संदर्भ:
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने संकटग्रस्त पक्षी प्रजाति ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के संरक्षण को मजबूत करने के उद्देश्य से एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। इस निर्णय के माध्यम से न्यायालय ने राजस्थान और गुजरात जैसे नवीकरणीय ऊर्जा की दृष्टि से समृद्ध राज्यों में ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (GEC) की योजना, मार्ग निर्धारण और क्रियान्वयन की रूपरेखा को पर्यावरणीय संवेदनशीलता के अनुरूप पुनः परिभाषित किया है।
यह मामला क्यों महत्वपूर्ण है?
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- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड दुनिया की सबसे अधिक संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों में शामिल है, जिसकी प्राकृतिक अवस्था में बची आबादी अब केवल कुछ दर्जन तक सिमट गई है। इसका मुख्य प्राकृतिक आवास राजस्थान और गुजरात तक सीमित रह गया है।
- ओवरहेड बिजली ट्रांसमिशन लाइनों से टकराव, प्राकृतिक आवासों का विखंडन तथा अन्य मानव-जनित गतिविधियों के कारण इस प्रजाति की संख्या में तीव्र और निरंतर गिरावट दर्ज की गई है।
- ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर एक प्रमुख राष्ट्रीय अवसंरचना परियोजना है, जिसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन को समर्पित ट्रांसमिशन लाइनों और सबस्टेशनों के माध्यम से राष्ट्रीय विद्युत ग्रिड से जोड़ना है। यह परियोजना 2030 तक 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता के भारत के लक्ष्य का एक अहम स्तंभ है।
- GEC में राज्य के भीतर संचालित इंट्रा-स्टेट तथा राज्यों को आपस में जोड़ने वाली इंटर-स्टेट, दोनों प्रकार की ट्रांसमिशन प्रणालियाँ शामिल हैं।
- विवाद की स्थिति तब उत्पन्न हुई जब प्रस्तावित कई ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइनें ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के महत्वपूर्ण और संवेदनशील आवास क्षेत्रों से होकर गुजरने लगीं, जिससे जैव विविधता संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा के तीव्र विस्तार के बीच सीधा और गंभीर टकराव सामने आया।
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड दुनिया की सबसे अधिक संकटग्रस्त पक्षी प्रजातियों में शामिल है, जिसकी प्राकृतिक अवस्था में बची आबादी अब केवल कुछ दर्जन तक सिमट गई है। इसका मुख्य प्राकृतिक आवास राजस्थान और गुजरात तक सीमित रह गया है।
सर्वोच्च न्यायालय के प्रमुख निर्देश:
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- संरक्षण क्षेत्र और ‘नो-गो’ क्षेत्र
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि GIB का संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता का विषय है और इसके लिए संशोधित प्राथमिक संरक्षण क्षेत्रों को अंतिम रूप दिया गया है:
- राजस्थान में 14,013 वर्ग किलोमीटर
- गुजरात में 740 वर्ग किलोमीटर
- राजस्थान में 14,013 वर्ग किलोमीटर
- ये क्षेत्र अब कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं और भविष्य में सभी अवसंरचना तथा ऊर्जा परियोजनाओं में इन्हें अनिवार्य रूप से ध्यान में रखना होगा।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि GIB का संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता का विषय है और इसके लिए संशोधित प्राथमिक संरक्षण क्षेत्रों को अंतिम रूप दिया गया है:
- प्राथमिक क्षेत्रों में नवीकरणीय अवसंरचना पर प्रतिबंध
- इन क्षेत्रों में नई ओवरहेड बिजली ट्रांसमिशन लाइनें केवल विशेष रूप से चिन्हित पावर कॉरिडोरों में ही लगाई जा सकेंगी।
