सन्दर्भ:
हाल ही में अरण्यकम नेचर फाउंडेशन नामक एक एनजीओ द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला है कि केरल में लगभग 20,000 से 30,000 गोल्डन जैकल्स (वैज्ञानिक नाम: Canis aureus naria) पाए जाते हैं। यह राज्य में इस जानवर पर किया गया सबसे विस्तृत अध्ययन है। अध्ययन से पता चलता है कि ये सियार केवल जंगलों में नहीं, बल्कि गांवों, कस्बों और खेतों में भी रहते हैं।
अध्ययन के बारे में:
- अध्ययन में 2,200 से अधिक लोगों ने भाग लिया।
- यह अध्ययन केरल के 874 गांवों में किया गया।
- 5,000 से अधिक सियारों की उपस्थिति दर्ज की गई।
प्रमुख निष्कर्ष:
- केवल 2% सियार ही संरक्षित वन क्षेत्रों में देखे गए।
- वे अधिकतर निचले क्षेत्रों (200 मीटर से नीचे की ऊँचाई पर) पाए गए।
- आमतौर पर पाए जाने वाले स्थान:
- नारियल के बागान – 24%
- ग्रामीण बस्तियाँ – 10%
- शहरी क्षेत्र – 5.6%
यह दिखाता है कि सियार इंसानों के आसपास रहने में अच्छी तरह ढल चुके हैं।
गोल्डन जैकल (सियार) के बारे में:
- वैज्ञानिक नाम: कैनिस ऑरियस नारिया (Canis aureus naria)
- इन्हें कॉमन जैकल या सामान्य सियार भी कहते हैं।
- मध्यम आकार का जानवर, जो छोटे भेड़िए जैसा दिखता है।
व्यवहार:
- इंसानों वाले क्षेत्रों में ये रात में सक्रिय (निशाचर) रहते हैं।
- दूरदराज क्षेत्रों में दिन में भी सक्रिय हो सकते हैं।
- जोड़े के रूप में रहते हैं।
- शरण के लिए चट्टानों की दरारों या खुदाई की गई बिलों का उपयोग करते हैं।
भोजन की आदतें:
- सर्वाहारी (वनस्पति और मांस दोनों खाते हैं)।
- छोटे जानवर, फल और बचे हुए भोजन खाते हैं।
आवास:
- नदियों, झीलों, नहरों, समुद्री किनारों और घाटियों के पास रहते हैं।
- पहाड़ियों और ऊँचे इलाकों में कम मिलते हैं।
वितरण (Distribution):
- उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण-पूर्वी यूरोप और दक्षिण एशिया (म्यांमार तक)।
- भारत में हिमालय की तलहटी से लेकर पश्चिमी घाट तक पाए जाते हैं।
संरक्षण स्थिति:
प्राधिकरण |
स्थिति |
IUCN |
Least Concern (कम चिंता का विषय) |
CITES |
परिशिष्ट III (Appendix III) |
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 |
अनुसूची-I (सबसे उच्च सुरक्षा स्तर) |
हालांकि उन्हें कानूनी सुरक्षा प्राप्त है, फिर भी उन्हें संरक्षण योजनाओं में ज़्यादा महत्व नहीं दिया जाता।
प्रमुख खतरे:
- मुर्गी पालन पर हमला: सियार घरेलू मुर्गियों पर हमला करते हैं, जिससे किसानों से टकराव होता है।
- रेबीज (Rabies): कुछ सियारों में रेबीज पाया गया है, जो जानवरों और इंसानों के लिए खतरनाक है।
- कचरा खाना: विशेषकर तटीय क्षेत्रों में सियार जैविक कचरा खाते हैं, जिससे उनकी सेहत और सार्वजनिक स्वच्छता पर असर पड़ता है।
- आवारा कुत्तों से संकरण (Hybridisation): ये आवारा कुत्तों से भी प्रजनन कर सकते हैं, जिससे इनकी नस्ल की शुद्धता प्रभावित होती है।
निष्कर्ष:
यह अध्ययन दिखाता है कि केरल में सियार मुख्य रूप से जंगलों के बाहर रहते हैं – खेतों, गांवों और कस्बों में। इसलिए, संरक्षण नीति केवल वन क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।
सियारों को बचाने और संघर्ष से बचने के लिए:
- कचरे के प्रबंधन में सुधार जरूरी है।
- स्थानीय लोगों को इनके पारिस्थितिकीय महत्व के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए।
- संकरण और रोगों की निगरानी जरूरी है।
यह अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि भारत में इंसान और वन्यजीव किस तरह साथ रहते हैं।