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Blog / 19 May 2025

जीनोम-संपादित चावल

सन्दर्भ:

हाल ही में भारत ने एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल करते हुए जीनोम-संपादित चावल की किस्में विकसित करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। यह उपलब्धि कृषि क्षेत्र में नवाचार और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने उन्नत जीनोम संपादन तकनीकों का उपयोग करते हुए दो जलवायु-रोधक (climate-resilient) चावल की किस्में “DRR धन 100 (कमला) और पूसा डीएसटी राइस 1” विकसित की हैं।

नई चावल की किस्मों के बारे में:

1. DRR धन 100 (कमला): यह किस्म प्रसिद्ध हाई-यील्डिंग (अधिक उत्पादन देने वाली) ग्रीन राइस सांबा मसूरी से विकसित की गई है।

2. पूसा डीएसटी राइस 1: यह किस्म मरुतेरु 1010 (MTU1010) से विकसित की गई है।

चावल की इन किस्मों की विशेषताएँ:

कमला (DRR धन 100):

  • उपज: 5.37 टन प्रति हेक्टेयर (जबकि सांबा मसूरी की उपज 4.5 टन प्रति हेक्टेयर है)
  • गुण:
    • सूखा सहन करने की क्षमता
    • उच्च नाइट्रोजन उपयोग दक्षता
    • 20 दिन पहले पककर तैयार हो जाती है
  • फायदे:
    • पानी और खाद की बचत
    • जल्दी कटाई के कारण मीथेन उत्सर्जन में कमी

पूसा डीएसटी राइस 1:

  • उपज: 3,508 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (इनलैंड लवणता में 9.66% अधिक उपज)
  • तनाव सहनशीलता (Stress Performance):
    • क्षारीय परिस्थितियों में 14.66% अधिक उपज
    • तटीय लवणता में 30.4% अधिक लाभ

अपनाई गई तकनीक:

·        इन चावल की किस्मों को विकसित करने में वैज्ञानिकों ने साइट-डायरेक्टेड न्यूक्लिएज 1 (SDN-1) और साइट-डायरेक्टेड न्यूक्लिएज 2 (SDN-2) तकनीकों का उपयोग किया है। ये तकनीकें आनुवंशिक संरचना में बिना किसी बाहरी डीएनए को जोड़े बहुत ही सटीक बदलाव करने में सक्षम होती हैं।

·        इसी कारण ये किस्में जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों की श्रेणी में नहीं आतीं, क्योंकि इनमें किसी विदेशी जीन (foreign gene) का प्रयोग नहीं किया गया है। चूंकि SDN-3 तकनीक का उपयोग नहीं हुआ, इसलिए ये परंपरागत GM फसलों से भिन्न हैं।

·        नियमों की दृष्टि से भी यह अंतर काफी महत्वपूर्ण है। भारत सहित कई देशों ने SDN-1 और SDN-2 तकनीकों को, कुछ शर्तों के अंतर्गत, जैव सुरक्षा नियमों से मुक्त कर दिया है क्योंकि इन्हें अधिक सुरक्षित, सटीक और प्राकृतिक माना जाता है।

चिंताएँ:

इस उपलब्धि के बावजूद कुछ विवाद और चिंताएँ सामने आई हैं:

·        जल्दबाज़ी में किए गए दावे: किसानों के प्रतिनिधि वेणुगोपाल बदरवाड़ा ने ICAR के दावों को समय से पहले और भ्रामक बताया है। उन्होंने इस संबंध में पारदर्शी आंकड़ों और जवाबदेही की मांग की है।

·        बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) को लेकर चिंता: जेनेटिकली मॉडिफाइड-मुक्त भारत अभियान ने जीन-संपादन तकनीकों के बौद्धिक संपदा अधिकारों के स्वामित्व पर चिंता जताई है। उनका कहना है कि यदि ये तकनीकें निजी कंपनियों के स्वामित्व में रहीं, तो इससे किसानों की बीज संप्रभुता और खाद्य संप्रभुता पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।

निष्कर्ष:

जीनोम-संपादित चावल की ये नई किस्में भारतीय कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने की क्षमता रखती हैं। ये न केवल अधिक उपज देने वाली हैं, बल्कि जलवायु-रोधक भी हैं और जल एवं उर्वरक संरक्षण में भी मददगार साबित होंगी। सभी आवश्यक अनुमतियाँ प्राप्त होने के बाद, इन किस्मों का व्यापक स्तर पर बीज उत्पादन अगले तीन फसल चक्रों में शुरू किया जा सकता है।