संदर्भ:
हीमोफीलिया ए के बारे में:
- हीमोफीलिया ए एक दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी है, जिसमें शरीर में रक्त के थक्के बनाने वाले फैक्टर VIII की कमी हो जाती है, जिससे लंबे समय तक रक्तस्राव होता है।
- यह रोग जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करता है और विशेष रूप से सीमित संसाधनों वाले क्षेत्रों में उपचार को एक बड़ी चुनौती बना देता है।
- भारत में लगभग 1,36,000 लोग इस बीमारी से प्रभावित हैं, जो दुनिया में हीमोफीलिया ए के मामलों की दृष्टि से दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है।
जीन थेरेपी में सफलता:
- वेल्लोर स्थित क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (CMC) के सेंटर फॉर स्टेम सेल रिसर्च (CSCR) और बेंगलुरु स्थित बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च एंड इनोवेशन काउंसिल के इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजनरेटिव मेडिसिन (BRIC-inStem) के वैज्ञानिकों ने मिलकर भारत की पहली मानव जीन थेरेपी विकसित की है।
- इस नवाचार में लेंटिवायरल वेक्टर के माध्यम से फैक्टर VIII जीन की एक कार्यशील प्रति रोगी की रक्त स्टेम कोशिकाओं में प्रविष्ट कराई जाती है। इसके बाद इन संशोधित कोशिकाओं को मरीज के शरीर में पुनः प्रतिरोपित किया जाता है, जिससे शरीर स्वाभाविक रूप से क्लॉटिंग फैक्टर का उत्पादन करने लगता है।
- इस परीक्षण में 22 से 41 वर्ष की आयु के प्रतिभागियों को शामिल किया गया। कुल 81 महीनों की निगरानी अवधि के दौरान, सभी प्रतिभागियों में वार्षिक रक्तस्राव दर शून्य रही और फैक्टर VIII का उत्पादन निरंतर बना रहा, जिससे नियमित इन्फ्यूजन की आवश्यकता समाप्त हो गई।
महत्व और प्रभाव:
• यह उपलब्धि भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य और जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल देश के निर्माण में योगदान देती है, बल्कि अर्थव्यवस्था और सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे को आकार देने में जैव-प्रौद्योगिकी की परिवर्तनकारी भूमिका को भी रेखांकित करती है।
• भारत का जैव-प्रौद्योगिकी क्षेत्र पिछले एक दशक में 16 गुना बढ़ते हुए 2024 में $165.7 बिलियन तक पहुँच चुका है और 2030 तक इसके $300 बिलियन के स्तर तक पहुँचने का अनुमान है।
चुनौतियाँ और भविष्य की संभावनाएँ:
हालांकि इस जीन थेरेपी के परिणाम बेहद उत्साहजनक रहे हैं, लेकिन इसे व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराने में कई चुनौतियाँ हैं। ऊँची लागत, विशेष चिकित्सा सुविधाओं की सीमित उपलब्धता और उन्नत स्वास्थ्य अवसंरचना की आवश्यकता जैसे प्रमुख अवरोध इसके प्रसार में बाधक हैं।
इन चुनौतियों को कम करने के लिए प्रभावी नीतिगत निर्णयों, स्वास्थ्य सेवाओं के ढांचे के सुदृढ़ीकरण और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना आवश्यक होगा।
भविष्य की ओर देखते हुए, इस जीन थेरेपी की सफलता अन्य आनुवांशिक विकारों के उपचार के लिए भी अनुसंधान और नवाचार के नए द्वार खोलती है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग और अन्य साझेदार संस्थाओं के सतत समर्थन से भारत जैव-प्रौद्योगिकी नवाचार के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व स्थापित करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिससे अनेक रोगियों को नई आशा मिल सकती है।
निष्कर्ष:
हीमोफीलिया ए के लिए जीन थेरेपी में हासिल की गई यह सफलता केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है, बल्कि भारत की जैव-चिकित्सा अनुसंधान में बढ़ती क्षमताओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुधार के प्रति उसकी गहरी प्रतिबद्धता का सशक्त प्रमाण भी है।