संदर्भ:
डिसेंट्रलाइज़्ड फाइनेंस, यानी डिफाई (DeFi), हाल के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए गंभीर विषय बन गया है। इसका कारण यह है कि इसका इस्तेमाल आतंकवाद की फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी अवैध गतिविधियों में किया जा सकता है। वर्तमान में अरबों डॉलर की संपत्तियाँ डिफाई प्रोजेक्ट्स में निवेशित हैं और इस क्षेत्र की तेज़ी से बढ़ती लोकप्रियता ने विशेषज्ञों और नियामक संस्थाओं की चिंता बढ़ा दी है।
डिफाई क्या है?
-
- डिफाई ब्लॉकचेन-आधारित वित्तीय व्यवस्था है, जो स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स और विकेंद्रीकृत एप्स (DApps) के ज़रिए पीयर-टू-पीयर वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
- इसमें किसी केंद्रीय संस्था या पहचान सत्यापन (Identity Verification) की ज़रूरत नहीं होती।
- यूज़र कई क्रिप्टो वॉलेट्स का इस्तेमाल करके बिना "नो योर कस्टमर" (KYC) अनुपालन के गुमनाम तरीके से लेन-देन कर सकते हैं।
- डिफाई ब्लॉकचेन-आधारित वित्तीय व्यवस्था है, जो स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट्स और विकेंद्रीकृत एप्स (DApps) के ज़रिए पीयर-टू-पीयर वित्तीय सेवाएँ उपलब्ध कराती है।
तेज़ी से बढ़ता विस्तार:
-
- 2025 के मध्य तक दुनियाभर में 1.42 करोड़ सक्रिय डिफाई वॉलेट्स थे।
- वैश्विक डिफाई बाज़ार 2024 में 30.07 अरब डॉलर से 43% की वार्षिक दर से बढ़कर 2029 तक 178.63 अरब डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है।
- 2025 के मध्य तक दुनियाभर में 1.42 करोड़ सक्रिय डिफाई वॉलेट्स थे।
· चेनालिसिस 2024 रिपोर्ट के अनुसार,डिफाई के उपयोग में भारत, दुनिया में तीसरे स्थान पर है।
प्रमुख सुरक्षा चिंताएँ:
1. आतंकवाद का वित्तपोषण
· डिफाई के माध्यम से आतंकवादी संगठन दुनिया भर से गुमनाम रूप से धन जुटा और स्थानांतरित कर सकते हैं।
· यह औपचारिक वित्तीय निगरानी तंत्र से आसानी से बच निकलता है।
· लेन-देन का पता लगाना बेहद कठिन होता है, यहाँ तक कि प्राप्तकर्ता भी प्रेषक की पहचान नहीं जान पाता।
2. गुमनामी और नियमन की कमी
· अधिकांश डिफाई प्लेटफ़ॉर्म्स पर उपयोगकर्ताओं की पहचान की पुष्टि नहीं की जाती, जिससे इनका दुरुपयोग आसान हो जाता है।
· क्रिप्टो मिक्सर्स, गुमनामी बढ़ाने वाले टूल्स और क्रॉस-चेन लेन-देन अवैध धन के निशान को और अधिक छिपा देते हैं।
3. स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट की कमजोरियाँ
· डिफाई का संचालन स्वचालित कोड पर आधारित है, जिसे हैक या शोषित किया जा सकता है।
· विकेंद्रीकृत स्वायत्त संगठन (DAO) के माध्यम से होने वाला शासन जवाबदेही और ठोस नियामक निगरानी से वंचित है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
· अमेरिकी ट्रेज़री (2023): डिफाई सेवाओं को मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक (AML) और आतंकवाद वित्तपोषण रोकथाम (CFT) नियमों का पालन करना अनिवार्य किया गया।
· यूरोपीय संघ (2025): डिफाई में मनी लॉन्ड्रिंग का गंभीर खतरा बताया और इस क्षेत्र में सख़्त निगरानी की आवश्यकता पर जोर दिया।
· यूके (2025) और FATF (2025): डिफाई को आतंकवाद फंडिंग के लिहाज़ से असुरक्षित बताया और वैश्विक मानक स्थापित करने की ज़रूरत पर बल दिया।
भारत की तैयारी: कमियाँ और चुनौतियाँ:
-
- भारत का आख़िरी राष्ट्रीय जोखिम मूल्यांकन (NRA) 2022 में हुआ था, जिसमें डिफाई पर कोई विशेष आकलन शामिल नहीं था।
- भारत ने "जाम ट्रिनिटी"और UPI जैसी योजनाओं के माध्यम से मजबूत वित्तीय समावेशन हासिल किया है, लेकिन डिफाई का अतिरिक्त लाभ इसके संभावित जोखिमों की तुलना में बहुत कम है।
- डिफाई-विशेष जोखिम विश्लेषण की अनुपस्थिति ने भारत में नियामक कमजोरियाँ उत्पन्न की हैं, जबकि देश लगातार आतंकवाद के ख़तरे का सामना कर रहा है।
- भारत का आख़िरी राष्ट्रीय जोखिम मूल्यांकन (NRA) 2022 में हुआ था, जिसमें डिफाई पर कोई विशेष आकलन शामिल नहीं था।
आगे की राह:
· क्षेत्रीय जोखिम मूल्यांकन: डिफाई के लिए एक अलग राष्ट्रीय जोखिम मूल्यांकन (NRA) तैयार किया जाना चाहिए, जो FATF मानकों और वैश्विक सर्वोत्तम तरीकों के अनुरूप हो।
· रेगटेक (RegTech) का उपयोग: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ब्लॉकचेन एनालिटिक्स के माध्यम से डिफाई लेन-देन की वास्तविक समय निगरानी सुनिश्चित की जाए।
· जन-जागरूकता और सहयोग: डिफाई डेवलपर्स, उपयोगकर्ताओं और प्लेटफ़ॉर्म्स को राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों के बारे में जागरूक किया जाए।
· वैश्विक समन्वय: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग करके उन कमज़ोरियों और खामियों को दूर किया जाए जिनका फायदा सीमा-पार अपराधी उठा सकते हैं।
निष्कर्ष:
डिफाई वित्तीय नवाचार का प्रतीक है, लेकिन इसका अनियंत्रित विस्तार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक स्पष्ट और तत्काल खतरा बनता जा रहा है, विशेष रूप से भारत जैसे देश में जहाँ आतंकवाद का खतरा हमेशा मौजूद है। डिफाई पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना न तो व्यावहारिक है और न ही रणनीतिक। हालाँकि, समझदारीपूर्ण, जोखिम-आधारित नियमन (Risk-Based Regulation) बेहद आवश्यक है।
भारत को तुरंत अपने राष्ट्रीय जोखिम मूल्यांकन को अपडेट करना चाहिए, तकनीक-आधारित अनुपालन उपकरण अपनाने चाहिए और वैश्विक संस्थाओं के साथ सहयोग बढ़ाना चाहिए ताकि डिफाई जिम्मेदारी और सुरक्षा के साथ विकसित हो सके। यदि इसे अनदेखा किया गया, तो वॉरेन बफे के अनुसार डिफाई “वित्तीय जनसंहार का हथियार” बन सकता है।