16 जून 2025 को संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) और विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने एक संयुक्त रिपोर्ट जारी की, जिसमें सूडान, दक्षिण सूडान, माली, हैती और फिलिस्तीन (गाजा) को सबसे गंभीर भुखमरी से प्रभावित देश बताया गया है।
· रिपोर्ट का शीर्षक "हंगर हॉटस्पॉट्स: FAO-WFP अर्ली वॉर्निंग ऑन एक्यूट फूड इनसिक्योरिटी" है। इसमें बताया गया है कि युद्ध, आर्थिक संकट और जलवायु से जुड़ी आपदाएं वर्तमान समय में भुखमरी के प्रमुख कारण बन रही हैं।
सबसे ज़्यादा प्रभावित देश:
· सूडान: 2024 के भीषण अकाल के बाद सूडान अब भी लगातार संघर्ष और बड़े पैमाने पर जनविस्थापन से जूझ रहा है। वर्तमान में लगभग 2.46 करोड़ लोग गंभीर खाद्य संकट (IPC फेज 3 या उससे ऊपर) की स्थिति में हैं, जबकि करीब 6.37 लाख लोग बेहद भयावह स्तर (IPC फेज 5) की भुखमरी का सामना कर रहे हैं।
· दक्षिण सूडान: अप्रैल से जुलाई 2025 के बीच लगभग 77 लाख लोग (जो देश की कुल जनसंख्या का करीब 57% हैं) भारी खाद्य संकट की स्थिति में आ सकते हैं। लगभग 63,000 लोगों को अकाल जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है, जिसका कारण बाढ़, आर्थिक समस्याएं और राजनीतिक अस्थिरता है।
· माली: जून से अगस्त 2025 के दौरान करीब 2,600 लोगों को भुखमरी का सीधा खतरा है। यहां सशस्त्र संघर्ष और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने स्थिति को और गंभीर बना दिया है।
· फिलिस्तीन (गाजा): गाजा पट्टी के सभी 21 लाख लोग गंभीर खाद्य असुरक्षा की स्थिति में हैं। इनमें से लगभग 5 लाख लोगों पर सितंबर 2025 तक अकाल की गंभीर स्थिति बन सकती है। लगातार सैन्य कार्रवाई और नाकेबंदी के कारण यहां खाद्य आपूर्ति पूरी तरह ख़राब हो गई है।
· हैती: हैती में गिरोहों की हिंसा और अराजकता के कारण हजारों लोग अपने घर छोड़ने पर मजबूर हुए हैं। इस समय करीब 8,400 लोग बेहद गंभीर भुखमरी की स्थिति में हैं।
व्यापक वैश्विक चिंता:
· रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि 13 अन्य देशों में भी हालात लगातार बिगड़ रहे हैं। इनमें से 12 देशों में सशस्त्र संघर्ष ही खाद्य असुरक्षा का प्रमुख कारण है।
· सबसे गंभीर रूप से प्रभावित देश “यमन, कांगो (DRC), म्यांमार और नाइजीरिया हैं। कांगो में हाल ही में हिंसा फिर से तेज़ हुई है, जबकि नाइजीरिया में 2025 में खराब मौसम ने हालात और बिगाड़ दिए हैं।
· अन्य संकटग्रस्त देश “बुर्कीना फासो, चाड, सोमालिया और सीरिया हैं, जहां हालात लगातार चिंताजनक बने हुए हैं।
· इसके विपरीत, कुछ देशों जैसे इथियोपिया, केन्या, मोज़ाम्बिक, जिम्बाब्वे और लेबनान में हालात में कुछ हद तक अस्थायी सुधार देखा गया है। इसका श्रेय अच्छी फसल और संघर्ष में कमी को दिया जा रहा है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि ये सुधार अभी भी बेहद नाजुक हैं और किसी भी समय उलट सकते हैं।
खाद्य असुरक्षा के मुख्य कारण:
1. संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता: युद्ध और हिंसक झड़पें न केवल खेती-बाड़ी को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि सड़कों, गोदामों और बाजार जैसे बुनियादी ढांचे को भी नष्ट कर देती हैं। इसके कारण लोग अपने घरों से बेघर हो जाते हैं और खाद्य आपूर्ति बुरी तरह बाधित हो जाती है।
2. आर्थिक संकट: तेज़ महंगाई, बढ़ती बेरोज़गारी और कमजोर सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के चलते करोड़ों लोग आवश्यक खाद्य सामग्री तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। कई परिवारों के लिए रोज़ का भोजन जुटाना भी कठिन हो गया है।
3. जलवायु से जुड़ी आपदाएं: सूखा, बाढ़ और मौसम की अनिश्चितता फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रही हैं। ला नीना जैसी जलवायु घटनाएं विशेष रूप से पूर्वी अफ्रीका में सूखे की स्थिति को और भी गंभीर बना सकती हैं।
4. मानवता सहायता की सीमित पहुंच: संघर्ष प्रभावित इलाकों में राहत और सहायता पहुंचाना बहुत मुश्किल हो जाता है। सड़कों और पुलों की क्षति, साथ ही सुरक्षा और अनुमति की कमी के कारण मानवीय मदद समय पर ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाती।
सुझाव और सिफारिशें:
• मानवीय सहायता की पहुंच सुनिश्चित करना: संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में राहत सामग्री पहुंचाने के लिए राजनीतिक संवाद को बढ़ावा देना और सड़कों, गोदामों व परिवहन सुविधाओं जैसे आधारभूत ढांचे में सुधार करना आवश्यक है।
• प्रभावी प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली विकसित करना: मौसम, बाजार के रुझान और संघर्ष की स्थितियों पर समय पर निगरानी रखकर संकट आने से पहले ही तैयारी की जानी चाहिए।
• जलवायु-स्थिर कृषि को प्रोत्साहित करना: सूखा-प्रतिरोधी फसलों, आधुनिक सिंचाई प्रणालियों और मृदा संरक्षण तकनीकों को बढ़ावा देकर खेती को जलवायु झटकों के प्रति अधिक सक्षम बनाया जाए।
• आर्थिक रूप से भोजन को सुलभ बनाना: सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का विस्तार, खाद्य वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता और ग्रामीण क्षेत्रों में बाजार तक आसान पहुंच सुनिश्चित करना ज़रूरी है।
• शांति और स्थिरता की दिशा में प्रयास: संघर्ष के मूल कारणों को सुलझाने के लिए संवाद, बेहतर शासन और स्थानीय शांति निर्माण पहलों को सहयोग देना आवश्यक है।
• पोषण-केंद्रित राहत उपाय अपनाना: गर्भवती महिलाओं, बच्चों और कुपोषित व्यक्तियों के लिए पोषणयुक्त भोजन, आवश्यक सप्लीमेंट और आहार संबंधी जागरूकता कार्यक्रम लागू किए जाएं।
• स्थानीय क्षमताओं का सशक्तिकरण: स्थानीय समुदायों, संगठनों और संस्थाओं को संसाधन, प्रशिक्षण और भागीदारी के माध्यम से सक्षम बनाना ताकि वे अपनी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।
निष्कर्ष:
यह रिपोर्ट वैश्विक समुदाय का ध्यान उन क्षेत्रों की ओर केंद्रित करती है, जो गंभीर भुखमरी और खाद्य असुरक्षा से जूझ रहे हैं। यह स्पष्ट संदेश देती है कि भविष्य में अकाल जैसी भयावह स्थितियों को रोकने और लंबे समय तक टिकाऊ खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए तत्काल, समन्वित और व्यापक वैश्विक कार्रवाई अत्यंत आवश्यक है।