संदर्भ:
शोधकर्ताओं की एक टीम वर्तमान में ब्रुन्हेस-मातुयामा उत्क्रमण (Brunhes-Matuyama reversal) को पुनः निर्मित कर रही है जो पृथ्वी के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण भू-चुंबकीय घटनाओं में से एक थी और लगभग 780,000 वर्ष पहले घटित हुई थी। इस घटना के दौरान, पृथ्वी की चुंबकीय ध्रुवीयता पूरी तरह पलट गई थी और यह 100,000 वर्षों से अधिक समय तक उल्टी रही। टीम इस उत्क्रमण से प्राप्त आंकड़ों को ध्वनि में बदलने की प्रक्रिया में भी है, जिसे सोनिफिकेशन (sonification) कहा जाता है। इस घटना की एक साउंडट्रैक इस वर्ष के अंत तक आने की उम्मीद है।
पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र:
- पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र सतह से लगभग 2,900 किमी नीचे स्थित द्रव बाहरी कोर में उत्पन्न होता है। जब पिघला हुआ लोहा, जो ठोस आंतरिक कोर की गर्मी और ग्रह के घूर्णन से प्रेरित होता है, गतिशील होता है, तो यह विद्युत धाराएँ उत्पन्न करता है, जिससे भू-चुंबकीय क्षेत्र बनता है। यह प्रवाह स्वाभाविक रूप से अस्थिर होता है, और इसकी बदलती गतिशीलता ही उतार-चढ़ाव, उत्क्रमण या अपसरण (excursion) का कारण बनती है। जब द्रव की गति घड़ी की दिशा में होती है, तो सामान्य ध्रुवीयता बनती है, जबकि प्रवाह की दिशा बदलने पर ध्रुवीयता पलट जाती है।
- पिछले 200 वर्षों में, पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र की तीव्रता लगभग 10% कमजोर हो गई है। यदि यह गिरावट इसी दर से जारी रही, तो मॉडल बताते हैं कि यह क्षेत्र अगले 1,500–1,600 वर्षों में शून्य तक गिर सकता है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या कोई नया उत्क्रमण या अपसरण निकट भविष्य में हो सकता है।
उत्क्रमण और अपसरण:
- जब चुंबकीय ध्रुव बदलते हैं और 100,000 वर्षों से अधिक समय तक उल्टे रहते हैं, तो इसे उत्क्रमण (reversal) कहा जाता है। यदि यह परिवर्तन अल्पकालिक होता है और ध्रुव शीघ्र ही अपनी मूल स्थिति में लौट आते हैं, तो इसे अपसरण (excursion) कहा जाता है।
पिछले 83 मिलियन वर्षों में वैज्ञानिकों ने 183 पूर्ण उत्क्रमण दर्ज किए हैं। ब्रुन्हेस-मातुयामा उत्क्रमण के बाद तीन प्रमुख अपसरण हुए:- नॉर्वेजियन-ग्रीनलैंड सागर घटना (64,500 वर्ष पहले)
- लाशांप्स अपसरण (41,000 वर्ष पहले)
- मोनो लेक अपसरण (34,500 वर्ष पहले)
- व्यापक शोध के बावजूद, वैज्ञानिक यह पूर्वानुमान नहीं लगा सकते कि अगला उत्क्रमण या अपसरण कब होगा क्योंकि ये घटनाएँ किसी निश्चित आवृत्ति पर नहीं होतीं। कुछ अध्ययन इन घटनाओं को जलवायु परिवर्तन या ओजोन क्षरण से जोड़ते हैं, लेकिन अन्य का मानना है कि इनका जीवन पर प्रभाव न्यूनतम होता है। इसके अतिरिक्त, पृथ्वी का वायुमंडल इन घटनाओं के दौरान भी हमें विकिरण से बचा सकता है।
चट्टानों और अभिलेखों से संकेत:
चुंबकीय इतिहास को समझने के लिए वैज्ञानिक विभिन्न स्रोतों का उपयोग करते हैं:
- वर्तमान क्षेत्रीय व्यवहार के लिए उपग्रह डेटा और भू-चुंबकीय वेधशालाएँ
- 1590 से शुरू होने वाले ऐतिहासिक समुद्री जहाज़ों के लॉग
- ज्वालामुखीय चट्टानें, झील की तलछटें और मिट्टी के बर्तन, जो चुंबकीय दिशा को प्राकृतिक रिकॉर्डर की तरह संरक्षित करते है
भारत में, शोधकर्ताओं को उत्तराखंड के नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में 15,500 वर्ष पुराने एक अपसरण के प्रमाण मिले हैं, जो तलछट विश्लेषण के माध्यम से प्राप्त हुए। यह पृथ्वी के भू-चुंबकीय व्यवहार पर वैश्विक अध्ययनों में एक और योगदान है।
वर्तमान चुंबकीय क्षेत्र परिवर्तन
आज भी पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र बदल रहा है। चुंबकीय उत्तरी ध्रुव प्रति वर्ष लगभग 35 किमी की गति से स्थानांतरित हो रहा है—जो अतीत की तुलना में अधिक तेज़ है। हालांकि, इसका यह अर्थ नहीं है कि कोई उत्क्रमण निकट है।
निष्कर्ष:
भू-चुंबकीय उत्क्रमण और अपसरण का अध्ययन वैज्ञानिकों को पृथ्वी की आंतरिक प्रक्रियाओं और दीर्घकालिक परिवर्तनों को समझने में मदद करता है। चुंबकीय क्षेत्र की सोनिफिकेशन जैसी परियोजनाएँ इन दीर्घकालिक घटनाओं को समझने में सहायक बनती हैं। निरंतर अनुसंधान और मॉडलिंग के साथ, हम पृथ्वी के चुंबकीय व्यवहार में भविष्य के परिवर्तनों की बेहतर भविष्यवाणी कर सकते हैं और वे कैसे सुनाई देंगे यह भी जान सकते हैं।