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Blog / 23 Aug 2025

अंगदान में लैंगिक न्याय

संदर्भ:

हाल ही में विश्व अंगदान दिवस 2025 की पूर्व संध्या पर, राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) ने भारत में अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक असमानता को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए। इसका उद्देश्य लंबे समय से मौजूद असंतुलन को सुधारना है, जहां महिलाएं अधिक अंगदान करती हैं, लेकिन उन्हें कम अंग प्राप्त होते हैं।

आँकड़े के अनुसार:

NOTTO (2019-2023) के अनुसार, भारत में जीवित अंगदाताओं में 63.8% महिलाएँ थीं, जबकि 69.8% अंग प्राप्तकर्ता पुरुष थे। इस अवधि में कुल 56,509 जीवित अंगदान हुए, जिनमें से 36,038 दान महिला दाताओं द्वारा किए गए, लेकिन केवल 17,041 अंग महिलाओं को प्रत्यारोपित किए गए। वहीं, 39,447 अंग पुरुष प्राप्तकर्ताओं को मिले।

NOTTO के नए निर्देशों के विषय में:

हाल ही में जारी 10-सूत्रीय परामर्श में, NOTTO ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं:

·         महिला प्राप्तकर्ताओं को प्राथमिकता देना, खासकर मृतक दाताओं की महिला रिश्तेदारों को, ताकि लैंगिक असमानता को कम किया जा सके।

·         प्रत्यारोपण और पुनर्प्राप्ति अस्पतालों में समन्वयकों के लिए स्थायी पद स्थापित करना।

·         सभी ट्रॉमा केंद्रों को अंग पुनर्प्राप्ति केंद्र के रूप में पंजीकृत करना।

·         आपातकालीन कर्मियों और एम्बुलेंस स्टाफ को संभावित मृतक दाताओं की पहचान और रिपोर्टिंग के लिए प्रशिक्षित करना, विशेषकर स्ट्रोक या सड़क दुर्घटना के मामलों में।

इन उपायों का उद्देश्य अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक समानता को सुनिश्चित करना और विशेष रूप से महिला रोगियों के लिए अंगों की उपलब्धता बढ़ाना है।

भारत में अंगदान को नियंत्रित करने वाला कानूनी ढाँचा:

मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 कानूनी और नैतिक ढाँचे को नियंत्रित करता है।

यह अधिनियम अंगों के व्यावसायिक लेन-देन पर प्रतिबंध लगाता है।

यह जीवित और मस्तिष्क-स्तंभ मृत शरीर के दान की अनुमति देता है।

ऊतक दान को शामिल करने के लिए 2011 में संशोधित किया गया।

सभी प्रत्यारोपण-संबंधित अस्पतालों को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत सर्वोच्च सरकारी निकाय (राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन) NOTTO से जोड़ा जाना चाहिए।

व्यापक अंगदान परिदृश्य:-

वैश्विक परिदृश्य:

·        विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विश्व में अंग प्रत्यारोपण की मांग का केवल 10% ही पूरा होता है। प्रति वर्ष लगभग 1.3 लाख प्रत्यारोपण होते हैं, जबकि लाखों लोगों को इसकी आवश्यकता होती है।

भारत की चुनौती:

·        भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1.8 लाख लोग अंतिम चरण की किडनी फेलियर से पीड़ित होते हैं, लेकिन प्रतिवर्ष केवल 12,000 किडनी प्रत्यारोपण ही होते हैं। अंगदान में मिथक, धार्मिक-सांस्कृतिक मान्यताएँ और जागरूकता की कमी प्रमुख बाधाएं हैं।

राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) के बारे में:

NOTTO, मानव अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम के तहत भारत का सर्वोच्च समन्वयकारी निकाय है। यह स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है और अंगदान तथा प्रत्यारोपण से जुड़ी सभी गतिविधियों का प्रबंधन करता है।

मुख्य कार्य:

·        NOTTO दाताओं और प्राप्तकर्ताओं की राष्ट्रीय रजिस्ट्री का प्रबंधन करता है, नैतिक दिशानिर्देश निर्धारित करता है, जागरूकता को बढ़ावा देता है और अंगों का उचित आवंटन सुनिश्चित करता है। यह पूरे भारत में ROTTO और SOTTO के साथ समन्वय करता है।

निष्कर्ष:

NOTTO की सलाह स्वास्थ्य सेवा में लैंगिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। दाताओं में महिलाओं की संख्या अधिक होने के बावजूद, प्राप्तकर्ताओं के रूप में उनका प्रतिनिधित्व कम है। यह सुझाव पूर्वाग्रह की संस्थागत स्वीकृति को पहचानते हुए समानता सुनिश्चित करने के लिए एक नीतिगत प्रतिक्रिया है।

हालांकि, इस पहल की सफलता निम्नलिखित बातों पर निर्भर करेगी:
लैंगिक भूमिकाओं और गलतफहमियों को चुनौती देने वाले व्यापक जागरूकता अभियान।
अस्पतालों की जवाबदेही सुनिश्चित करना और प्रभावी परामर्श सेवाओं का कार्यान्वयन।
इन उपायों के लिंग आधारित वितरण पर दीर्घकालिक प्रभाव की निरंतर निगरानी।