संदर्भ:
केरल सरकार केंद्र सरकार द्वारा राज्य के शिक्षा क्षेत्र के लिए आवंटित ₹1,500 करोड़ की राशि रोकने के बाद सुप्रीम कोर्ट का रुख करने जा रही है। यह विवाद केरल द्वारा केंद्र सरकार की पीएम-श्री (प्रधानमंत्री स्कूल्स फॉर राइजिंग इंडिया) योजना को लागू करने से इनकार करने के कारण उत्पन्न हुआ है, जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 से जुड़ी है।
पीएम-श्री योजना क्या है?
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई पीएम-श्री योजना का उद्देश्य भारत भर के 14,500 से अधिक मौजूदा स्कूलों को मॉडल संस्थानों में उन्नत करना है, जिनमें बेहतर आधारभूत ढांचा, शिक्षण पद्धतियाँ और अधिगम परिणाम शामिल हैं, जो एनईपी 2020 के अनुरूप हों। इस योजना की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
- कुल लागत: ₹27,360 करोड़ (2022–2027)
- केंद्र का हिस्सा: ₹18,128 करोड़
- राज्यों का हिस्सा: कुल लागत का 40%
- प्रगति: अब तक 670 जिलों के 12,400 स्कूल इस योजना से जुड़ चुके हैं।
इस योजना में भाग लेने के लिए राज्यों को केंद्र सरकार के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य है। हालांकि, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल ने इन शर्तों को स्वीकार नहीं किया है।
केरल सरकार का पक्ष:
केरल ने पीएम-श्री योजना की आधारशिला बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लेकर कई आपत्तियाँ जताई हैं। राज्य सरकार का तर्क है कि यह नीति:
• शिक्षा पर केंद्र का नियंत्रण बढ़ाती है, जबकि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची (Concurrent List) में आता है, जिसे केंद्र और राज्य दोनों साझा करते हैं।
• स्कूली शिक्षा में वैचारिक प्रभावों को थोप सकती है।
• राज्य की अपनी शिक्षा प्रणाली को डिज़ाइन और प्रबंधित करने की स्वायत्तता को कमजोर करती है।
इसके अतिरिक्त, केरल का मानना है कि उसे पीएम-श्री योजना की आवश्यकता नहीं है क्योंकि:
• उसने पहले ही अपने स्कूली शिक्षा प्रणाली में उल्लेखनीय सुधार किए हैं।
• राज्य में 40,000 स्मार्ट क्लासरूम हैं, जिनमें इंटरनेट की सुविधा है।
• सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूल पहले से ही बुनियादी ढांचे और अधिगम के उच्च मानकों को पूरा करते हैं।
कानूनी चुनौती और संवैधानिक निहितार्थ:
केंद्र के कदम को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना शिक्षा क्षेत्र में केंद्रीय अधिकार की सीमाओं को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकता है। याचिका में निम्नलिखित मुद्दों को उठाए जाने की संभावना है:
• शिक्षा में राज्यों की संवैधानिक स्वायत्तता, जो समवर्ती सूची में शामिल है।
• असंबंधित केंद्र प्रायोजित योजनाओं को नीति अनुपालन से जोड़ने की वैधता।
• बिना दबाव के समान रूप से निधियों के आवंटन का अधिकार।
केंद्र की स्थिति:
केंद्र सरकार ने अपने रुख का बचाव करते हुए कहा है कि पीएम-श्री योजना राज्यों में मानकीकरण और गुणवत्ता सुधार को बढ़ावा देती है। अब तक 33 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश इस योजना को लागू करने पर सहमत हो चुके हैं। हालांकि, विपक्षी राज्य यह तर्क दे रहे हैं कि समझौता ज्ञापन की शर्तें उनकी वित्तीय स्वायत्तता और परिचालन लचीलापन को प्रभावित कर सकती हैं, और यह पारंपरिक रूप से राज्यों द्वारा संचालित शिक्षा विभागों में केंद्र की अति-हस्तक्षेप की चिंता को उजागर करता है।
निष्कर्ष:
केरल और केंद्र सरकार के बीच पीएम-श्री योजना को लेकर विवाद केवल एक वित्तीय मतभेद नहीं है, यह भारत की शिक्षा प्रणाली में राज्यीय स्वायत्तता और केंद्रीय निगरानी के बीच जारी खिंचाव को उजागर करता है। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय केंद्र प्रायोजित योजनाओं के भविष्य के लिए दूरगामी प्रभाव डाल सकता है और इस बात को प्रभावित कर सकता है कि भारत के संघीय ढांचे में ऐसी नीतियाँ कैसे तय की जाती हैं और किस प्रकार लागू की जाती हैं।