भी योजना आदर्श साबित हो सकती है।