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Blog / 19 Jun 2025

सूखा: बदलती जलवायु में बढ़ती चिंता

संदर्भ:

हाल ही में जारी OECD की Global Drought Outlook रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के चलते सूखे की स्थिति अब पहले से अधिक बार, लंबे समय तक और अधिक गंभीर रूप में सामने आ रही है। ये लगातार बढ़ती सूखे की स्थिति न केवल जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा हैं, बल्कि कृषि, खाद्य आपूर्ति और वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहे हैं।

मुख्य निष्कर्ष:

·         1900 से अब तक सूखे से प्रभावित वैश्विक भूमि क्षेत्र लगभग दोगुना हो गया है। आज पृथ्वी का करीब 40% हिस्सा बार-बार और पहले से अधिक ज़्यादा तीव्र सूखे की चपेट में आ रहा है।

·         जो घटनाएँ पहले दुर्लभ मानी जाती थीं, अब वे सामान्य होती जा रही हैं। उदाहरणस्वरूप, 2022 में यूरोप में पड़ा भीषण सूखा और उत्तरी अमेरिका में वर्षों से जारी लंबा सूखा इस बदलाव की गंभीरता को दर्शाते हैं।

·         लगातार बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण वर्षा के पैटर्न बिगड़ रहे हैं और वाष्पीकरण की दर तेज़ हो रही है, जिससे ताज़े पानी की उपलब्धता घटती जा रही है। IPCC की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, यदि वैश्विक तापमान 4°C तक बढ़ता है, तो सूखे की आवृत्ति और तीव्रता पूर्व-औद्योगिक युग की तुलना में सात गुना तक अधिक हो सकती है।

Increasing meteorological drought under climate change reduces terrestrial  ecosystem productivity and carbon storage - ScienceDirect

मानव और सामाजिक प्रभाव:

·         2021 में, विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने वैश्विक जलवायु की बिगड़ती स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कई प्रमुख रिपोर्टें जारी कीं। इन रिपोर्टों से पता चला कि प्राकृतिक आपदाओं में सूखे की हिस्सेदारी केवल 6% है, लेकिन ये कुल आपदा से होने वाली मौतों में 34% के लिए ज़िम्मेदार हैं।

·         सूखा न केवल गरीबी को बढ़ाता है, बल्कि लोगों को आजीविका छोड़कर पलायन करने पर मजबूर कर देता है। इससे विशेष रूप से कमजोर और पिछड़े इलाकों में सामाजिक और आर्थिक असमानताएँ और अधिक गहरी हो जाती हैं।

·         जब सूखा लंबे समय तक बना रहता है, तो कई परिवार अपनी ज़मीन और घर छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं, जिससे विस्थापन, बेरोज़गारी और खाद्य असुरक्षा जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।

पर्यावरणीय हानि:

  • सूखे के कारण मरुस्थलीकरण बढ़ता है, जैव विविधता में गिरावट आती है और पारिस्थितिक तंत्र धीरे-धीरे नष्ट होने लगते हैं।
  • 1980 के बाद से अब तक दुनिया की लगभग 37% भूमि में मिट्टी की नमी में भारी गिरावट दर्ज की गई है। इसके साथ ही नदियाँ और भूजल स्रोत भी लगातार कम होते जा रहे हैं।
  • इन पर्यावरणीय बदलावों का असर केवल प्राकृतिक तंत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि ये कार्बन भंडारण, जल शुद्धिकरण और जलवायु संतुलन जैसी महत्वपूर्ण पारिस्थितिक सेवाओं को भी गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।

आर्थिक प्रभाव:

·         सूखे से आर्थिक नुकसान लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2000 के बाद से एक औसत सूखे से नुकसान पहले की तुलना में दोगुना हो चुका है और अनुमान है कि 2035 तक यह लागत 35% से लेकर 110% तक और बढ़ सकती है।

·         कृषि क्षेत्र सूखे से सबसे ज़्यादा प्रभावित होता है। अत्यधिक सूखे वर्षों में फसल उत्पादन में 22% तक की गिरावट आ सकती है, जिससे वैश्विक खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाएं प्रभावित होती हैं।

·         इसके अलावा, जलविद्युत उत्पादन, नदी परिवहन और औद्योगिक गतिविधियाँ भी प्रभावित होती हैं, क्योंकि पानी की उपलब्धता लगातार घटती जा रही है।

 सूखा रोकथाम हेतु प्रमुख पहलें:

·         संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण से निपटने का सम्मेलन (UNCCD) की सूखा पहल: इस पहल का उद्देश्य सूखे के प्रति समुदायों की सहनशीलता बढ़ाना और टिकाऊ भूमि प्रबंधन को प्रोत्साहित करना है, ताकि सूखे के प्रभावों को लंबे समय तक रोका जा सके।

·         अंतरराष्ट्रीय सूखा प्रबंधन कार्यक्रम: यह कार्यक्रम विश्व मौसम संगठन (WMO) और वैश्विक जल साझेदारी के नेतृत्व में संचालित किया जा रहा है। इसका उद्देश्य एकीकृत और समन्वित रणनीतियों के ज़रिए सूखा प्रबंधन को अधिक प्रभावी और टिकाऊ बनाना है।

जल विभाजन प्रबंधन:

यह किसी विशेष जलग्रहण क्षेत्र की भूमि और जल संसाधनों के समग्र प्रबंधन की प्रक्रिया है। इसमें मृदा और जल संरक्षण उपाय, वनीकरण और टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ शामिल होती हैं, जिससे जल संग्रहण और रिसाव को बढ़ाया जा सके।

भारत में पहलें:
भारत ने सूखे से निपटने और जल संरक्षण के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे:

·         प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)

·         महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA)

निष्कर्ष:

बदलती जलवायु के संदर्भ में सूखा एक बढ़ती हुई और गंभीर चुनौती बन चुका है, जो जल सुरक्षा, पर्यावरण और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डाल रहा है। यदि हम सूखे के कारणों और इसके व्यापक प्रभावों को ठीक से समझें, तो हम प्रभावी रणनीतियाँ तैयार कर सकते हैं और भविष्य में आने वाले खतरों के लिए खुद को बेहतर ढंग से तैयार कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि हम सूखा-प्रतिरोधी व्यवस्थाओं में निवेश करें और जल प्रबंधन के पारंपरिक तरीकों को आधुनिक और टिकाऊ दृष्टिकोण से सुधारें। यही रास्ता हमें एक सुरक्षित, लचीला और सतत भविष्य की ओर ले जा सकता है।