सन्दर्भ:
हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ई-ज़ीरो एफआईआर सिस्टम की शुरुआत की है। यह एक महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी पहल है, जिसे गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) द्वारा विकसित किया गया है।
ई-ज़ीरो एफआईआर सिस्टम क्या है?
ई-ज़ीरो एफआईआर सिस्टम एक ऐसी डिजिटल व्यवस्था है जो एफआईआर दर्ज करने की प्रक्रिया को स्वचालित बनाती है और थाना क्षेत्र की सीमा (ज्यूरिडिक्शन) को समाप्त करती है। इस प्रणाली के तहत:
- यदि कोई व्यक्ति 1930 हेल्पलाइन या राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (NCRP) के माध्यम से ₹10 लाख या उससे अधिक की साइबर वित्तीय धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज करता है, तो यह शिकायत स्वतः एफआईआर में परिवर्तित हो जाती है।
- यह एफआईआर दिल्ली स्थित ई-क्राइम पुलिस स्टेशन में दर्ज की जाती है, जिसके बाद उसे संबंधित क्षेत्र की साइबर क्राइम यूनिट को कार्रवाई के लिए भेज दिया जाता है।
मुख्य विशेषताएँ:
- थाना क्षेत्र की बाध्यता नहीं: अब कोई भी व्यक्ति अपराध की शिकायत किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज करवा सकता है, भले ही घटना किसी अन्य स्थान पर हुई हो।
- तत्काल कार्रवाई: यह प्रणाली विशेष रूप से संवेदनशील या गंभीर मामलों में एफआईआर दर्ज करने में होने वाली देरी को रोकती है।
- स्वचालित स्थानांतरण: ई-ज़ीरो एफआईआर दर्ज होने के बाद, उसे संबंधित क्षेत्रीय पुलिस थाने को जांच हेतु स्वचालित रूप से भेज दिया जाता है।
- उत्पत्ति: इस अवधारणा की सिफारिश 2012 के निर्भया कांड के बाद गठित जस्टिस वर्मा कमेटी ने की थी, ताकि पीड़ित-केन्द्रित और उत्तरदायी पुलिस व्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सके।
कानूनी आधार:
भारतीय न्याय संहिता (BNSS) की धारा 173 के अंतर्गत पुलिस को ज़ीरो एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य किया गया है, जिससे इस प्रणाली को कानूनी मान्यता प्राप्त है। साथ ही, पीड़ितों को एफआईआर की कॉपी निःशुल्क मिलती है, जिससे पारदर्शिता और अधिकारिता बढ़ती है।
दिल्ली में पायलट प्रोजेक्ट और राष्ट्रीय विस्तार:
फिलहाल यह सिस्टम दिल्ली में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया है। जल्द ही इसे देशभर में लागू किया जाएगा, जिससे सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की पुलिस इस प्रक्रिया को अपना सकेंगी।
दिल्ली का ई-क्राइम पुलिस स्टेशन पहले से ही इन मामलों के पंजीकरण के लिए अधिकृत है।
भारत में साइबर अपराध:
साइबर अपराध का अर्थ है – कंप्यूटर या इंटरनेट के माध्यम से किया गया अपराध। भारत में इन अपराधों को मुख्यतः भारतीय दंड संहिता (IPC) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के अंतर्गत नियंत्रित किया जाता है।
साइबर अपराध के प्रकार:
- हैकिंग: बिना अनुमति के कंप्यूटर सिस्टम में घुसपैठ।
- फिशिंग: धोखे से संवेदनशील जानकारी हासिल करने की कोशिश।
- रैनसमवेयर: डाटा को लॉक कर पैसे की मांग करना।
- ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी: जैसे क्रेडिट कार्ड फ्रॉड, नकली बैंकिंग वेबसाइट आदि।
जनवरी से जून 2024 के बीच भारत में ₹11,269 करोड़ की धोखाधड़ी हुई।
भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) के बारे में:
भारतीय साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) की स्थापना 2020 में गृह मंत्रालय द्वारा की गई थी। इसका उद्देश्य सभी प्रकार के साइबर अपराधों, जैसे साइबर धोखाधड़ी, साइबर स्टॉकिंग, वित्तीय घोटाले, तथा महिलाओं और बच्चों के विरुद्ध ऑनलाइन अपराध से सम्बंधित मामले को केंद्रित और समन्वित ढंग से निपटना है।
इसके प्रमुख उद्देश्य:
- केंद्रीय नोडल एजेंसी: यह केंद्र देशभर में साइबर अपराध से निपटने हेतु मुख्य समन्वयक एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
- शिकायतों का प्रभावी प्रबंधन: नागरिकों द्वारा की गई शिकायतों के सुलभ और तेज़ समाधान में सहायक होता है, साथ ही साइबर अपराध की प्रवृत्तियों और पैटर्न को ट्रैक करता है।
- पूर्व चेतावनी प्रणाली: यह एक सक्रिय निगरानी और अलर्ट सिस्टम के रूप में काम करता है, जो संभावित साइबर हमलों की पहचान और रोकथाम में पुलिस व एजेंसियों की मदद करता है।
निष्कर्ष:
ई-ज़ीरो एफआईआर सिस्टम का शुभारंभ भारत की डिजिटल गवर्नेंस और साइबर सुरक्षा संरचना में एक ऐतिहासिक व निर्णायक कदम है। यह पहल कानूनी नवाचार, डिजिटल तकनीक के समावेशन, और पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण को एक साथ जोड़ती है। इसके माध्यम से भारत अब साइबर अपराधों का त्वरित और प्रभावी समाधान सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत और सशक्त राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ रहा है, जो डिजिटल युग में न्याय की पहुँच को और अधिक सरल और सुलभ बनाता है।