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Blog / 13 Jun 2025

एटालिन जलविद्युत परियोजना को वन समिति से मंजूरी

संदर्भ:

हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की वन सलाहकार समिति (FAC) ने अरुणाचल प्रदेश की विवादास्पद एटालिन जलविद्युत परियोजना को सैद्धांतिक वन स्वीकृति प्रदान कर दी है। यह निर्णय ऐसे समय में लिया गया है जब इसी समिति ने 2022 में पर्यावरण और वन्यजीवों पर इसके संभावित दुष्प्रभावों को देखते हुए इस परियोजना को अस्वीकृत कर दिया था।

एटालिन जलविद्युत परियोजना के बारे में:

·        एटालिन जलविद्युत परियोजना 3,097 मेगावॉट क्षमता की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जिसे अरुणाचल प्रदेश की डिबांग घाटी में स्थापित किया जाना प्रस्तावित है, यह क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। यह परियोजना भारत की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं में से एक मानी जाती है। इसके लिए लगभग 1,175 हेक्टेयर वन भूमि का दोहन किया जाएगा और करीब 2.78 लाख पेड़ों की कटाई की जाएगी। इसी कारण यह परियोजना लंबे समय से स्थानीय समुदायों और पर्यावरणविदों के विरोध का केंद्र बनी हुई है।

·        यह एक रन-ऑफ-द-रिवर योजना है, जो ड्री और टालो नदियों (डिबांग नदी के स्थानीय नाम) पर आधारित है। यद्यपि इसमें बड़े जलाशय का निर्माण नहीं किया जाएगा, विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार की परियोजनाएं भी पहाड़ी नदी तंत्र के नाजुक पारिस्थितिकी संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं।

परियोजना स्थल की जैव विविधता:
यह परियोजना स्थल
असाधारण जैव विविधता वाले क्षेत्र में स्थित है, जहाँ कई दुर्लभ और संकटग्रस्त जीव-जंतु पाए जाते हैं, जैसे:

·         लुप्तप्राय प्रजातियाँ, जिनमें बाघ, हिम तेंदुआ, अल्पाइन कस्तूरी मृग, काला भालू और मिश्मी ताकिन शामिल हैं।

·         680 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ

·         यह वन भूमि पारंपरिक रूप से इदु मिश्मी जनजातीय समुदाय के अधीन रही है, जो इस परियोजना का लगातार विरोध करता आ रहा है।

वन सलाहकार समिति (FAC):

·         वन सलाहकार समिति एक वैधानिक निकाय है, जिसे वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के तहत गठित किया गया है।

·         यह समिति पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के अंतर्गत कार्य करती है।

·         इसका प्रमुख कार्य यह तय करना होता है कि किसी औद्योगिक या बुनियादी ढाँचा परियोजना के लिए वन भूमि का उपयोग किया जा सकता है या नहीं।

·         समिति किसी परियोजना को स्वीकृति या अस्वीकृति दे सकती है और यदि मंजूरी देती है तो वह कुछ नियत शर्तें भी निर्धारित कर सकती है।

FAC का परियोजना पर रुख:

·        दिसंबर 2022 में वन सलाहकार समिति (FAC) ने एटालिन परियोजना को मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। समिति ने इस आधार पर आपत्ति जताई कि परियोजना का प्रस्ताव, 2014 का पुराना प्रस्ताव है और इसके लिए जैव विविधता पर अद्यतन (अप-टू-डेट) अध्ययन आवश्यक है।

·        इसके अलावा, समिति ने इस क्षेत्र में प्रस्तावित अन्य जलविद्युत परियोजनाओं के संयुक्त पारिस्थितिकीय प्रभाव और 2017 में सुझाए गए बहु-ऋतु जैव विविधता अध्ययन (multi-seasonal biodiversity assessment) के अभाव को लेकर भी चिंता व्यक्त की थी।

·        हालांकि, बाद में अरुणाचल प्रदेश वन विभाग द्वारा प्रस्तुत जवाबों और कुछ उपलब्ध जैव विविधता अध्ययनों के आधार पर समिति ने अपना निर्णय बदलते हुए परियोजना को सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान कर दी।

जैव विविधता अध्ययन पर विवाद:

·        एटालिन परियोजना को मंजूरी देने में 2019 में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) द्वारा तैयार की गई जैव विविधता रिपोर्ट महत्वपूर्ण दस्तावेज रही। हालांकि, पहले वन सलाहकार समिति (FAC) ने इस रिपोर्ट की वैज्ञानिक विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए थे। समिति ने कहा कि यह अध्ययन केवल चार महीनों की अवधि तक सीमित था और इसमें सभी ऋतुओं को शामिल नहीं किया गया था, जो किसी पारिस्थितिकीय मूल्यांकन के लिए आवश्यक है।

·        इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में प्रजातियों की पहचान में भी कई त्रुटियाँ पाई गईं, जैसे उन जानवरों का भी उल्लेख किया गया था जो भारत में पाए ही नहीं जाते, उदाहरण के लिए अफ्रीकी चमगादड़

·        वर्ष 2022 में, भारत के 29 पर्यावरण वैज्ञानिकों ने एक समीक्षित शोध पत्र प्रकाशित किया, जिसमें वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की रिपोर्ट की कार्यप्रणाली और प्रजातियों के दस्तावेजीकरण में मौजूद गंभीर कमियों को विस्तार से उजागर किया गया।

निष्कर्ष:

वन सलाहकार समिति (FAC) द्वारा एटालिन जलविद्युत परियोजना को सैद्धांतिक मंजूरी दिए जाने के फैसले ने सरकार की पर्यावरण संरक्षण और पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता के प्रति प्रतिबद्धता पर कई प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। यह परियोजना जिस तरह से वन्यजीवों, जैव विविधता और स्थानीय समुदायों को प्रभावित कर सकती है, वह गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इन पर्यावरणीय और सामाजिक चिंताओं का समाधान किस तरह करती है।