सन्दर्भ:
हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि जो भी व्यक्ति अनुसूचित जाति (SC) धर्म-आधारित पहचान से ईसाई धर्म अपनाता है, उसके स्वतः ही एससी से जुड़े आरक्षण लाभ समाप्त हो जाएंगे। यह निर्देश जितेन्द्र साहनी से जुड़े एक मामले में दिया गया है, जिन पर धार्मिक वैमनस्य फैलाने और अदालत में जाति व धर्म की गलत जानकारी देने का आरोप है।
मामले की पृष्ठभूमि:
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- आरोपी जितेन्द्र साहनी पर IPC की धारा 153-A (धार्मिक वैमनस्य) और 295-A (धार्मिक भावनाओं का अपमान) के तहत मामला दर्ज है। साहनी, जो मूल रूप से हिंदू थे, ईसाई धर्म अपना चुके थे, प्रार्थना सभाएँ आयोजित करते थे और कथित रूप से हिंदू देवताओं के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी करते थे।
- गवाह लक्ष्मण विश्वकर्मा के आधार पर FIR दर्ज हुई, जिन्होंने दावा किया कि साहनी ने लोगों को आर्थिक लाभ और सामाजिक सम्मान के नाम पर धर्मांतरण हेतु प्रेरित किया।
- लेकिन अदालत में दिए हलफनामे में साहनी ने स्वयं को हिंदू और SC बताया, जिससे विरोधाभास उत्पन्न हुआ।
- आरोपी जितेन्द्र साहनी पर IPC की धारा 153-A (धार्मिक वैमनस्य) और 295-A (धार्मिक भावनाओं का अपमान) के तहत मामला दर्ज है। साहनी, जो मूल रूप से हिंदू थे, ईसाई धर्म अपना चुके थे, प्रार्थना सभाएँ आयोजित करते थे और कथित रूप से हिंदू देवताओं के विरुद्ध आपत्तिजनक टिप्पणी करते थे।
अनुसूचित जाति स्थिति और धर्मांतरण पर संवैधानिक और कानूनी ढांचा:
· संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 (अनुच्छेद 341):
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- पैराग्राफ 3: "कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से भिन्न धर्म का दावा करता है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।"
- ईसाई या इस्लाम धर्म में परिवर्तित होने से अनुसूचित जाति (SC) की स्थिति समाप्त हो जाती है।
- पैराग्राफ 3: "कोई भी व्यक्ति जो हिंदू, सिख या बौद्ध धर्म से भिन्न धर्म का दावा करता है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।"
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· संविधान का अनुच्छेद 366(24):
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- यह अनुसूचित जातियों को अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित समूहों के रूप में परिभाषित करता है।
- अनुसूचित जाति पहचान कानूनी रूप से धर्म से अविभाज्य है।
- यह अनुसूचित जातियों को अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित समूहों के रूप में परिभाषित करता है।
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· SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम:
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- यह समान परिभाषाओं को अपनाता है, यह पुष्ट करता है कि जाति पहचान धर्म से जुड़ी हुई है।
- यह समान परिभाषाओं को अपनाता है, यह पुष्ट करता है कि जाति पहचान धर्म से जुड़ी हुई है।
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न्यायिक उदाहरण:
1. सूसई बनाम भारत संघ (1986):
1950 के SC आदेश में सूचीबद्ध जाति से परिवर्तित एक ईसाई धर्मावलंबी को पैराग्राफ 3 के तहत SC का दर्जा प्राप्त करने से रोक दिया गया है।
2. सी. सेल्वाराणी मामला:
बपतिस्मा (Baptism) और ईसाई धर्म में परिवर्तित होने पर, व्यक्ति अपनी मूल जाति का सदस्य नहीं रह जाता है।
केवल आरक्षण लाभों का दावा करने के लिए किया गया धर्मांतरण अनुमेय नहीं है क्योंकि यह आरक्षण के सामाजिक उद्देश्य को विफल करता है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ:
न्यायालय ने साहनी के खिलाफ मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। आरोपी को एफआईआर में ईसाई पादरी बताया गया था, लेकिन उसने अदालत में हिंदू SC होने का दावा किया जिससे उच्च न्यायालय ने असंगत पहचानों पर चिंता जताई।
· यह माना गया कि अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता) असंगत पहचानों को बनाए रखने की अनुमति नहीं देता है।
· धर्मांतरण के बाद SC लाभों को बनाए रखना "संविधान के साथ धोखाधड़ी" के बराबर होगा।
· निर्देश दिया कि निचली अदालत को धार्मिक और जातिगत पहचान में विसंगति की जाँच करनी चाहिए।
महत्व :
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- यह मामला धर्म और अनुसूचित जाति (SC) स्थिति के बीच के कानूनी संबंध को स्पष्ट करता है। यह सुप्रीम कोर्ट की पहले की व्यवस्थाओं को दोहराता है कि यदि कोई व्यक्ति ईसाई या इस्लाम में धर्मांतरण करता है, तो उसके SC दर्जे का स्वतः समाप्त माना जाएगा। आरक्षण लाभ सामाजिक-ऐतिहासिक वंचना पर आधारित हैं, न कि किसी व्यक्ति के केवल दावे पर। इसलिए किसी धर्मांतरण के बाद भी SC लाभ बनाए रखना संविधान की मंशा के विपरीत माना जाएगा।
- प्रशासनिक दृष्टि से यह मामला सरकार को यह संकेत देता है कि ऐसे मामलों में पहचान और स्थिति का सत्यापन अधिक सख्ती और पारदर्शिता के साथ किया जाना चाहिए, ताकि दुरुपयोग रोका जा सके।
- इस प्रकार अदालत ने स्पष्ट किया है कि धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (Article 25) व्यक्ति को दो विरोधाभासी पहचान बनाए रखने का अधिकार नहीं देता, और SC लाभ केवल उन्हीं को मिलने चाहिए जो संवैधानिक रूप से इसके पात्र हैं।
- यह मामला धर्म और अनुसूचित जाति (SC) स्थिति के बीच के कानूनी संबंध को स्पष्ट करता है। यह सुप्रीम कोर्ट की पहले की व्यवस्थाओं को दोहराता है कि यदि कोई व्यक्ति ईसाई या इस्लाम में धर्मांतरण करता है, तो उसके SC दर्जे का स्वतः समाप्त माना जाएगा। आरक्षण लाभ सामाजिक-ऐतिहासिक वंचना पर आधारित हैं, न कि किसी व्यक्ति के केवल दावे पर। इसलिए किसी धर्मांतरण के बाद भी SC लाभ बनाए रखना संविधान की मंशा के विपरीत माना जाएगा।
