संदर्भ:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने डिजिटल अरेस्ट की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता जताई है। न्यायालय ने बताया कि देशभर में अब तक 3,000 करोड़ रुपये से अधिक की ठगी की जा चुकी है। अदालत ने ऐसे साइबर अपराधों पर “कड़ी कार्रवाई” करने और केंद्र व राज्य एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
डिजिटल अरेस्ट के बारे में:
डिजिटल अरेस्ट ऑनलाइन जबरन वसूली (Online Extortion) का एक नया तरीका है, जिसमें धोखेबाज़:
• सीबीआई, ईडी या पुलिस जैसी जांच एजेंसियों के अधिकारियों के रूप में खुद को प्रस्तुत करते हैं।
• पीड़ितों पर किसी आपराधिक या वित्तीय धोखाधड़ी में शामिल होने का झूठा आरोप लगाते हैं।
• वीडियो कॉल या स्काइप के माध्यम से नकली पूछताछ (Fake Interrogation) करते हैं।
• गिरफ्तारी, जेल भेजने या संपत्ति जब्त करने की धमकी देकर पीड़ितों से धन हस्तांतरित करवाते हैं।
जैसे ही पीड़ित उनकी मांग मान लेते हैं तो, धोखेबाज़ क्रिप्टोकरेंसी, वायर ट्रांसफर या डिजिटल वॉलेट के द्वारा बड़ी रकम मंगवाकर तुरंत गायब हो जाते हैं।
डिजिटल अरेस्ट के बढ़ने के कारण:
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- डिजिटल लेनदेन में तेजी: ऑनलाइन भुगतान और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के बढ़ते उपयोग से साइबर ठगी के अवसर भी तेज़ी से बढ़े हैं।
- साइबर सुरक्षा जागरूकता की कमी: बड़ी संख्या में लोग ऑनलाइन सुरक्षा उपायों और सत्यापन प्रक्रियाओं से अनजान हैं, जिससे वे आसानी से ठगों के निशाने पर आ जाते हैं।
- तकनीकी उन्नति: धोखेबाज़ अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डीपफेक तकनीक और असली जैसी वीडियो कॉल का इस्तेमाल कर अपने झांसे को अधिक विश्वसनीय बना रहे हैं।
- कमज़ोर अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण: दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ देशों में सक्रिय साइबर गिरोह सीमाओं और न्यायिक अधिकार क्षेत्रों की कमजोरियों का फायदा उठाकर बच निकलते हैं।
- मनोवैज्ञानिक डर और दबाव: ठग जनता के मन में कानून, पुलिस और सरकारी एजेंसियों के प्रति भय का इस्तेमाल कर उन्हें मानसिक रूप से दबाव में लाते हैं।
- डिजिटल लेनदेन में तेजी: ऑनलाइन भुगतान और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के बढ़ते उपयोग से साइबर ठगी के अवसर भी तेज़ी से बढ़े हैं।
सरकारी एवं संस्थागत प्रतिक्रिया:
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पहल |
विवरण |
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भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) |
साइबर अपराध के पैटर्न पर नज़र रखने के लिए बैंकों, दूरसंचार और फिनटेक फर्मों के साथ समन्वय करना। |
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नकली कॉल ब्लॉक करना |
फर्जी अंतर्राष्ट्रीय नंबरों को रोकने के लिए दूरसंचार सेवा प्रदाताओं (टीएसपी) के साथ मिलकर सिस्टम विकसित करना। |
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राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल |
नागरिक cybercrime.gov.in पर ऑनलाइन धोखाधड़ी की रिपोर्ट कर सकते हैं । |
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CERT-इन दिशानिर्देश |
जनता को कॉल सत्यापित करने, व्यक्तिगत डेटा साझा करने से बचने और संदिग्ध ऐप्स इंस्टॉल न करने की सलाह दी गई। |
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अंतर-मंत्रालयी समिति (मई 2024) |
दक्षिण-पूर्व एशिया से संचालित अंतरराष्ट्रीय साइबर अपराध नेटवर्क से निपटने के लिए गठित समिति। |
आगे की राह:
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- जन-जागरूकता अभियान: नियमित प्रचार कार्यक्रम चलाए जाएँ, विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों के बीच, ताकि वे किसी भी सरकारी कॉल, ईमेल या संदेश की सत्यता स्वयं जांच सकें।
- सत्यापन प्रणाली को सशक्त बनाना: कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ अपने आधिकारिक फ़ोन नंबरों, ईमेल आईडी और संचार के मानक प्रारूपों को सार्वजनिक करें, जिससे नागरिक आसानी से असली और नकली पहचान में अंतर कर सकें।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना: आसियान (ASEAN) और अन्य देशों के साथ मिलकर सीमापार साइबर अपराध नेटवर्क पर संयुक्त कार्रवाई की जाए।
- एआई-आधारित सुरक्षा समाधान: डीपफेक, स्पूफिंग और नकली पहचान का पता लगाने के लिए देश में स्वदेशी (indigenous) एआई तकनीक और डिजिटल निगरानी उपकरण विकसित किए जाएँ।
- जन-जागरूकता अभियान: नियमित प्रचार कार्यक्रम चलाए जाएँ, विशेषकर वरिष्ठ नागरिकों के बीच, ताकि वे किसी भी सरकारी कॉल, ईमेल या संदेश की सत्यता स्वयं जांच सकें।
निष्कर्ष:
डिजिटल अरेस्ट भारत की डिजिटल क्रांति के अंधेरे पहलू को उजागर करते हैं, जहाँ सुविधा के लिए बनी तकनीक अब डर और दबाव का साधन बनती जा रही है। सर्वोच्च न्यायालय की चेतावनी इस बात का स्पष्ट संकेत है कि सरकार, कानून प्रवर्तन एजेंसियों, न्यायपालिका और आम नागरिक, सभी को मिलकर इस उभरते साइबर अपराध के विरुद्ध तत्पर, समन्वित और कठोर कदम उठाने होंगे।

