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Blog / 22 Nov 2025

CRISPR-आधारित जीन थेरेपी “BIRSA 101”

सन्दर्भ :

हाल ही में केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारत की पहली स्वदेशी CRISPR-आधारित जीन थेरेपी को सिकल सेल रोग (SCD) के उपचार हेतु लॉन्च किया। यह थेरेपी CSIR–इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी (IGIB) में विकसित की गई है और इसे “BIRSA 101” नाम दिया गया है। इसका नाम भगवान बिरसा मुंडा के सम्मान में रखा गया है, जिनकी हाल ही में 150वीं जयंती मनाई गई।

भारत में सिकल सेल रोग (SCD):

सिकल सेल रोग (SCD) एक एकल-जीन आधारित वंशानुगत रक्त विकार है, जिसमें लाल रक्त कोशिकाएँ विकृत दरांती (sickle)” आकार धारण कर लेती हैं। इसके परिणामस्वरूप निम्नलिखित गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं:

·        पुरानी एनीमिया

·        तीव्र दर्द (pain crises)

·        अंगों में क्षति

·        जीवन प्रत्याशा में कमी

भारत में यह रोग विशेष रूप से केंद्रीय और पूर्वी राज्यों की जनजातीय समुदायों में प्रचलित है। अनुमानित आंकड़ों के अनुसार, हर वर्ष लगभग 15,000–25,000 नए मामले केवल इन जनजातीय समूहों में जन्म लेते हैं।

CRISPR-Based Gene Therapy “BIRSA 101” for Sickle Cell Disease

सस्ती जीन थेरेपी की आवश्यकता:

    • दुनिया भर में उपलब्ध CRISPR-आधारित SCD थेरेपी की लागत लगभग 30 लाख USD (₹ 20–25 करोड़) होती है, जो अधिकांश भारतीय रोगियों के लिए पूरी तरह अनुपलब्ध है।
    • CRISPR तकनीक की उच्च लाइसेंसिंग फीस, विदेशी प्लेटफ़ॉर्मों पर निर्भरता, इनकी लागत को और बढ़ाती है।
    • इसी कारण भारत में कम लागत वाली, स्वदेशी जीन थेरेपी विकसित करने की नीति-स्तरीय आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी, विशेषकर वंचित समुदायों के लिए।

BIRSA 101 का महत्व:

भारत द्वारा पूर्णतः स्वदेशी CRISPR-आधारित थेरेपी का विकास करना देश को उन्नत चिकित्सकीय विज्ञान के वैश्विक नेतृत्व में स्थापित करता है।

    • BIRSA 101 की लागत विदेशी थेरेपी की तुलना में काफी कम रहने की सभावना है, जिससे यह अधिक रोगियों के लिए सुलभ हो सकेगी।
    • यह आत्मनिर्भर भारत के विज़न को मजबूत करते हुए उन्नत बायोटेक्नोलॉजी में भारत की घरेलू क्षमता को बढ़ाता है।
    • सिकल सेल रोग जनजातीय समुदायों में व्यापक है, इसलिए इस थेरेपी का सामाजिक महत्व है।
    • यह 2047 तक सिकल सेल उन्मूलन के राष्ट्रीय लक्ष्य को समर्थन देता है और हाशिये पर स्थित समुदायों का स्वास्थ्य बोझ कम करता है।

चुनौतियाँ और जोखिम:

    • दीर्घकालिक सुरक्षा: CRISPR तकनीक में लक्ष्य से अलग अनचाहे जीन संपादन (off-target संशोधन) का जोखिम बना रहता है, इसलिए इसके लिए विस्तृत और दीर्घकालिक परीक्षण करना अनिवार्य है।
    •  नियामक चुनौतियाँ: जीन थेरेपी पर कड़ा विनियमन लागू होता है; प्रयोगशाला से क्लिनिक तक विस्तार हेतु निरंतर अनुमोदन और निगरानी आवश्यक है।
    • आर्थिक बाधाएँ: लागत कम होने पर भी (लगभग ₹50 लाख), यह थेरेपी सरकारी सहायता या बीमा के बिना कई जनजातीय और निम्न-आय वर्ग के लिए महंगी रहेगी।
    • नैतिक प्रश्न: जीन संपादन, विशेष रूप से जर्मलाइन या स्टेम सेल स्तर पर, दीर्घकालिक नैतिक चर्चाओं और बहसों को जन्म देता है।

निष्कर्ष

“BIRSA 101” का शुभारंभ भारत के वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण विकास है। यह न केवल देश की जीनोमिक क्षमता को सशक्त बनाता है, बल्कि जनजातीय समुदायों में व्यापक सिकल सेल रोग से निपटने की दिशा में ठोस कदम भी है। यह सफलता भारत को आत्मनिर्भर बायोटेक्नोलॉजी की ओर अग्रसर करती है और 2047 तक सिकल सेल मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में आशाजनक प्रगति दर्शाती है।