संदर्भ:
हाल ही में बर्लिन में आयोजित वर्ल्ड हेल्थ समिट में ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ (GBD) रिपोर्ट जारी की गई और इसके निष्कर्षों को द लैंसेट (The Lancet) में प्रकाशित किया गया। यह रिपोर्ट एक अहम परिवर्तन की ओर संकेत करती है, जिसके अनुसार भारत में मृत्यु के कारणों में अब संक्रामक बीमारियों के बजाय गैर-संक्रामक रोगों (NCDs) का प्रभाव अधिक दिखाई देने लगा है।
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
1. मृत्यु दर और जीवन प्रत्याशा की स्थिति
· कोविड-19 के असर के बाद वैश्विक स्तर पर जीवन प्रत्याशा में फिर से सुधार दर्ज किया गया है। वर्ष 2023 में महिलाओं की औसत जीवन प्रत्याशा 76.3 वर्ष और पुरुषों की 71.5 वर्ष रही।
· वर्ष 1950 की तुलना में अब तक वैश्विक आयु-मानकीकृत मृत्यु दर (ASMR) में लगभग 67% की कमी आई है।
· रिपोर्ट में शामिल सभी 204 देशों और क्षेत्रों में कुल मृत्यु दर में गिरावट देखी गई, जो वैश्विक स्वास्थ्य प्रणालियों में सुधार को दर्शाता है।
2. गैर-संक्रामक रोगों (NCDs) का बढ़ता प्रभाव
· अब वैश्विक स्तर पर होने वाली कुल मौतों और बीमारियों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा गैर-संक्रामक रोगों के कारण है।
· इनमें मुख्य रूप से हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और फेफड़ों से जुड़ी दीर्घकालिक बीमारियाँ शामिल हैं।
3. युवाओं और किशोरों की स्थिति: एक उभरती चिंता
· कुल मृत्यु दर भले ही कम हुई हो, लेकिन किशोरों और युवाओं (15-35 आयु वर्ग) में मृत्यु दर कई क्षेत्रों में या तो स्थिर हो गई है या बढ़ती प्रवृत्ति दिखा रही है।
· उत्तर अमेरिका और लैटिन अमेरिका के कुछ हिस्सों में युवा महिलाओं में आत्महत्या, नशे और शराब के सेवन से होने वाली मौतों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
· इसके विपरीत, उप-सहारा अफ्रीका में युवाओं की मौत का प्रमुख कारण अभी भी संक्रामक रोग, दुर्घटनाएँ और मातृ स्वास्थ्य संबंधी जटिलताएँ हैं।
भारत से जुड़ी मुख्य जानकारियाँ:
रिपोर्ट बताती है कि भारत में स्वास्थ्य से जुड़े कारणों में एक महत्वपूर्ण महामारी विज्ञान संबंधी परिवर्तन दर्ज हुआ है, इसके अनुसार अब भारत में अधिक मृत्यु के प्रमुख कारणों में संक्रामक बीमारियों की जगह गैर-संक्रामक रोग (NCDs) शामिल हैं।
· 1990 में, भारत में सबसे अधिक मौतें दस्त (Diarrhoeal Diseases) से होती थीं। उस समय आयु-मानकीकृत मृत्यु दर (ASMR) 300.53 प्रति लाख थी।
· 2023 तक, भारत में मृत्यु का प्रमुख कारण इस्केमिक हृदय रोग बन गया, जिसका ASMR 127.82 प्रति लाख दर्ज किया गया।
· इसके बाद:
o क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी): एएसएमआर: 99.25 प्रति लाख
o स्ट्रोक: एएसएमआर: 92.88 प्रति लाख
· कोविड-19, जो 2021 में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण था, 2023 में तेजी से गिरकर 20वें स्थान पर पहुंच गया।
यह प्रवृत्ति वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप है, जहाँ अब हृदय रोग, स्ट्रोक और मधुमेह जैसे NCDs मृत्यु और बीमारी के प्रमुख कारणों के रूप में उभर रहे हैं।
ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) रिपोर्ट के बारे में:
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- ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) रिपोर्ट का समन्वय अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा किया जाता है।
- इसमें दुनिया भर के 16,500 से अधिक वैज्ञानिकों का नेटवर्क शामिल है।
- इस अध्ययन में 3 लाख से अधिक डेटा स्रोतों का उपयोग किया जाता है।
- यह रिपोर्ट मृत्यु, विकलांगता (DALYs), बीमारी की व्यापकता और आयु, लिंग, क्षेत्र एवं समय के आधार पर जोखिम कारकों का वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
- ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) रिपोर्ट का समन्वय अमेरिका स्थित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) द्वारा किया जाता है।
नीति और शासन पर प्रभाव:
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- सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना: अब स्वास्थ्य ढांचे को NCDs की जांच, शुरुआती पहचान और दीर्घकालिक देखभाल पर केंद्रित करना होगा।
- रोकथाम आधारित स्वास्थ्य देखभाल: इसके लिए आहार, व्यायाम, तंबाकू-निरोध और जीवनशैली सुधार को लेकर जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।
- स्वास्थ्य वित्त पोषण: विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश बढ़ाना होगा ताकि पुरानी बीमारियों का प्रबंधन किया जा सके।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य योजना: अब स्वास्थ्य ढांचे को NCDs की जांच, शुरुआती पहचान और दीर्घकालिक देखभाल पर केंद्रित करना होगा।
निष्कर्ष:
भारत की स्वास्थ्य प्रोफ़ाइल में एक बड़ा परिवर्तन स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। अब जबकि संक्रामक बीमारियाँ मृत्यु का प्रमुख कारण नहीं रह गई हैं, हृदय रोग, स्ट्रोक और COPD जैसे गैर-संक्रामक रोग (NCDs) एक गंभीर नई चुनौती के रूप में उभरे हैं। इस महामारी विज्ञान संबंधी बदलाव के मद्देनज़र ज़रूरी है कि भारत की स्वास्थ्य प्रणाली का फोकस केवल जीवन को लंबा करने पर नहीं, बल्कि जीवन को स्वस्थ और गुणवत्तापूर्ण बनाने पर भी हो। इसके लिए अब रोकथाम आधारित दृष्टिकोण, समय पर जांच और समग्र तथा एकीकृत स्वास्थ्य रणनीति अपनाना अनिवार्य हो गया है।
