संदर्भ:
हरियाणा की 33 वर्षीय ट्रैवल ब्लॉगर ज्योति रानी को 16 मई को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया। यह कार्रवाई एक बड़े जासूसी रैकेट का हिस्सा मानी जा रही है, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को संवेदनशील जानकारियाँ और लॉजिस्टिक सहायता मुहैया कराई थी।
उनके खिलाफ आरोप:
ज्योति रानी पर आरोप है कि उन्होंने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों को संवेदनशील जानकारियाँ साझा कीं, जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुँचा। साथ ही, उन्हें सोशल मीडिया के ज़रिए पाकिस्तान की सकारात्मक छवि प्रस्तुत करने और भारतीय दर्शकों की सोच को प्रभावित करने का कार्य सौंपा गया था। यह गतिविधि एक सुनियोजित प्रचार अभियान का हिस्सा माना जा रहा है।
ज्योति रानी पर जिन धाराओं में केस दर्ज हुआ है:
- आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 की धारा 3: (जासूसी)
- आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 की धारा 5: (जानकारी का ग़लत तरीके से आदान-प्रदान)
- भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152: (ऐसे कार्य जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता के लिए खतरा हैं)
धारा 3 – आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के बारे में:
यह धारा किसी भी ऐसे कार्य को अपराध मानती है जो राज्य की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करे। इसमें शामिल हैं:
- प्रतिबंधित क्षेत्रों में जाना या उनका निरीक्षण करना
- ऐसे नक्शे, योजनाएँ या नोट्स बनाना जो दुश्मन को मदद दे सकते हैं
- गोपनीय सरकारी जानकारी इकट्ठा करना या साझा करना
सज़ा:
- अगर जासूसी सैन्य या रक्षा स्थलों से जुड़ी हो, तो अधिकतम 14 साल तक की कैद
- अन्य मामलों में अधिकतम 3 साल की सज़ा
धारा 5 – आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के बारे में:
यह धारा निम्नलिखित मामलों से संबंधित है:
- गोपनीय दस्तावेज़ों या जानकारी को ग़लत तरीके से संभालना या बाँटना
- लापरवाही या बिना अधिकार वाले व्यक्ति को ऐसी जानकारी देना
सज़ा:
- अधिकतम 3 साल की जेल या जुर्माना, या दोनों
धारा 152 – भारतीय न्याय संहिता (BNS) के बारे में:
इस धारा में उन कार्यों को शामिल किया गया है जो भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसमें शामिल हैं:
- देश से अलगाव, विद्रोह या देशविरोधी गतिविधियों को भड़काना या उन्हें बढ़ावा देना
सज़ा:
- आजीवन कारावास, या
- अधिकतम 7 साल की कैद और जुर्माना
आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम, 1923 के बारे में:
यह कानून भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया था। ब्रिटिश शासनकाल में बना यह अधिनियम आज भी देश की रक्षा और विदेश मामलों से जुड़ी संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा में अहम भूमिका निभा रहा है।
इस अधिनियम का उद्देश्य:
- देश की संप्रभुता और सुरक्षा की रक्षा करना
- गोपनीय सरकारी जानकारी को लीक होने से बचाना
- विशेष रूप से सेना, रक्षा और खुफिया एजेंसियों से जुड़ी जानकारियों को गोपनीय बनाए रखना
यह मामला क्यों महत्वपूर्ण है:
यह मामला निम्नलिखित पर बढ़ती चिंताओं को उजागर करता है:
- सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स के ज़रिए जासूसी का खतरा
- डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का खुफिया जानकारी के लिए दुरुपयोग
- प्रचार और राज्य-प्रायोजित तोड़फोड़ के बीच की धुंधली होती सीमा
यह मामला यह भी दिखाता है कि सोशल मीडिया और भू-राजनीति (geopolitics) के मेल से कैसे राष्ट्रीय सुरक्षा को नई तरह की चुनौतियाँ मिल रही हैं।