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Blog / 03 May 2025

डिजिटल पहुंच अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार का एक भाग

सन्दर्भ:

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अमर जैन बनाम भारत संघ व अन्य (2025) मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि डिजिटल गवर्नेंस और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं तक समावेशी पहुंच, संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।

  • न्यायालय ने डिजिटल नो योर कस्टमर (KYC) प्रक्रिया में व्यापक सुधारों का निर्देश दिया, जिससे विशेष रूप से दृष्टिबाधित और चेहरे की विकृति वाले व्यक्तियों को सुलभता मिल सके। यह मामला उन लोगों द्वारा दायर जनहित याचिकाओं के ज़रिये सामने आया, जिन्हें अपनी विकलांगता के कारण अनिवार्य डिजिटल केवाईसी प्रक्रियाएँ पूरी करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

1.      डिजिटल केवाईसी में समावेशिता हेतु आवश्यक सुधार: सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और अन्य संबंधित संस्थाओं को निर्देशित किया कि वे विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के प्रावधानों के अनुरूप डिजिटल केवाईसी प्रक्रियाओं में संशोधन करें। न्यायालय द्वारा दिए गए मुख्य निर्देश इस प्रकार हैं:

o   केवाईसी प्लेटफॉर्म के डिज़ाइन और परीक्षण की प्रक्रिया में दृष्टिबाधित व्यक्तियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाए।

o   केवल चेहरे की पहचान (facial recognition) पर आधारित प्रणाली के साथ और भी उपाय किये जाये, क्योंकि चेहरे की पहचान प्रणाली चेहरों में विकृति वाले व्यक्तियों के लिए बाधा उत्पन्न करती है।

o   सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों में समावेशी और सुलभ केवाईसी प्रणाली को अपनाना अनिवार्य किया जाए।

2.     अनुपालन के लिए संस्थागत ढांचे की स्थापना: न्यायालय ने निर्देश दिया कि सभी संबंधित विभागों में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की जाए, जो इस प्रक्रिया के क्रियान्वयन की निगरानी करेंगे। साथ ही, सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नियमित सुलभता ऑडिट (Accessibility Audit) किए जाएँ और डिज़ाइन प्रक्रिया में विकलांग उपयोगकर्ताओं से प्राप्त सुझावों को शामिल करते हुए सह-डिज़ाइन मॉडल अपनाया जाए।

3.    डिजिटल असमानता के व्यापक पहलुओं पर ध्यान: न्यायालय ने यह भी स्वीकार किया कि ग्रामीण क्षेत्रों, वरिष्ठ नागरिकों और आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को डिजिटल माध्यमों तक पहुंच में गंभीर बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इस संदर्भ में, न्यायालय ने दोहराया कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 38 के तहत डिजिटल पहुंच केवल एक तकनीकी सुविधा नहीं, बल्कि एक संवैधानिक दायित्व है, जो प्रत्येक नागरिक को गरिमा, समानता और भागीदारी का अधिकार सुनिश्चित करता है।

डिजिटल अधिकारों से जुड़े महत्वपूर्ण फैसले:

                    फ़हीमा शिरीन आर.के. बनाम केरल राज्य (2019): इंटरनेट को जीवन और शिक्षा के अधिकार का अभिन्न हिस्सा माना गया।

                    अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020): इंटरनेट आधारित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) को अनुचित रूप से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।

समावेशी डिजिटल पहुंच का महत्व:

                    सरकार की कल्याणकारी योजनाओं और सब्सिडी तक सरल पहुंच सुनिश्चित करता है।

                    ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच की डिजिटल अंतर को कम करता है।

                    वंचित समुदायों के लिए ऑनलाइन शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण को संभव बनाता है।

                    डिजिटल बैंकिंग और फिनटेक प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देता है।

                    विकलांग व्यक्तियों की विकास प्रक्रिया में पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित करता है।

KYC क्या है?

KYC (नो योर कस्टमर) एक अनिवार्य प्रक्रिया है जिसे बैंक, वित्तीय संस्थान और अन्य सेवा प्रदाता अपने ग्राहकों की पहचान की पुष्टि के लिए अपनाते हैं।

डिजिटल KYC के तरीके:

                    पहचान और पते के प्रमाणपत्रों की स्कैन कॉपी अपलोड करना

                    बॉयोमेट्रिक प्रमाणीकरण (जैसे फिंगरप्रिंट या चेहरे की पहचान)

                    आधार आधारित ई-प्रमाणीकरण या OTP से सत्यापन

निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का अमर जैन बनाम भारत संघ में दिया गया निर्णय यह दोहराता है कि डिजिटल समावेशन केवल नीतिगत विषय नहीं है, बल्कि एक संवैधानिक आवश्यकता है। विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों से जुड़े संयुक्त राष्ट्र संधि (सीआरपीडी)के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को निभाने के लिए, ज़रूरी है कि प्रतीकात्मक समावेशन से आगे बढ़कर ठोस और स्थायी सुधार की दिशा में काम करना चाहिए, ताकि तकनीक हर नागरिक को सशक्त बना सके, चाहे उसकी क्षमता कोई भी हो।