संदर्भ:
एक ऐतिहासिक उपलब्धि के तहत, नौ महीने के काइल “केजे” मुलडून जूनियर कस्टम बेस एडिटिंग थेरेपी से सफल इलाज पाने वाले पहले इंसान बने। उन्हें CPS1 डेफिशियंसी नाम की एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी थी। यह थेरेपी जीन एडिटिंग की एक नई और बेहद सटीक तकनीक है, जिससे आनुवंशिक रोग को ठीक किया जा सकता है।
सीपीएस1 डेफिशियंसी क्या है?
- सीपीएस1 डेफिशियंसी एक दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी है, जो सीपीएस1 जीन में खराबी की वजह से होती है। यह जीन शरीर में कार्बामॉयल फॉस्फेट सिंथेटेस 1 नाम का एंजाइम बनाता है, जो यूरेया साइकिल में जरूरी होता है।
- यूरेया साइकिल की मदद से शरीर में बनने वाला अतिरिक्त नाइट्रोजन (जो प्रोटीन के टूटने से बनता है) अमोनिया के रूप में बाहर निकलता है। लेकिन जब यह एंजाइम ठीक से काम नहीं करता, तो अमोनिया शरीर में जमा होने लगता है। इस स्थिति को हाइपरअमोनिमिया कहते हैं। अगर समय पर इलाज न हो, तो इससे दिमाग को नुकसान, कोमा या मौत भी हो सकती है। इसलिए इस बीमारी की जल्दी पहचान और इलाज बहुत जरूरी होता है।
उपचार में मिली बड़ी सफलता:
“केजे” की सीपीएस1 की समस्या को ठीक करने के लिए वैज्ञानिकों ने बेस एडिटिंग नाम की एक नई और उन्नत जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल किया। यह तकनीक CRISPR-Cas9 से प्रेरित है, लेकिन इससे भी ज्यादा सटीक और सुरक्षित मानी जाती है।
जहां CRISPR-Cas9 तकनीक DNA को काटती है, वहीं बेस एडिटिंग बिना काटे DNA के बेस को बदल देती है। इसमें DNA के दोनों स्ट्रैंड नहीं टूटते, जिससे इलाज ज्यादा सुरक्षित और स्थिर होता है।
बेस एडिटिंग कैसे काम करता है?
CRISPR-Cas9 प्रणाली एक तरह की आणविक कैंची की तरह काम करती है, जो DNA के तय हिस्से को काटती है। इसके बाद, वैज्ञानिक कोशिका के प्राकृतिक मरम्मत तंत्र पर निर्भर रहते हैं ताकि वो DNA में ज़रूरी बदलाव कर सके, लेकिन यह प्रक्रिया कई बार अनिश्चित और गलतियों से भरी हो सकती है।
इसके विपरीत, बेस एडिटिंग एक आणविक पेंसिल और रबड़ की तरह काम करती है:
· इसमें Cas9 एंजाइम को एक खास बेस बदलने वाले एंजाइम के साथ जोड़ा जाता है।
· एक गाइड RNA इस प्रणाली को DNA के उस खास हिस्से तक पहुंचाता है जहाँ बदलाव करना होता है।
· फिर बेस एडिटर DNA का बेस बदल देता है, जैसे साइटोसिन (C) को थायमिन (T) में। यह सब कुछ DNA को काटे बिना और बिना कोई बाहरी चीज़ जोड़े किया जाता है।
बेस एडिटिंग के लाभ:
बेस एडिटिंग पारंपरिक जीन एडिटिंग तरीकों की तुलना में कई महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करती है:
· बहुत ज्यादा सटीकता: यह तकनीक DNA के किसी एक खास बेस को बहुत ही सटीकता से पहचानकर उसे सही करती है।
· कम साइड इफेक्ट: इससे जीन के बाकी हिस्सों में गलती से बदलाव होने का खतरा बहुत कम होता है।
· कोशिकाओं पर कम असर: DNA को न काटने के कारण कोशिकाओं को नुकसान पहुंचने की संभावना कम होती है।
· आसान डिलीवरी: इसमें कम चीज़ों की ज़रूरत होती है, जिससे इसे इलाज के लिए इस्तेमाल होने वाले वायरल वेक्टर या नैनोकण सिस्टम में आसानी से पैक किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
केजे मुलडून जूनियर का सफल इलाज जीन एडिटिंग के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है और दुर्लभ आनुवंशिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है। यह सफलता दिखाती है कि बेस एडिटिंग तकनीक सिर्फ जीन की गलतियों को सुधारने में ही नहीं, बल्कि जानलेवा बीमारियों का इलाज भी सटीकता और सुरक्षा के साथ कर सकती है।