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Blog / 16 Jun 2025

मध्य पूर्व में बढ़ता तनाव

संदर्भ:

13 जून 2025 को इज़राइल ने ईरान पर हवाई हमले किए। प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इन हमलों को ईरान के परमाणु संवर्धन कार्यक्रम के केंद्रको निशाना बनाने वाला कदम बताया और कहा कि इसका उद्देश्य इज़राइल के अस्तित्व को खतरे में डालने वाले ईरानी खतरेको समाप्त करना है। यह कार्रवाई दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष में एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकती है।

पृष्ठभूमि:

यह हमला ऐसे समय में हुआ है जब अमेरिका और ईरान के बीच परमाणु वार्ताएं पहले से ही तनावपूर्ण दौर से गुजर रही हैं। ईरान के यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच, अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने हाल ही में ईरान को परमाणु अप्रसार संधि के उल्लंघन का दोषी ठहराया है। बीते दो दशकों में यह पहली बार है जब एजेंसी ने ऐसा औपचारिक निष्कर्ष जारी किया है।

Middle East

हमले के प्रभाव:

         क्षेत्रीय संघर्ष: इन हवाई हमलों से पूरे क्षेत्र में व्यापक संघर्ष का खतरा मंडराने लगा है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसे खाड़ी देशों ने हाल के वर्षों में ईरान के साथ संबंध सुधारने के लिए कूटनीतिक प्रयास किए थे, लेकिन अब ये प्रयास खतरे में पड़ते दिख रहे हैं। बदले की कार्रवाइयों, सीमाओं के पार अस्थिरता और संभावित लंबे युद्ध से आर्थिक क्षति की आशंका तेज हो गई है।

         परमाणु वार्ताएं: ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर बातचीत की संभावनाएं अब लगभग समाप्त होती नजर आ रही हैं। अमेरिका द्वारा यूरेनियम संवर्धन सीमित करने के प्रस्ताव को ईरान ने न केवल खारिज कर दिया है, बल्कि इसे अपनी संप्रभुता का अधिकार भी बताया है। ईरान का यह कठोर रुख और इज़राइल की सैन्य कार्रवाई वार्ताओं को पूरी तरह विफल कर सकती हैं।

         वैश्विक असर: यदि इज़राइल और ईरान के बीच पूर्ण युद्ध छिड़ता है, तो इसका असर वैश्विक तेल आपूर्ति पर पड़ेगा, खासकर यदि होरमुज़ जलडमरूमध्य बाधित हो जाता है, जो ऊर्जा निर्यात का एक प्रमुख मार्ग है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उथल-पुथल मच सकती है, जिससे महंगाई और ऊर्जा संकट और गहरा जाएगा।

         ईरान की प्रतिक्रिया: ईरान ने परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से बाहर निकलने की चेतावनी दी है और एक नए यूरेनियम संवर्धन संयंत्र के निर्माण की योजना का ऐलान किया है। ये कदम उसकी परमाणु नीति के और अधिक आक्रामक रुख की ओर इशारा करते हैं।

         यूरोप की भूमिका: यूरोपीय देश परमाणु समझौते के तहत स्नैप-बैकप्रतिबंधों को दोबारा लागू कर सकते हैं, जिससे ईरान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव और बढ़ जाएगा।

2015 का परमाणु समझौता क्या था?
इस समझौते को
संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) कहा जाता है। यह ईरान और छह प्रमुख देशों ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका के बीच हुआ था। इसका उद्देश्य ईरान की परमाणु गतिविधियों को सीमित करना और इसके बदले उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को हटाना था।

मुख्य प्रावधान:

         परमाणु नियंत्रण: ईरान ने अपने यूरेनियम भंडार को 98% तक घटाने और यूरेनियम संवर्धन स्तर को अधिकतम 3.67% तक सीमित करने पर सहमति जताई, जिससे उसके लिए परमाणु हथियार बनाना अत्यंत कठिन हो गया।

         प्रतिबंधों में राहत: अमेरिका, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र ने ईरान पर लगे कई आर्थिक प्रतिबंधों को हटाया, जिससे उसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में दोबारा प्रवेश और अपनी विदेशी जमा संपत्तियों तक पहुंच मिली।

         निरीक्षण व्यवस्था: अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) को ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी की जिम्मेदारी दी गई, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ईरान समझौते की शर्तों का पूर्णतः पालन कर रहा है।

निष्कर्ष:

वर्तमान हालात अत्यंत अस्थिर और संवेदनशील बने हुए हैं। ईरान और इज़राइल दोनों के पीछे हटने की संभावना कम है, जिससे पूर्ण युद्ध का खतरा लगातार बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी बनती है कि वह तत्काल हस्तक्षेप कर तनाव को कम करे और कूटनीतिक संवाद की प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने का मार्ग प्रशस्त करे, ताकि यह संकट नियंत्रण से बाहर न हो जाए।