संदर्भ:
2 जून 2025 को प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ में प्रकाशित एक नई अध्ययन रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया है कि औद्योगिक प्रदूषण महासागर में पोषक तत्वों के चक्र को बदल रहा है और पारिस्थितिक सीमाओं को विस्थापित कर रहा है विशेष रूप से उत्तर प्रशांत क्षेत्र में। शोध से यह सामने आया है कि इंसानों द्वारा उत्सर्जित लौह (iron) कण समुद्री फाइटोप्लैंकटन (सूक्ष्म पौधों) की वृद्धि को बढ़ा रहे हैं और सतही जल में पोषक तत्वों की तेजी से कमी का कारण बन रहे हैं।
अध्ययन की प्रमुख बातें:
- मानवजनित लौह कण बढ़ा रहे हैं फाइटोप्लैंकटन की वृद्धि: वसंत ऋतु में समुद्र की सतह पर पाए जाने वाले कुल लौह का लगभग 39% हिस्सा वायुमंडलीय प्रदूषण, विशेषकर पूर्वी एशिया से होने वाले औद्योगिक उत्सर्जन से आता है। ये लौह कण हवाओं के माध्यम से समुद्र तक पहुंचते हैं और फाइटोप्लैंकटन के प्रसार को बढ़ावा देते हैं, जो समुद्री खाद्य श्रृंखला की आधारशिला होते हैं।
- लौह प्रदूषण में मौसमी बदलाव: लौह की मात्रा वसंत में सबसे अधिक होती है, जब हवाएं तेज होती हैं और फाइटोप्लैंकटन की भरमार होती है। वैज्ञानिकों ने 2016, 2017 और 2019 के वसंत के दौरान और 2018 के शरद ऋतु में समुद्री अभियानों से डेटा इकट्ठा किया।
- विशिष्ट समस्थानिक संकेत (Isotopic Signature): औद्योगिक प्रदूषण से आया लौह एक अलग समस्थानिक संकेत रखता है, जिससे इसे समुद्री नमूनों में पहचाना जा सकता है। इसके लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया।
- तेज पोषक तत्व खपत: अधिक लौह की उपलब्धता से फाइटोप्लैंकटन तेजी से बढ़ते हैं, जिससे नाइट्रेट जैसे आवश्यक पोषक तत्व जल्दी समाप्त होने लगते हैं। इसका परिणाम यह हो सकता है कि कुछ समुद्री क्षेत्र नाइट्रोजन की कमी के दौर में चले जाएं, जहां पर्याप्त पोषक तत्व नहीं बचते।
- पारिस्थितिक सीमाओं में दीर्घकालिक बदलाव: पिछले 25 वर्षों में, वसंत ऋतु में फाइटोप्लैंकटन की तीव्र वृद्धि और तेज पोषक तत्व खत्म होने की प्रक्रिया के कारण ट्रांजिशन ज़ोन क्लोरोफिल फ्रंट (TZCF) नामक सीमा उत्तर की ओर खिसक रही है, यह वह सीमा है जो पोषक-समृद्ध और पोषक-गरीब जल क्षेत्रों को अलग करती है। इसका मतलब है कि महासागर में उत्पादकता के पैटर्न बदल रहे हैं।
यह क्यों महत्वपूर्ण है:
- फाइटोप्लैंकटन समुद्री जीवन श्रृंखला की बुनियाद होते हैं, इन पर झींगे, मछलियाँ, समुद्री पक्षी और व्हेल जैसे जीव निर्भर करते हैं।
- यदि अतिरिक्त लौह की वजह से पोषक तत्व खत्म हो जाते हैं और क्षेत्र में पोषक की कमी हो जाती हैं, तो समुद्री जैवविविधता पर नकारात्मक असर पड़ेगा खासकर उन प्रजातियों पर जो जल्दी स्थानांतरित नहीं हो सकतीं। जिससे मत्स्य व्यवसाय और तटीय अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो सकती हैं।
- फाइटोप्लैंकटन पृथ्वी के कार्बन चक्र में अहम भूमिका निभाते हैं। उनके कामकाज में बदलाव से जलवायु पर भी असर पड़ सकता है।
- बायोएक्यूम्युलेशन और बायोमैग्निफिकेशन जैसे प्रभावों के चलते, ये गड़बड़ियां मानव स्वास्थ्य पर भी असर डाल सकती हैं।
निष्कर्ष:
यह अध्ययन स्पष्ट रूप से दिखाता है कि मानवजनित प्रदूषण अब पृथ्वी के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों को भी प्रभावित कर रहा है। यह न केवल प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहा है, बल्कि महासागरों की पोषण प्रणाली और पारिस्थितिक सीमाओं को भी बदल रहा है। भविष्य में ऐसे प्रभावों की निगरानी और नियंत्रण वैश्विक समुद्री प्रशासन और जलवायु रणनीतियों का एक आवश्यक हिस्सा होना चाहिए।