संदर्भ:
हाल ही में जारी UDISE+ 2023–24 के आँकड़े और शिक्षा मंत्रालय के दस्तावेज़ों से यह स्पष्ट हुआ है कि कई राज्यों में भले ही सरकारी स्कूलों की संख्या अधिक हो, लेकिन बच्चों का नामांकन निजी स्कूलों में तेजी से बढ़ रहा है। यह मुद्दा मंत्रालय ने समग्र शिक्षा और पीएम-पोषण योजना की समीक्षा के दौरान राज्यों के साथ हुई बैठकों में उठाया।
नामांकन के रुझानों का अवलोकन:
UDISE+ 2023–24 के अनुसार, देश में अधिकांश स्कूल सरकारी हैं, लेकिन उनमें बच्चों का नामांकन अपेक्षाकृत कम है। कुछ राज्यों की स्थिति इस प्रकार है:
- आंध्र प्रदेश: कुल स्कूलों का 73% (61,373 में से 45,000) सरकारी हैं, लेकिन इनमें केवल 46% बच्चों का नामांकन है। वहीं, केवल 25% निजी स्कूलों में 52% बच्चे पढ़ रहे हैं। 2021–22 से 2023–24 तक निजी स्कूलों में नामांकन लगातार बढ़ा है।
- तेलंगाना: 70% स्कूल सरकारी हैं लेकिन इनमें सिर्फ 38.11% छात्र पढ़ते हैं, जबकि 30% निजी स्कूलों में 60.75% छात्र हैं। सिर्फ 2021–22 (कोविड-19 काल) में निजी नामांकन घटा था।
- उत्तराखंड: 72% सरकारी स्कूलों में सिर्फ 36.68% नामांकन है, जबकि निजी (अनएडेड) स्कूलों में 54.39% छात्र हैं।
- तमिलनाडु: 64% सरकारी स्कूलों में केवल 37% छात्रों का नामांकन है, जबकि 21% निजी (अनएडेड) स्कूलों में 46% बच्चे पढ़ रहे हैं। केंद्र सरकार ने राज्य से कहा है कि वह सरकारी स्कूलों की “ब्रांड छवि” को बेहतर बनाए।
- केरल और महाराष्ट्र: दोनों राज्यों में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में नामांकन घटा है। महाराष्ट्र में यह गिरावट 2018–19 से 2023–24 तक चली, और केरल में 2022–23 से 2023–24 तक। दोनों ने आधार आधारित “डेटा क्लीनिंग” को इसका कारण बताया है।
- पूर्वोत्तर राज्य (मिज़ोरम, नागालैंड, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय): इन राज्यों में भी 2023–24 में नामांकन में गिरावट दर्ज की गई है।
- दिल्ली, लद्दाख, पुडुचेरी, दादरा एवं नगर हवेली और दीव तथा अंडमान-निकोबार द्वीप समूह: यहाँ निजी स्कूलों में सरकारी स्कूलों की तुलना में अधिक नामांकन है, जिसे मंत्रालय ने “चिंता का विषय” बताया है।
राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति:
2023–24 के UDISE+ आंकड़ों के अनुसार, कुल छात्र संख्या 24.80 करोड़ है, जिनमें से 36% (9 करोड़ से अधिक) बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं। यह आंकड़ा 2022–23 और 2021–22 में 33% था, जबकि 2019–20 और 2020–21 में 36-37% था।
शिक्षा नीति पर प्रभाव:
- समानता और पहुंच: सरकारी स्कूल आम तौर पर गरीब और वंचित वर्गों के बच्चों को शिक्षा देते हैं। इन स्कूलों में गिरता नामांकन शिक्षा में असमानता को बढ़ा सकता है।
- गुणवत्ता की चिंता: निजी स्कूलों की ओर झुकाव यह दर्शाता है कि सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता, ढांचे और परिणामों को लेकर लोगों में असंतोष है।
- आर्थिक असर: निजी स्कूलों में बढ़ते नामांकन से शिक्षा की लागत परिवारों पर बढ़ती है, जिससे गरीब वर्ग के लिए पढ़ाई मुश्किल हो सकती है।
- नीति में प्राथमिकता: सरकार को चाहिए कि वह सरकारी स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए ठोस कदम उठाए ताकि सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली मजबूत, समावेशी और गुणवत्तापूर्ण बनी रहे।
निष्कर्ष
मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि वे गिरते नामांकन के कारणों की जांच करें और सुधारात्मक कदम उठाएं। संख्या में अधिक होने के बावजूद सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता कम होती दिख रही है। केंद्र सरकार का सुझाव है कि सरकारी स्कूलों की “ब्रांड वैल्यू” को बढ़ाया जाए और संसाधनों का बेहतर उपयोग किया जाए।