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Blog / 28 Apr 2025

भारी धातु प्रदूषण

सन्दर्भ:

साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि विषैली भारी धातुओं और उपधातुओं द्वारा मिट्टी का प्रदूषण, जो कृषि उत्पादकता में भारी गिरावट कर रहा है तथा विश्व स्तर पर खाद्य आपूर्ति को दूषित कर रहा है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

·        प्रभावित क्षेत्र और जनसंख्या: शोधकर्ताओं ने पाया कि विश्वभर में कृषि योग्य भूमि का लगभग 14% से 17% हिस्सा एक विषैली धातु के सुरक्षित स्तर से अधिक प्रदूषित है। इस व्यापक प्रदूषण से लगभग 900 मिलियन से 1.4 बिलियन लोग प्रभावित हो रहे हैं, जो इन संवेदनशील क्षेत्रों में निवास करते हैं। यह स्थिति मानव स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिक संतुलन के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करती है।

·        प्रदूषित क्षेत्र: सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र यूरेशिया के निम्न अक्षांशीय हिस्सों में फैला हुआ है, जिसमें दक्षिणी यूरोप, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और दक्षिणी चीन शामिल हैं। यह क्षेत्र उन प्राचीन सभ्यताओं जैसे यूनानी, रोमन, फारसी तथा प्रारंभिक चीनी राजवंश के केंद्रों से मेल खाता है। अध्ययन के अनुसार, इन क्षेत्रों में भारी धातुओं का संचयन मानव गतिविधियों, जैसे खनन, धातु प्रसंस्करण और कृषि कार्यों के साथ-साथ धातु समृद्ध भूगर्भीय संरचनाओं और कम वर्षा जैसी प्राकृतिक परिस्थितियों के कारण सदियों से होता आ रहा है।

भारी धातु प्रदूषण के बारे में:

सीसा (Pb), पारा (Hg), कैडमियम (Cd), आर्सेनिक (As) और क्रोमियम (Cr) जैसी भारी धातुएँ प्राकृतिक रूप से पृथ्वी में पाई जाती हैं, लेकिन जब इनकी मात्रा अधिक हो जाती है, तो ये विषैली बन जाती हैं। इनके उच्च स्तर के लिए मुख्य रूप से औद्योगिक अपशिष्ट, खनन गतिविधियाँ, जीवाश्म ईंधनों का दहन, अपशिष्ट जल का सिंचाई में उपयोग और कृषि रसायनों का अत्यधिक प्रयोग जिम्मेदार हैं। जैविक प्रदूषकों के विपरीत, भारी धातुएँ प्राकृतिक रूप से विघटित नहीं होतीं और लंबे समय तक मिट्टी, जल, वायु और जीवों में जमा होकर पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती हैं।

A Large-Scale Assessment of Soil Heavy Metal Pollution Using  Field-Collected Earthworms as Bio-Indicators in Shaoguan, South China |  Environment & Health

भारी धातु प्रदूषण के पर्यावरणीय प्रभाव:

1.      मिट्टी का क्षरण

                    भारी धातुएँ मिट्टी का pH बदल देती हैं और नाइट्रोजन फिक्सिंग जैसे लाभकारी सूक्ष्मजीवों को मार डालती हैं।

                    इसके परिणामस्वरूप मिट्टी की उर्वरता में कमी आती है, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है।

                    प्रदूषण से मिट्टी की सहन करने की क्षमता घट जाती है, जिससे वह अन्य प्रदूषकों के प्रति भी अधिक संवेदनशील हो जाती है।

2.     जल प्रदूषण

                    भारी धातुएँ भूजल में पहुंचकर नदियों और झीलों को प्रदूषित करती हैं।

                    ये धातुएँ जलीय पारिस्थितिक तंत्र में जमा हो जाती हैं और मछलियों व अन्य जलजीवों को नुकसान पहुँचाती हैं।

                    दूषित जल स्रोत पीने के पानी की गुणवत्ता को खतरे में डालते हैं, जैसे पश्चिम बंगाल में भूजल में आर्सेनिक का प्रदूषण।

3.     वायु प्रदूषण

                    धातु गलाने, औद्योगिक इकाइयों और कचरे को जलाने के कारण भारी धातुएँ वायुमंडल में फैल जाती हैं।

                    धूलकणों से जुड़ी धातुएँ लंबी दूरी तक यात्रा कर सकती हैं और दूरस्थ क्षेत्रों में गिर सकती हैं।

                    इन धातुओं का वायुमार्ग से प्रवेश होने पर मनुष्यों और जानवरों में श्वसन संबंधी बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं।

4.    जैव विविधता का ह्रास

                    परागणकर्ता जीव (जैसे मधुमक्खियाँ) और मिट्टी में रहने वाले जीव (जैसे केंचुए) के लिए ये धातुएँ विषैली होती हैं, जिससे पारिस्थितिक संतुलन में गड़बड़ी होती है।

                    इन धातुओं का संचय खाद्य श्रृंखला में होता है, जिससे बायोएक्यूम्यूलेशन और बायोमैग्निफिकेशन की प्रक्रिया बढ़ती है।

                    प्रदूषित क्षेत्रों में संकटग्रस्त प्रजातियाँ अस्तित्व संकट का सामना करती हैं।

5.     पारिस्थितिकी सेवाओं का अवरोध

                    पोषक तत्वों के चक्र, जल शुद्धिकरण और पौधों की वृद्धि जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी कार्य बाधित होते हैं।

                    प्रदूषित क्षेत्र जैसे खनन क्षेत्रों के आसपास पारिस्थितिक दृष्टि से "मृत क्षेत्र" (Dead Zones) में बदल जाते हैं।

निष्कर्ष:

भारी धातु प्रदूषण पर्यावरणीय स्थिरता के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है। इसकी दीर्घकालिक उपस्थिति और मिट्टी, पानी, वायु तथा जैव विविधता पर पड़ने वाले अपरिवर्तनीय प्रभाव को देखते हुए, सख्त नियमों का पालन, प्रदूषण नियंत्रण और पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन के प्रयासों की अत्यधिक आवश्यकता है। इस समस्या का समाधान स्वच्छ जल, भूमि पर जीवन और अच्छे स्वास्थ्य जैसे सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति के लिए अत्यंत आवश्यक है।