- 2 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली पवन और सौर परियोजनाओं को प्राथमिक संरक्षण क्षेत्रों में लगाने पर प्रतिबंध होगा, ताकि पक्षियों के मरने का जोखिम न्यूनतम हो।
- इन क्षेत्रों में नई ओवरहेड बिजली ट्रांसमिशन लाइनें केवल विशेष रूप से चिन्हित पावर कॉरिडोरों में ही लगाई जा सकेंगी।
- ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर का पुनर्संरेखण
- GEC अब समर्पित और संकरे कॉरिडोरों से होकर गुजरेगा, जिससे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के मुख्य आवास क्षेत्रों को बचाया जा सके।
- उदाहरण के लिए, राजस्थान में डेज़र्ट नेशनल पार्क के दक्षिण में 5 किलोमीटर चौड़े कॉरिडोर चिन्हित किए गए हैं।
- कई उच्च-क्षमता वाली ट्रांसमिशन लाइनों को पुनः मार्गित करना, भूमिगत करना या चरणबद्ध रूप से विलंबित करना आवश्यक हो सकता है, जिससे संचालन और लागत संबंधी चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं।
- GEC अब समर्पित और संकरे कॉरिडोरों से होकर गुजरेगा, जिससे ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के मुख्य आवास क्षेत्रों को बचाया जा सके।
- समय-सीमा और अनुपालन
- प्राथमिक संरक्षण क्षेत्रों में मौजूद मौजूदा उच्च-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों को दो वर्षों के भीतर भूमिगत किया जाना या उनका मार्ग बदलना अनिवार्य है।
- गुजरात में कुछ ट्रांसमिशन परिसंपत्तियों को अनुपालन के लिए अतिरिक्त समय-सीमा 2028 तक दी गई है।
- प्राथमिक संरक्षण क्षेत्रों में मौजूद मौजूदा उच्च-वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों को दो वर्षों के भीतर भूमिगत किया जाना या उनका मार्ग बदलना अनिवार्य है।
- तकनीकी और नियामक संतुलन
- न्यायालय ने सभी बिजली लाइनों को सार्वभौमिक रूप से भूमिगत करने का आदेश नहीं दिया, क्योंकि तकनीकी, भूवैज्ञानिक और वित्तीय सीमाएँ हैं।
- बस्तियों के पास छोटी वितरण लाइनों के लिए सीमित छूट दी गई है, जहाँ भूमिगत करना व्यावहारिक नहीं होगा।
- न्यायालय ने सभी बिजली लाइनों को सार्वभौमिक रूप से भूमिगत करने का आदेश नहीं दिया, क्योंकि तकनीकी, भूवैज्ञानिक और वित्तीय सीमाएँ हैं।
- संरक्षण क्षेत्र और ‘नो-गो’ क्षेत्र
महत्त्व:
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- नई योजना-दृष्टि: इस निर्णय के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण को सीधे ऊर्जा और अवसंरचना योजना का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है।
- नियामक स्पष्टता: परियोजनाओं को विकसित करने वालों के लिए स्पष्ट दिशा और नियम तय किए गए हैं, साथ ही संवेदनशील क्षेत्रों में कड़े पर्यावरणीय मानक सुनिश्चित किए गए हैं।
- संरक्षण को प्राथमिकता: यह कदम संकटग्रस्त प्रजातियों की सुरक्षा के संवैधानिक दायित्व को मजबूत करता है।
- जलवायु और जैव विविधता का संतुलन: यह निर्णय दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों में वन्यजीव और जैव विविधता संरक्षण की अनदेखी नहीं की जा सकती, बल्कि दोनों का संतुलित समन्वय आवश्यक है।
- नई योजना-दृष्टि: इस निर्णय के माध्यम से जैव विविधता संरक्षण को सीधे ऊर्जा और अवसंरचना योजना का अभिन्न हिस्सा बनाया गया है।
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय का 2025 का यह निर्णय भारत की नवीकरणीय ऊर्जा नीति और शासन व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव को दर्शाता है। यह ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर को पूरी तरह रोकता नहीं है, लेकिन अवसंरचना योजना में स्पष्ट और बाध्यकारी पारिस्थितिक सीमाएँ स्थापित करता है। यह फैसला एक मूल सिद्धांत को रेखांकित करता है—भारत का ऊर्जा संक्रमण जैव विविधता की कीमत पर नहीं, बल्कि विकास और संरक्षण के संतुलित सह-अस्तित्व के माध्यम से ही आगे बढ़ना चाहिए।

