सन्दर्भ:
हीमोफीलिया भारत में लंबे समय से गंभीर स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का कारण रहा है, जिसका मुख्य कारण सही समय पर निदान न हो पाना, उपचार तक सीमित पहुँच और प्रतिक्रियात्मक देखभाल पर निर्भरता है।
· नियमित क्लॉटिंग फैक्टर रिप्लेसमेंट और नई नॉन-फैक्टर थेरैपीज़ सहित उपचार में हालिया प्रगति ने रक्तस्राव को पूरी तरह रोकना संभव बना दिया है, जिससे मरीज़ों के स्वास्थ्य परिणामों में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।
हीमोफीलिया के बारे में :
● हीमोफीलिया एक आनुवंशिक रक्तस्राव विकार है, जिसमें रक्त सही तरीके से नहीं जम पाता।
● थक्का बनाने वाले कारकों (Clotting Factors) की कमी के कारण लंबे समय तक या स्वतः रक्तस्राव हो सकता है।
● यह मुख्यतः पुरुषों को प्रभावित करता है, जबकि महिलाएँ प्रायः इसकी वाहक (Carrier) होती हैं।
● अधिकांश मामले वंशानुगत होते हैं, हालांकि कुछ नए आनुवंशिक उत्परिवर्तनों (Genetic Mutations) से भी उत्पन्न हो सकते हैं।
● थक्का बनाने वाले कारक की कमी: शरीर में थक्का जमाने के लिए आवश्यक प्रोटीन का अभाव।
हीमोफीलिया के प्रकार:
1. हीमोफीलिया A: फैक्टर VIII की कमी (सबसे सामान्य)।
2. हीमोफीलिया B: फैक्टर IX की कमी।
3. हीमोफीलिया C: फैक्टर XI की कमी; दुर्लभ, तथा दोनों लिंगों को प्रभावित करता है। जोड़ों, मांसपेशियों या मस्तिष्क में रक्तस्राव हो सकता है , जिसके लिए तत्काल उपचार की आवश्यकता होती है।
प्रतिक्रियात्मक से निवारक देखभाल की ओर बदलाव:
· परंपरागत रूप से भारत में हीमोफीलिया का प्रबंधन ऑन-डिमांड थेरेपी पर आधारित रहा है, जिसमें रक्तस्राव होने के बाद ही उपचार दिया जाता है। यह तरीका अक्सर दीर्घकालिक जोड़ों की क्षति और विकलांगता को रोकने में विफल रहता है।
· हाल के वर्षों में ध्यान प्रोफिलैक्सिस यानी नियमित प्रतिस्थापन चिकित्सा पर केंद्रित हुआ है, जिसका उद्देश्य रक्तस्राव को होने से पहले ही रोकना है।
· यह बदलाव "शून्य रक्तस्राव" (Zero Bleeds) के भविष्य की ओर एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। नई चिकित्सा पद्धतियाँ अब साधारण प्रतिस्थापन से आगे बढ़कर, शरीर की थक्का जमाने की प्रणाली को पूरी तरह संतुलित या पुनर्स्थापित करने पर केंद्रित हैं, जिससे रोगियों को लगभग सामान्य जीवन जीने का अवसर मिल सके।
वर्तमान स्थिति:
· भारत में हीमोफीलिया के अनुमानित 1–1.5 लाख मामलों में से केवल लगभग 29,000 रोगियों का ही आधिकारिक निदान हुआ है। यह आँकड़ा जागरूकता और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच में गंभीर अंतर को दर्शाता है।
रोगनिरोधी (प्रोफिलैक्सिस) उपचार के लाभ:
1. जोड़ों की क्षति की रोकथाम:
नियमित प्रतिस्थापन से थक्का कारक का स्तर स्थिर रहता है, जिससे स्वतःस्फूर्त रक्तस्राव और दीर्घकालिक विकृतियों की संभावना कम हो जाती है।
2. जीवन की गुणवत्ता में सुधार:
बच्चे बिना बाधा के स्कूल और खेल-कूद में भाग ले सकते हैं, वयस्क कामकाज व सामाजिक गतिविधियों में सक्रिय रह सकते हैं। इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों बेहतर होते हैं।
3. स्वास्थ्य देखभाल का बोझ कम होना:
आपातकालीन अस्पताल दौरों की संख्या घटती है और दीर्घकालिक जटिलताओं से समग्र उपचार लागत कम हो जाती है।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव:
· विकसित देशों में लगभग 90% हीमोफीलिया रोगी प्रोफिलैक्सिस ले रहे हैं, और उनकी जीवन प्रत्याशा लगभग सामान्य हो गई है।
· भारत में इसे अपनाने की दर अभी भी कम है, हालाँकि कुछ राज्यों ने 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए प्रोफिलैक्सिस कार्यक्रम लागू करना शुरू कर दिया है।
आगे की राह:
प्रोफिलैक्सिस के लाभ पूरी तरह पाने के लिए भारत को निम्नलिखित बिंदुओ पर ध्यान देना होगा:
1. जमीनी स्तर पर निदान सुविधाओं का विस्तार करना।
2. थक्का कारक उपचार तक किफ़ायती और निरंतर पहुँच सुनिश्चित करना।
3. नीति समर्थन और सार्वजनिक जागरूकता को बढ़ावा देना।