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Blog / 17 May 2025

भारत में घटती जन्म दर

सन्दर्भ:

हाल ही में भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) सांख्यिकीय रिपोर्ट 2021 जारी की गई है। यह रिपोर्ट भारत में हो रहे एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन को उजागर करती है, जिसमे देश में जन्म दर में निरंतर गिरावट देखी जा रही है। यह प्रवृत्ति पूरे भारत में दिखाई दे रही है, लेकिन इसकी गति राज्यों के अनुसार भिन्न है। दक्षिणी और अधिक शहरीकृत क्षेत्रों में यह गिरावट सबसे तेज़ दर्ज की गई है।

मुख्य निष्कर्ष:

राष्ट्रीय अवलोकन:

अखिल भारतीय अशोधित जन्म दर (Crude Birth Rate), जिसे प्रति 1,000 जनसंख्या पर होने वाले जीवित जन्मों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है, वर्ष 2021 में 19.3 दर्ज की गई। यह दर 2016 से 2021 के बीच प्रतिवर्ष औसतन 1.12% की गति से घट रही है। यह गिरावट दर्शाती है कि देश में प्रजनन से जुड़ी प्राथमिकताएँ बदल रही हैं, शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है, और लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं व परिवार नियोजन साधनों की बेहतर पहुँच मिल रही है।

तेज़ी से गिरने वाले राज्य:

कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ जन्म दर में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है। इनमें शामिल हैं:

         तमिलनाडु प्रतिवर्ष 2.35% की गिरावट

         दिल्ली 2.23%

         केरल 2.05%

इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि इन राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण, शहरीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रही है।

धीमी गिरावट वाले राज्य:

इसके विपरीत, कुछ राज्य ऐसे हैं जहाँ जन्म दर में गिरावट की रफ्तार अपेक्षाकृत धीमी रही है:

         राजस्थान 0.48%

         बिहार 0.86%

         उत्तर प्रदेश 1.09%

यह संकेत करता है कि इन राज्यों में अब भी अपेक्षाकृत उच्च प्रजनन दर बनी हुई है, जो जनसंख्या वृद्धि को प्रभावित कर सकती है।

प्रजनन दर का रुझान:

भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR) 2021 में 2.0 बनी रही। यानी एक महिला औसतन 2 बच्चों को जन्म देती है। हालाँकि, कुछ राज्यों में यह औसत अब भी बहुत ज़्यादा है:

  • बिहार: 3.0
  • उत्तर प्रदेश: 2.7
  • मध्य प्रदेश: 2.6

ये आंकड़े 2.1 की "जनसंख्या स्थिरता स्तर" (replacement level fertility) से ऊपर हैं, जो यह दर्शाते हैं कि इन राज्यों में आबादी बढ़ती रहेगी।

घटती जन्म दर के प्रभाव:

1.        बदलता जनसांख्यिकीय स्वरूप: जैसे-जैसे जन्म दर में गिरावट हो रही है, भारत धीरे-धीरे एक युवा राष्ट्र से वृद्ध जनसंख्या की ओर बढ़ रहा है। इस जनसंख्यिकीय बदलाव का प्रत्यक्ष प्रभाव भविष्य में श्रम बाजार, स्वास्थ्य सेवाओं और पेंशन व्यवस्था पर पड़ेगा।

2.      नीति निर्माण और योजनाओं में चुनौतियाँ: उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों को अभी भी मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं में निरंतर निवेश की आवश्यकता है, जबकि कम जन्म दर वाले राज्यों को घटती युवा आबादी और बढ़ते वृद्धजन निर्भरता अनुपात (dependency ratio) के लिए नीतिगत तैयारी करनी होगी।

3.      सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की दिशा में प्रगति: केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे राज्य, जहाँ जन्म दर में तीव्र गिरावट दर्ज की गई है, पहले ही संयुक्त राष्ट्र के कई सतत विकास लक्ष्योंजैसे मातृ मृत्यु दर (MMR), पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर (U5MR), और नवजात शिशु मृत्यु दर (NMR)—को प्राप्त कर चुके हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि घटती प्रजनन दर और बेहतर स्वास्थ्य संकेतकों के बीच एक सकारात्मक संबंध मौजूद है।

महत्वपूर्ण शब्दावली:

         अशोधित जन्म दर (Crude Birth Rate - CBR): प्रति 1,000 जनसंख्या पर एक वर्ष के दौरान होने वाले जीवित जन्मों की संख्या। यह दर जनसंख्या की प्रजनन प्रवृत्तियों का एक सामान्य संकेत देती है, किंतु इसमें आयु संरचना को ध्यान में नहीं लिया जाता।

         कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate - TFR): यह दर्शाता है कि एक महिला, यदि वह अपने सम्पूर्ण प्रजनन काल के दौरान वर्तमान आयु-विशिष्ट प्रजनन दरों का पालन करे, तो औसतन कितने बच्चों को जन्म देगी।

o   TFR = 2.1 यह स्तर जनसंख्या को स्थिर बनाए रखने के लिए आवश्यक माना जाता है, क्योंकि इसमें शिशु मृत्यु दर और लैंगिक असंतुलन जैसी स्थितियों को भी शामिल किया जाता है।

         सकल पुनरुत्पादन दर (Gross Reproduction Rate - GRR): यह दर दर्शाती है कि एक महिला, यदि वह अपने प्रजनन काल तक जीवित रहे और वर्तमान प्रजनन दरें स्थिर बनी रहें, तो औसतन कितनी बेटियों को जन्म देगी। यह दर भविष्य में महिलाओं की संख्या में संभावित वृद्धि या कमी का

निष्कर्ष:

भारत में घटती जन्म दर सामाजिक और आर्थिक बदलावों का संकेत है। इसके पीछे बेहतर शिक्षा, शहरीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता जैसे कारण हैं। लेकिन चूँकि यह बदलाव सभी राज्यों में एक समान नहीं है, इसलिए क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने के लिए अलग-अलग रणनीतियों की आवश्यकता है। जैसे-जैसे भारत जनसंख्या स्थिरीकरण की ओर बढ़ रहा है, ये रुझान हमारे देश की जनसंख्या और आर्थिक दिशा को आकार देने में अहम भूमिका निभाएंगे।Bottom of Form