सन्दर्भ:
हाल ही में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) और केरल स्टेट कोस्टल एरिया डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (KSCADC) द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि जियोट्यूबिंग तकनीक तटीय कटाव को रोकने में अत्यंत प्रभावी है। यह अध्ययन केरल के तिरुवनंतपुरम जिले के पूंथुरा तट पर किया गया, जहां समुद्र के भीतर जियोट्यूब तकनीक का उपयोग करते हुए एक विशेष ब्रेकवॉटर प्रणाली स्थापित की गई है।
जियोट्यूबिंग तकनीक क्या है?
- इस तकनीक में मजबूत और टिकाऊ कपड़े की बनी बड़ी-बड़ी ट्यूबों का उपयोग किया जाता है, जिन्हें रेत या गारे (स्लरी) से भरा जाता है और उन्हें तट के किनारे या समुद्र में खास जगहों पर रखा जाता है। ये ट्यूबें समुद्र की लहरों की ऊर्जा को सोखने और कमजोर करने का काम करती हैं, जिससे तट पर उनका कटाव करने वाला प्रभाव कम हो जाता है। लहरों की ताकत कम होने से समुद्र में मौजूद रेत वहीं जमने लगती है, जिससे तट पर रेत का जमाव बढ़ता है और एक चौड़ा, मजबूत समुद्र किनारा बनता है।
- कंक्रीट की दीवारों या चट्टानों जैसे पारंपरिक तरीकों के मुकाबले, जियोट्यूब सस्ते, लचीले और पर्यावरण के अनुकूल होते हैं। इसलिए ये उन इलाकों में ज्यादा उपयोगी हैं जहां समुद्री स्थितियां लगातार बदलती रहती हैं।
भारत के तटों के लिए इसके मायने:
आंकड़ों के अनुसार, भारत के लगभग 33.6% तटीय क्षेत्र किसी न किसी रूप में तटीय कटाव की समस्या से प्रभावित हैं। ऐसे में जियोट्यूबिंग तकनीक की सफलता एक अहम उपलब्धि है। यह न केवल एक प्रभावी इंजीनियरिंग समाधान प्रदान करती है, बल्कि यह इस ओर भी इशारा करती है कि भारत अब प्रकृति-आधारित, पर्यावरण-संवेदनशील और सतत तटीय प्रबंधन की दिशा में गंभीर कदम उठा रहा है।
भारत में तटीय कटाव को रोकने के लिए सरकारी पहलें और उपाय:
भारत का समुद्र तट लगभग 7,500 किलोमीटर लंबा है और यह कटाव, समुद्र-स्तर में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं से तेजी से प्रभावित हो रहा है। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र और राज्य सरकारें कई नीतिगत और वैज्ञानिक योजनाएं चला रही हैं, जिनका उद्देश्य तटीय संरक्षण, सतत विकास और तटीय समुदायों को सशक्त बनाना है।
1. इंटीग्रेटेड कोस्टल जोन मैनेजमेंट प्रोजेक्ट (ICZMP)
• उद्देश्य: तटीय और समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों की रक्षा करना और उनका सतत प्रबंधन करना, साथ ही तटीय समुदायों की आजीविका को मजबूत बनाना।
• कार्यान्वयन: यह वर्ल्ड बैंक द्वारा समर्थित परियोजना है, जो पहले चरण में गुजरात, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में चल रही है। भविष्य में इसे अन्य राज्यों में भी लागू किया जाएगा।
2. कोस्टल रेगुलेशन ज़ोन (CRZ) अधिसूचना, 2019
• जारीकर्ता: पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC)।
• उद्देश्य: तटीय संरक्षण और विकास कार्यों के बीच संतुलन बनाए रखना तथा लोगों की आजीविका सुनिश्चित करना।
• मुख्य प्रावधान:
o पारिस्थितिकी के अनुसार संवेदनशील क्षेत्रों में ‘नो डेवलपमेंट ज़ोन’ (NDZ) की स्थापना करना।
o तटीय इलाकों में निर्माण और औद्योगिक गतिविधियों को नियंत्रित करना।
o टिकाऊ तकनीकों से कटाव रोकने के उपायों को प्रोत्साहन देना।
o दीर्घकालिक योजना के लिए ‘शोरलाइन मैनेजमेंट प्लान’ (SMP) और ‘कोस्टल ज़ोन मैनेजमेंट प्लान’ (CZMP) जैसे औज़ारों को शामिल करना।
निष्कर्ष:
जियोट्यूबिंग परियोजना उन क्षेत्रों के लिए एक मॉडल बन सकती है जहाँ तटीय कटाव की समस्या गंभीर है। यह तकनीक आधुनिक इंजीनियरिंग और पर्यावरणीय सोच का मेल है, जिसमें समुद्र की प्राकृतिक ताकत को रोका नहीं जाता, बल्कि उसका समझदारी से उपयोग करके तटों को मजबूत और टिकाऊ बनाया जाता है।