सन्दर्भ:
भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSMEs) देश की आर्थिक वृद्धि में अहम भूमिका निभाते हैं। ये रोजगार सृजन, नवाचार और समावेशी विकास के प्रमुख स्रोत हैं। नीति आयोग और प्रतिस्पर्धात्मकता संस्थान (IFC) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट “भारत में एमएसएमई की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाना” यह दर्शाती है कि इस क्षेत्र की पूर्ण क्षमता को हासिल करने के लिए वित्तीय सहयोग, कौशल विकास, नवाचार और बाज़ार तक पहुंच जैसे क्षेत्रों में व्यापक सुधार आवश्यक हैं।
MSMEs की प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करने वाली मुख्य चुनौतियाँ:
रिपोर्ट में फर्म-स्तरीय आँकड़ों और Periodic Labour Force Survey (PLFS) के आधार पर प्रमुख समस्याएं बताई गई हैं:
1. ऋण तक पहुंच
हालाँकि MSMEs के लिए ऋण तक पहुंच में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन अब भी एक बड़ा अंतर मौजूद है।
2020 से 2024 के बीच माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज की ऋण तक पहुंच 14% से बढ़कर 20% हुई, जबकि मीडियम एंटरप्राइजेज की 4% से बढ़कर 9%। फिर भी, FY21 में केवल 19% ऋण मांग ही औपचारिक रूप से पूरी हो पाई, जिससे ₹80 लाख करोड़ की कमी रह गई।
रिपोर्ट Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises (CGTMSE) को पुनर्गठित करने की सिफारिश करती है ताकि यह अंतर भरा जा सके।
2. कौशल की कमी और तकनीकी अंतर
बहुत से MSMEs में कार्यरत लोग औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं करते, जिससे उनकी उत्पादकता प्रभावित होती है।
इसके अलावा, MSMEs पुराने उपकरणों और तकनीकों का उपयोग करते हैं। नई तकनीकें अपनाने में उन्हें बिजली, इंटरनेट और अन्य बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण कठिनाई होती है।
3. क्षेत्र-विशेष की समस्याएं
रिपोर्ट बताती है कि वस्त्र, रसायन, ऑटोमोबाइल और खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रों में पुरानी तकनीक और कमजोर विपणन (मार्केटिंग) क्षमताएं हैं। इन क्षेत्रों के लिए अलग-अलग उपायों की आवश्यकता है ताकि प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाई जा सके।
प्रमुख चुनौतियाँ:
रिपोर्ट में फर्म-स्तरीय आंकड़ों और आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के आधार पर MSME क्षेत्र को प्रभावित करने वाली तीन मुख्य चुनौतियाँ चिन्हित की गई हैं:
1. ऋण तक सीमित पहुंच: हालाँकि MSMEs की ऋण उपलब्धता में कुछ सुधार हुआ है, फिर भी वित्तीय पहुंच अब भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। वर्ष 2020 से 2024 के बीच माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज की औपचारिक ऋण तक पहुंच 14% से बढ़कर 20% और मीडियम एंटरप्राइजेज की 4% से बढ़कर 9% हुई। इसके बावजूद, वित्त वर्ष 2020–21 में MSMEs की कुल ऋण मांग का केवल 19% ही औपचारिक रूप से पूरा हो पाया, जिससे लगभग ₹80 लाख करोड़ की वित्तीय आवश्यकता अपूर्ण रह गई। रिपोर्ट सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई) के पुनर्गठन की सिफारिश करती है, ताकि इस ऋण अंतर को प्रभावी ढंग से कम किया जा सके।
2. कौशल की कमी और तकनीकी पिछड़ापन: कई MSMEs में कार्यरत श्रमिकों के पास औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण नहीं होता, जिससे उनकी दक्षता और उत्पादकता प्रभावित होती है।
· साथ ही, अधिकांश इकाइयाँ पुराने उपकरणों और तकनीकों पर निर्भर हैं। नई तकनीकों को अपनाने में बिजली की अस्थिर आपूर्ति, धीमा इंटरनेट और कमजोर आधारभूत संरचना जैसी समस्याएँ बड़ी बाधा बनती हैं।
3. क्षेत्र-विशेष चुनौतियाँ: रिपोर्ट में वस्त्र, रसायन, ऑटोमोबाइल और खाद्य प्रसंस्करण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धात्मकता की कमी के विशेष कारण बताए गए हैं। इनमें मुख्य रूप से पुरानी तकनीकों का उपयोग, गुणवत्ता सुधार की आवश्यकता और विपणन क्षमताओं की कमी शामिल है। इन क्षेत्रों के लिए अलग-अलग, लक्षित नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है, ताकि उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धा बढ़ाई जा सके।
MSMEs की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिए सिफारिशें:
1. वित्तीय सुधार: सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (सीजीटीएमएसई) को संस्थागत साझेदारी के माध्यम से पुनर्गठित करने की आवश्यकता है, ताकि MSMEs को समावेशी और सुगम वित्तीय सहायता मिल सके। यह उन्हें वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं से जुड़ने में भी मदद करेगा।
2. कौशल विकास और तकनीकी उन्नयन: व्यावसायिक प्रशिक्षण को प्रोत्साहित करना और अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा देना MSMEs की दीर्घकालिक वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है।
· इसके साथ ही, बिजली आपूर्ति, इंटरनेट कनेक्टिविटी और अन्य बुनियादी ढाँचागत सुविधाओं को सुदृढ़ करना जरूरी है, ताकि ये उद्यम आधुनिक तकनीकों को सहज रूप से अपना सकें।
3. क्षेत्र-विशेष रणनीतियाँ: वस्त्र, रसायन, ऑटोमोबाइल और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में तकनीकी उन्नयन, उत्पाद की गुणवत्ता सुधार और विपणन क्षमताओं को सशक्त करने की जरूरत है।
· इसके अतिरिक्त, इन क्षेत्रों को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने के लिए अंतरराष्ट्रीय बाज़ार लिंक को मजबूत करना आवश्यक है, जिससे MSMEs वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं का हिस्सा बन सकें।
4. नीतिगत ढाँचा और राज्य-स्तरीय क्रियान्वयन: राज्य स्तर पर क्लस्टर आधारित नीति ढाँचे को अपनाने की सिफारिश की गई है। इसमें नीति के सुसंगत कार्यान्वयन, डेटा समेकन (data integration) और सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
भारत की MSMEs अर्थव्यवस्था के विकास में आधारभूत स्तंभ हैं। यदि वित्तीय, कौशल, तकनीकी और बाजार से जुड़ी समस्याओं का समाधान किया जाए, तो ये उद्यम वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं।
रिपोर्ट में सुझाए गए उपायों को लागू करके न केवल MSME क्षेत्र को मजबूती मिलेगी, बल्कि देश की संपूर्ण आर्थिक वृद्धि को भी गति मिलने की संभावना है।