संदर्भ:
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कट्टावेल्लई उर्फ़ देवकर बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए, आपराधिक मामलों में डीएनए साक्ष्य (DNA Evidence) के संग्रह, संरक्षण और न्यायालय में प्रस्तुति हेतु राष्ट्रीय स्तर पर समान दिशानिर्देश जारी किए हैं।
दिशानिर्देशों का महत्व:
देवकर मामले में (जिस पर बलात्कार, हत्या और डकैती के आरोप थे) सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि जननांग से लिए गए स्वैब नमूनों को फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) भेजने में अनुचित देरी हुई और "चेन ऑफ कस्टडी" (अर्थात् सबूत की सतत निगरानी और रिकॉर्ड) का पालन नहीं किया गया। इस वजह से डीएनए साक्ष्य की विश्वसनीयता पर गंभीर संदेह उत्पन्न हुआ।
· यद्यपि कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर आंतरिक दिशानिर्देश बनाए थे, लेकिन पूरे देश के लिए समान मानक न होने के कारण सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप कर राष्ट्रीय दिशानिर्देश जारी करने पड़े।
डीएनए के बारे में:
डीएनए (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) सभी जीवित प्राणियों की आनुवंशिक रूपरेखा है। यह वंशानुगति (heredity), कोशिकीय कार्य और प्रोटीन संश्लेषण की मूलभूत प्रक्रिया के लिए उत्तरदायी होता है।
· डीएनए माता-पिता से संतान तक वंशागत सूचनाएँ पहुँचाता है और आंखों का रंग, शारीरिक बनावट तथा रोगों की प्रवृत्ति जैसे गुणों को निर्धारित करता है।
· इसकी संरचना दो लंबी श्रृंखलाओं (polynucleotides) से मिलकर बनी होती है। प्रत्येक शृंखला न्यूक्लियोटाइड से बनी होती है, जिसमें एक शर्करा (deoxyribose), एक फॉस्फेट समूह तथा चार नाइट्रोजनस आधार (A – एडेनिन, T – थाइमिन, C – साइटोसिन, G – ग्वानिन) में से कोई एक शामिल होता है।
· आधार (bases) निश्चित जोड़ी नियम का पालन करते हैं—A हमेशा T से तथा C हमेशा G से जुड़ता है।
चार प्रमुख दिशानिर्देश:
1. संग्रह के समय उचित दस्तावेजीकरण: डीएनए नमूना लेते समय एफआईआर नंबर, तारीख, संबंधित कानूनी धाराएँ, जाँच अधिकारी और चिकित्सक के विवरण के साथ उसे ठीक से लेबल करना अनिवार्य होगा। इसमें सभी के हस्ताक्षर (जिनमें स्वतंत्र गवाह भी शामिल हों) दर्ज किए जाने चाहिए ताकि जवाबदेही तय हो सके।
2. समय पर FSL को भेजना: जांच अधिकारी को 48 घंटे के भीतर डीएनए नमूना फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (FSL) भेजना होगा। यदि किसी कारण देरी होती है तो उसका कारण दर्ज करना आवश्यक होगा और नमूने को सुरक्षित रखने के इंतज़ाम किए जाने चाहिए।
3. मुकदमे तक सुरक्षित भंडारण: जब तक मुकदमा या अपील चल रही हो, डीएनए नमूने को बिना अदालत की अनुमति के खोला, बदला या दोबारा सील नहीं किया जा सकता। इससे सबूत के साथ छेड़छाड़ की संभावना खत्म होती है।
4. चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर बनाए रखना: संग्रह से लेकर केस के अंतिम नतीजे (दोषसिद्धि/बरी) तक एक विस्तृत रजिस्टर रखा जाएगा। यह ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड का हिस्सा बनेगा। किसी भी प्रक्रिया में चूक के लिए जांच अधिकारी जिम्मेदार होगा।
डीएनए पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णय:
अदालत ने स्पष्ट किया है कि डीएनए सबूत भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 45 (या 2023 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम – भारतीय साक्ष्य अधिनियम धारा 39) के तहत राय आधारित साक्ष्य (opinion evidence) है। यानी यह निर्णायक नहीं है और अन्य साक्ष्यों के साथ मिलाकर परखा जाना चाहिए।
- अपराध स्थल से लिए गए डीएनए और आरोपी के डीएनए में समानता केवल यह दर्शाती है कि उनका जैविक स्रोत एक ही है, लेकिन इससे अकेले दोषसिद्धि तय नहीं होती।
प्रमुख फैसले:
- अनिल बनाम महाराष्ट्र राज्य (2014): डीएनए विश्वसनीय है, लेकिन तभी जब प्रयोगशाला में गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित हो।
- मनोज बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022): खुले क्षेत्र से लिए गए डीएनए नमूने को अस्वीकृत किया गया क्योंकि उसके दूषित होने की संभावना थी।
- राहुल बनाम दिल्ली राज्य (2022): पुलिस कस्टडी में दो महीने रखे गए डीएनए नमूने को अविश्वसनीय माना गया क्योंकि उसमें छेड़छाड़ की आशंका थी।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के ये दिशानिर्देश भारत की न्याय व्यवस्था में फॉरेंसिक प्रक्रियाओं को सुधारने की दिशा में अहम कदम हैं। डीएनए सबूत जाँच में बड़ी मदद कर सकता है, लेकिन इसके लिए सख्त और समान नियम ज़रूरी हैं ताकि यह अदालत में मान्य हो। दस्तावेजीकरण, समय पर जाँच, सुरक्षित भंडारण और चेन ऑफ कस्टडी की व्यवस्था से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होगी। अब ये नियम सभी राज्यों पर लागू होंगे, जिससे यह संदेश जाता है कि न्याय सिर्फ वैज्ञानिक कठोरता ही नहीं बल्कि प्रक्रिया की निष्पक्षता पर भी निर्भर करता है।