होम > Blog

Blog / 12 Jun 2025

ड्रोन और आधुनिक युद्ध की दिशा में बदलाव

संदर्भ:
भारत की सैन्य नीति में एक रणनीतिक बदलाव देखा जा रहा है, जिसमें पारंपरिक युद्धों में ड्रोन की भूमिका लगातार बढ़ रही है। पूर्व सेना प्रमुख जनरल एम.एम. नरवणे ने यूक्रेन द्वारा रूसी एयरबेस पर सफल ड्रोन हमलों और पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर में ड्रोन के इस्तेमाल को देखते हुए ड्रोन खतरों के खिलाफ त्वरित नीति और कानूनी कार्रवाई की अपील की है।

ड्रोन युद्ध से मिले वैश्विक सबक:

  • नागोर्नो-काराबाख (2020): अज़रबैजान ने इज़रायली हरोपलूटिंग म्यूनिशन का इस्तेमाल कर उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों को हराया।
  • यूक्रेन: सैन्य और व्यावसायिक UAV (मानवरहित हवाई वाहन), जिसमें संशोधित बाजार में उपलब्ध ड्रोन भी शामिल थे, का ऑपरेशन स्पाइडर वेबजैसे अभियानों में उपयोग किया गया।
  • म्यांमार: विद्रोही बलों ने थ्री-डी प्रिंटेड ड्रोन का इस्तेमाल कर मजबूत सैन्य बलों का मुकाबला किया, जिससे सस्ते विषम युद्ध (Asymmetric Warfare) की संभावना सामने आई।

Evolution of Modern Warfare

सैन्य और व्यावसायिक ड्रोन तकनीक का विलय
सैन्य और नागरिक ड्रोन तकनीकों के बीच की रेखा अब धुंधली हो रही है। तुर्की का TB-2, ईरान का शाहिद और चीन का विंग लूंग जैसे ड्रोन दोहरे उपयोग वाली प्रणालियों का उपयोग करते हैं, जिससे वे राष्ट्रों और विद्रोही समूहों, दोनों के लिए सुलभ और स्केलेबल हो जाते हैं। इसके प्रमुख सहायक तत्व हैं:
ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर;
मॉड्यूलर हार्डवेयर;
थ्री-डी प्रिंटिंग (जैसे यूक्रेन का टाइटन फाल्कन, म्यांमार का लिबरेटर)।

ड्रोन की क्षमता और उनसे निपटने के उपाय
अपने फायदों के बावजूद, ड्रोन इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, पारंपरिक वायु रक्षा और सॉफ्ट/हार्ड-किल प्रणालियों के लिए संवेदनशील बने हुए हैं। फिर भी, आधुनिक ड्रोन इन खतरों के जवाब में लगातार विकसित हो रहे हैं:
एआई-आधारित नेविगेशन: यूक्रेन ने मशीन विज़न और पहले से लोड किए गए भू-आकृति डेटा का उपयोग किया ताकि ड्रोन रडार सिस्टम से बच सकें।
झुंड रणनीति (Swarm Tactics): रूस और चीन रक्षा प्रणालियों को पस्त करने के लिए बड़ी संख्या में डिस्पोजेबल ड्रोन का एक साथ हमला करते हैं।
फाइबर-ऑप्टिक टेथरिंग: यूक्रेनी बलों ने इलेक्ट्रॉनिक जामिंग को मात देने के लिए फाइबर-ऑप्टिक मार्गदर्शन का उपयोग किया।

भारत की एंटी-ड्रोन प्रणाली सॉफ्ट और हार्ड-किल तकनीकों का मिश्रण है, जो एकीकृत वायु कमान और नियंत्रण प्रणाली (IACCS) के अंतर्गत आती है, और पाकिस्तान के साथ हालिया तनाव में यह प्रभावी सिद्ध हुई है।

भारत का ड्रोन पारिस्थितिकी तंत्र
यूक्रेन और अन्य संघर्ष क्षेत्रों से एक प्रमुख सबक यह है कि मजबूत और उत्तरदायी रक्षा उत्पादन आधार (defence industrial base) आवश्यक है। भारत को चीन और पाकिस्तान की दोहरी सीमाओं से खतरा है, जो दोनों ही ड्रोन प्रणालियों में भारी निवेश कर रहे हैं:
चीन: लंबी दूरी और झुंड-सक्षम प्रणालियों जैसे 'सोअरिंग ड्रैगन' और 'CH-901' सहित विविध ड्रोन बेड़े का मालिक है।
पाकिस्तान: चीन और तुर्किये के साथ साझेदारी करके अपनी ड्रोन क्षमताओं को लगातार बढ़ा रहा है।

भारत को अपनी खरीद प्रणाली की पुरानी समस्याओं को दूर करने की आवश्यकता है:
चुनौतियाँ:
o अनिश्चित खरीद समय-सीमा से उद्योग में निवेश हतोत्साहित होती है।
o कम मात्रा में ऑर्डर से नवाचार और उत्पादन क्षमता प्रभावित होती है।
सिफारिशें:
o ड्रोन, लूटिंग म्यूनिशन और मिसाइल प्रणालियों के लिए त्वरित उत्पादन क्षमता विकसित करें।
o निजी क्षेत्र की भागीदारी और मॉड्यूलर डिज़ाइन को प्रोत्साहित करें ताकि प्रणाली में लचीलापन रहे।
o थ्री-डी प्रिंटिंग और घरेलू कंपोनेंट इकोसिस्टम को प्राथमिकता दें ताकि विदेशी निर्भरता घटे।

आंतरिक सुरक्षा और गैर-राज्य खतरे
भारत को उन खतरों के लिए भी तैयार रहना होगा जहां गैर-राज्य तत्व व्यावसायिक ड्रोन को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। रणनीतिक संरचनाओं पर सस्ते ड्रोन से हमला अब केवल काल्पनिक नहीं रहा, यह एक वास्तविक खतरा है। इससे निपटने के लिए आवश्यक है:
आंतरिक सुरक्षा तंत्र में एंटी-ड्रोन तकनीकों का एकीकरण;
कानून प्रवर्तन एजेंसियों को शुरुआती चेतावनी और प्रतिक्रिया प्रणालियों के साथ प्रशिक्षित और सुसज्जित करना;
ड्रोन की पहचान और निवारण रणनीतियों में सैन्य और नागरिक समन्वय।

निष्कर्ष
ड्रोन आधुनिक युद्ध की परिभाषा को बदल रहे हैं। भारत को उत्पादन बढ़ाना होगा, नवाचार में निवेश करना होगा और ड्रोन क्षमताओं को अपने सशस्त्र बलों तथा आंतरिक सुरक्षा तंत्र में पूरी तरह एकीकृत करना होगा। भविष्य के युद्धों में सफलता केवल हथियार की गुणवत्ता पर नहीं, बल्कि अनुकूलन, प्रतिस्थापन और बड़े पैमाने पर तेजी से तैनाती की क्षमता पर निर्भर करेगी।