संदर्भ:
हाल ही में फिक्की (FICCI) ने हरित हाइड्रोजन पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें यह बताया गया है कि यदि भारत मौजूदा आर्थिक और ढाँचागत चुनौतियों को प्रभावी रूप से दूर करे, तो वह 2030 तक वैश्विक हरित हाइड्रोजन बाज़ार का 10% हिस्सा प्राप्त कर सकता है।
हरित हाइड्रोजन के बारे में:
· हरित हाइड्रोजन नवीकरणीय ऊर्जा के माध्यम से इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा उत्पादित एक शून्य-उत्सर्जन ईंधन है। यह इस्पात, उर्वरक, परिवहन और शिपिंग जैसे उच्च कार्बन उत्सर्जन वाले क्षेत्रों में उत्सर्जन को कम करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही, यह भारत के शुद्ध-शून्य लक्ष्यों की प्राप्ति और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
भारत की हरित हाइड्रोजन पहल:
• राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन (2023) के तहत, सरकार ने 2030 तक 5 मिलियन टन वार्षिक हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिए 19,744 करोड़ आवंटित किए हैं। इसके लिए लगभग 125 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता का विकास तथा इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण और जल रसद में विस्तार आवश्यक होगा। पायलट परियोजनाओं के अंतर्गत 37 हाइड्रोजन-चालित वाहन और 9 ईंधन भरने वाले स्टेशन स्थापित किए गए हैं, जो भारत में हरित हाइड्रोजन पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण की प्रारंभिक प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं।
हरित हाइड्रोजन अपनाने की चुनौतियाँ:
संभावनाओं के बावजूद, भारत को कई बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है:
· उच्च लागत: हरित हाइड्रोजन की लागत लगभग 4-4.5 डॉलर प्रति किलोग्राम है, जो ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में लगभग दोगुनी है।
· सब्सिडी में विकृति: जीवाश्म ईंधन पर दी जाने वाली सब्सिडी हाइड्रोजन की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करती है।
· बुनियादी ढाँचे की कमी: सीमित भंडारण, पाइपलाइन और रसद संबंधी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
· माँग की अनिश्चितता: उद्योग दीर्घकालिक अनुबंधों के अभाव में हरित हाइड्रोजन को अपनाने में संकोच करता है।
· वैश्विक प्रतिस्पर्धा: जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने हाइड्रोजन आयात और बुनियादी ढाँचे के विकास में तेजी लाई है।
फिक्की-ईवाई रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशें:
रिपोर्ट में कार्रवाई योग्य सुधारों की रूपरेखा दी गई है:
• जीवाश्म ईंधन की सब्सिडी को हरित हाइड्रोजन और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ाया जाए।
• औद्योगिक क्षेत्रों के लिए हरित हाइड्रोजन क्रय दायित्व (जीएचपीओ) लागू करना।
• प्रतिस्पर्धा के स्तर को समान बनाने के लिए कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र लागू करना।
• सुरक्षित भुगतान प्रणालियों के साथ माँग एकत्रीकरण प्लेटफ़ॉर्म बनाया जाना चाहिए।
• यूरोपीय संघ और पूर्वी एशियाई बाज़ारों को लक्षित करते हुए एक निर्यात रणनीति विकसित करना।
• घरेलू अनुसंधान एवं विकास और इलेक्ट्रोलाइज़र निर्माण को बढ़ावा ।
निष्कर्ष:
भारत अपने नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों, कम बिजली लागत और अनुकूल भौगोलिक स्थिति की वजह से वैश्विक हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। समय पर नीतिगत सुधार, बुनियादी ढांचे में निवेश और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी के माध्यम से भारत एक प्रमुख हाइड्रोजन निर्यातक और स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन का अग्रणी देश बन सकता है। 2030 तक वैश्विक बाजार का 10% हिस्सा हासिल करना संभव है, बशर्ते वर्तमान चुनौतियों का प्रभावी समाधान किया जाए।