संदर्भ:
भारत ने गुजरात के कांडला पोर्ट पर अपना पहला स्वदेशी रूप से विकसित 1 मेगावाट क्षमता वाला ग्रीन हाइड्रोजन पावर प्लांट (GHPP) शुरू किया है। यह संयंत्र "राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन" के अंतर्गत स्थापित किया गया है जो प्रतिवर्ष लगभग 140 मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन के उत्पादन में सक्षम है। यह पहल भारत को ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों की ओर अग्रसर करने और प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों को कार्बन मुक्त बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
ग्रीन हाइड्रोजन क्या है?
ग्रीन हाइड्रोजन वह हाइड्रोजन है जो इलेक्ट्रोलिसिस की प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। इस प्रक्रिया में पानी (H₂O) को बिजली की मदद से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विभाजित किया जाता है। यदि इस प्रक्रिया में उपयोग होने वाली बिजली सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे पूर्णतः अक्षय स्रोतों से ली जाए, तो उत्पादित हाइड्रोजन को “ग्रीन हाइड्रोजन” कहा जाता है। यह एक स्वच्छ ईंधन है, जो उपयोग के समय शून्य कार्बन उत्सर्जन करता है।
ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग:
• इस्पात उत्पादन में: स्टील बनाने की पारंपरिक प्रक्रिया में कोकिंग कोल का उपयोग होता है, जिससे भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) उत्सर्जित होती है। इसकी जगह ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग करने पर केवल जलवाष्प (पानी की भाप) बनती है, जिससे उत्पादन प्रक्रिया कहीं अधिक पर्यावरण अनुकूल हो जाती है।
• रिफाइनरी और उर्वरक निर्माण में: अमोनिया और मिथेनॉल जैसे रसायनों के उत्पादन में अब तक ग्रे हाइड्रोजन का प्रयोग होता रहा है, जो जीवाश्म ईंधनों से बनता है। इसकी जगह ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग से प्रदूषण में कमी आती है और जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटती है।
• परिवहन क्षेत्र में: विशेषकर भारी वाहनों जैसे ट्रक और बसों के लिए, हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक एक प्रभावी विकल्प है। इससे लंबे सफर भी शून्य उत्सर्जन के साथ संभव हो जाते हैं।
• ऊर्जा भंडारण और ग्रिड संतुलन में: ग्रीन हाइड्रोजन का उपयोग बिजली उत्पन्न करने के लिए तब किया जा सकता है जब मांग अधिक हो या जब सौर और पवन ऊर्जा की उपलब्धता कम हो। यह ग्रिड की स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है।
• ग्रीन मिथेनॉल उत्पादन में: ग्रीन हाइड्रोजन को कार्बन डाइऑक्साइड के साथ मिलाकर ग्रीन मिथेनॉल तैयार किया जा सकता है, जो एक तरल ईंधन है और विभिन्न औद्योगिक कार्यों में उपयोगी होता है।
इसके उपयोग में चुनौतियाँ:
• उच्च लागत: वर्तमान में ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन $4 से $6 प्रति किलोग्राम तक पड़ता है, जिससे यह पारंपरिक विकल्पों की तुलना में महँगा साबित होता है। हालांकि, जैसे-जैसे अक्षय ऊर्जा की कीमतों में गिरावट आएगी और इलेक्ट्रोलाइज़र तकनीक उन्नत होगी, लागत में उल्लेखनीय कमी की संभावना है।
• भंडारण की जटिलता: हाइड्रोजन को सुरक्षित रखने के लिए अत्यधिक दबाव या बहुत कम तापमान की आवश्यकता होती है। इससे इसका भंडारण और परिवहन तकनीकी रूप से जटिल और आर्थिक रूप से महँगा हो जाता है।
• जल संसाधनों पर दबाव: एक किलोग्राम हाइड्रोजन के उत्पादन में लगभग 9 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। जल-संकटग्रस्त क्षेत्रों में यह अतिरिक्त चुनौती उत्पन्न कर सकता है।
• उच्च ऊर्जा खपत: इलेक्ट्रोलिसिस प्रक्रिया के लिए प्रति किलोग्राम हाइड्रोजन के उत्पादन में लगभग 48 किलोवाट-घंटा विद्युत की जरूरत होती है। इसलिए इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि विद्युत की आपूर्ति पर्यावरणीय दृष्टि से स्वच्छ और आर्थिक दृष्टि से सस्ती हो।
आगे की राह:
• लागत में कमी: ग्रीन हाइड्रोजन को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए उत्पादन लागत घटाना आवश्यक है। इसके लिए जीएसटी में छूट, सस्ती हरित बिजली की उपलब्धता और रियायती वित्तीय सहायता जैसे उपाय प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं।
• नीतिगत प्रोत्साहन: जैसे कि ग्रीन स्टील के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना को निर्यात लक्ष्यों से जोड़ना, जिससे उद्योगों को हरित प्रौद्योगिकियाँ अपनाने के लिए प्रेरणा मिले।
• निवेश: 2030 तक इस क्षेत्र में लगभग 1 अरब डॉलर का निवेश आवश्यक माना गया है, ताकि ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन और उससे जुड़ी तकनीकों को बड़े पैमाने पर लागू किया जा सके।
• बाजार तंत्र: ग्रीन हाइड्रोजन की मांग को सुनिश्चित करने के लिए कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में "ग्रीन हाइड्रोजन खरीद अनिवार्यता" (GHPO) जैसे उपाय अपनाए जा सकते हैं, जिससे दीर्घकालिक स्थिर बाजार तैयार किया जा सके।
राष्ट्रीय ग्रीन हाइड्रोजन मिशन क्या है?
इस मिशन का उद्देश्य भारत को ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन, उपयोग और निर्यात में विश्व स्तर पर अग्रणी बनाना है।
मुख्य विशेषताएँ:
• उद्देश्य: भारत को ग्रीन हाइड्रोजन के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व प्रदान करना।
• लक्ष्य: 2030 तक हर साल 50 लाख मीट्रिक टन (5 मिलियन मीट्रिक टन) ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन करना।
• नोडल मंत्रालय: यह मिशन "नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय" (MNRE) द्वारा संचालित किया जा रहा है।
निष्कर्ष:
कांडला पोर्ट पर ग्रीन हाइड्रोजन प्लांट की शुरुआत भारत के ‘नेट ज़ीरो’ उत्सर्जन लक्ष्य और सतत विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह न केवल स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की वैश्विक प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।