संदर्भ:
हाल ही में नई दिल्ली के राष्ट्रीय प्राणी उद्यान में रहने वाले 29 वर्षीय अफ्रीकी हाथी (शंकर) की एन्सेफालोमायोकार्डाइटिस वायरस (ईएमसीवी) से मृत्यु हो गई। यह एक दुर्लभ और कृंतक (Rodent) जनित वायरल संक्रमण है, जो मुख्य रूप से सूअरों और अन्य स्तनधारियों को प्रभावित करता है।
एन्सेफालोमायोकार्डाइटिस वायरस के बारे में:
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- वर्गीकरण: जीनस- कार्डियोवायरस (Cardiovirus); परिवार – पिकोर्नाविरिडे (Picornaviridae)
- प्रकृति: यह एक गैर-आवरणयुक्त, एकल-रज्जुकीय (single-stranded), धनात्मक-सेंस आरएनए वायरस (positive-sense RNA virus) है, जो सूअर, हाथी, कृंतक (चूहे और गिलहरियाँ), प्राइमेट (बंदर) और कुछ मांसाहारी प्रजातियों सहित कई प्रकार के स्तनधारियों को संक्रमित करता है।
- प्राकृतिक भंडार: कृंतक (विशेष रूप से चूहे और गिलहरियाँ) जो अपने मूत्र और मल के माध्यम से वायरस को वातावरण में फैलाते हैं।
- संक्रमण का तरीका (Transmission): संक्रमण तब होता है जब जानवर वायरस से दूषित भोजन या पानी का सेवन करते हैं।
- रोग-प्रक्रिया (Pathology): यह वायरस मस्तिष्क में सूजन (एन्सेफेलाइटिस) और हृदय की मांसपेशियों में सूजन (मायोकार्डाइटिस) उत्पन्न करता है, जिसके कारण अचानक या बहुत कम समय में मृत्यु हो सकती है।
- वर्गीकरण: जीनस- कार्डियोवायरस (Cardiovirus); परिवार – पिकोर्नाविरिडे (Picornaviridae)
यह मामला क्यों महत्वपूर्ण है?
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- यह भारत में किसी हाथी में ईएमसीवी संक्रमण का पहला मामला है, जबकि यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के कुछ चिड़ियाघरों में ऐसे मामले पहले दर्ज किए जा चुके हैं।
- यह घटना यह दर्शाती है कि कैद में रखे गए जंगली जानवर भी कृंतक-जनित (rodent-borne) बीमारियों के प्रति अत्यंत संवेदनशील हैं।
- साथ ही, यह भारतीय चिड़ियाघरों की जैव-सुरक्षा (Biosecurity) व्यवस्थाओं में मौजूद कमजोरियों की ओर भी इशारा करती है, विशेष रूप से कृंतक नियंत्रण और पशु-बाड़ों (Enclosures) के रखरखाव से जुड़े प्रबंधनों में सुधार की आवश्यकता पर।
- यह भारत में किसी हाथी में ईएमसीवी संक्रमण का पहला मामला है, जबकि यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के कुछ चिड़ियाघरों में ऐसे मामले पहले दर्ज किए जा चुके हैं।
निष्कर्ष:
ईएमसीवी के कारण हाथी की मृत्यु भारत के वन्यजीव स्वास्थ्य परिदृश्य में एक दुर्लभ और चिंताजनक घटना है। यह निम्नलिखित कदमों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है:
• एकीकृत चिड़ियाघर जैव-सुरक्षा प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन
• कृंतक जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रभावी उपाय
• नियमित स्वास्थ्य निगरानी प्रणाली की स्थापना
• उभरते हुए जूनोटिक (जानवरों से इंसानों में फैलने वाले) रोगजनकों पर सहयोगात्मक अनुसंधान का प्रोत्साहन।
यह मामला वन्यजीव प्रबंधकों और नीति-निर्माताओं के लिए एक चेतावनी है कि वे बंदी जंगली जानवरों के प्रबंधन में निवारक, वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोण अपनाएँ, जिससे यह भारत की जैव-विविधता संरक्षण और वन हेल्थ ढांचे के प्रति प्रतिबद्धताओं के अनुरूप हो।
