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Blog / 11 Nov 2025

COP30 और जलवायु विज्ञान की नवीनतम प्रगति: भारत के लिए प्रमुख निष्कर्ष | Dhyeya IAS

संदर्भ:

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (UNFCCC) के तहत 10 से 21 नवंबर 2025 तक ब्राज़ील के बेलेम शहर में आयोजित होने वाले 30वें कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज़ (COP30) से पहले एक महत्त्वपूर्ण शोध पत्र प्रकाशित हुआ है। इस शोध में 21वीं सदी के दौरान बढ़ते जलवायु परिवर्तन के चिंताजनक रुझानों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है।

Global South in focus as COP30 begins today | India News

मुख्य वैज्ञानिक निष्कर्ष:

1.      तीव्र वैश्विक तापमान वृद्धि:

जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) द्वारा जारी नवीनतम आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि:

      • औसत वैश्विक तापमान अब प्रति दशक 0.27°C की दर से बढ़ रहा है, जो 1990 और 2000 के दशक की तुलना में लगभग 50% अधिक है।
      • विश्व पहले ही पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.3–1.4°C अधिक गर्म हो चुका है और 2030 तक 1.5°C की सीमा को पार करने की दिशा में बढ़ रहा है।
      • समुद्र का स्तर प्रति वर्ष 4.5 मिमी की दर से बढ़ रहा है, जो 20वीं सदी की औसत दर से दोगुने से अधिक है।

2.     आसन्न जलवायु संकट के संकेत:

वैज्ञानिकों की चिंता है कि पृथ्वी की कई प्रमुख प्राकृतिक प्रणालियाँ अब अपरिवर्तनीय सीमा (Irreversible Thresholds) के करीब पहुँच चुकी हैं:

      • समुद्रों में बढ़ती गर्म लहरों के कारण प्रवाल भित्तियों (Coral Reefs) का बड़े पैमाने पर विरंजन (Bleaching) हो रहा है और उनके पूरी तरह नष्ट होने का खतरा बढ़ गया है।
      • अमेज़न वर्षावन निरंतर वनों की कटाई और तापमान वृद्धि के कारण सवाना (सूखी घासभूमि) में बदलने की स्थिति में है।
      •  ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर के तेजी से पिघलने से अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) कमजोर या ध्वस्त हो सकता है, जिससे यूरोप की जलवायु प्रणाली पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।
      •  अंटार्कटिका की समुद्री बर्फ के पिघलने से समुद्र की गहरी सतह उजागर हो जाती है जो अधिक ऊष्मा अवशोषित करती है, इससे तापमान और बढ़ता है तथा फाइटोप्लांकटन पर निर्भर समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ जाता है।

3.     जलती हुई भूमि:

2025 वाइल्डफायर रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2024 से फरवरी 2025 के बीच विश्व के 3.7 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में जंगलों में आग लगी, जो भारत और नॉर्वे के संयुक्त आकार के बराबर है।

4. जानलेवा गर्मी और मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:

गर्मी की लहरें अब सबसे घातक प्राकृतिक आपदा बनती जा रही हैं:

      • विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व मौसम संगठन का अनुमान है कि विश्व की आधी आबादी पहले से ही खतरनाक गर्मी का सामना कर रही है।
      • 20°C से ऊपर प्रत्येक 1°C तापमान वृद्धि पर श्रमिकों की उत्पादकता में 2–3% की गिरावट आती है, जिससे 2024 में वैश्विक अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का नुकसान हुआ।
      • यूरोप में गर्मी से संबंधित 62,000 से अधिक मौतें दर्ज की गईं, जो बढ़ते तापमान के मानवीय और स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों को उजागर करती हैं।

निष्कर्ष:

नवीनतम वैज्ञानिक निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करते हैं कि जलवायु परिवर्तन की गति पहले के अनुमानों से कहीं अधिक तेज़ और चिंताजनक हो चुकी है। यह तथ्य स्पष्ट संकेत देता है कि यदि विश्व समुदाय ने त्वरित, समन्वित और प्रभावी शमन (Mitigation) तथा अनुकूलन (Adaptation) प्रयास नहीं किए, तो आने वाले दशक में पृथ्वी कई महत्वपूर्ण जलवायु संतुलन बिंदुओं को पार करने के जोखिम में होगी। नीति-निर्माताओं के लिए COP30 को केवल घोषणाओं का नहीं, बल्कि क्रियान्वयन और ठोस जलवायु कार्रवाई का निर्णायक कदम बनाना आवश्यक है।