संदर्भ:
हाल ही में सरकार ने लोकसभा में संविधान (एक सौ तीसवाँ संशोधन) विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया, जिसका विपक्ष ने कड़ा विरोध किया। यह विधेयक अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन करते हुए गंभीर आपराधिक आरोपों में लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रखे गए मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को हटाने के लिए अनिवार्य प्रक्रिया स्थापित करने का प्रयास करता है। वर्तमान में, इस विधेयक को आगे की जांच हेतु संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिया गया है।
संशोधन के प्रमुख प्रावधान:
संशोधन के मूल में निम्न प्रस्ताव हैं:
· प्रधानमंत्री सहित कोई भी केंद्रीय मंत्री, जिसे पाँच वर्ष या उससे अधिक की कैद की सजा वाले आरोपों में लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है, उसे या तो इस्तीफा देना होगा या वह स्वतः ही पद से हट जाएगा।
· यदि प्रधानमंत्री 31वें दिन तक इस्तीफा नहीं देते, तो वे स्वतः पदमुक्त हो जाएंगे।
· इसी तरह के प्रावधान राज्य के मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों पर भी लागू होंगे, जहाँ पद से हटाने की सिफारिश मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल करेंगे (मुख्यमंत्री के मामले में स्वैच्छिक इस्तीफा आवश्यक होगा)।
· दिल्ली सरकार के संदर्भ में, अनुच्छेद 239AA के तहत समान प्रावधान प्रस्तावित किए गए हैं, जहाँ मुख्यमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा पद से हटाने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।
महत्वपूर्ण यह है कि विधेयक हिरासत से रिहा होने के बाद और यदि व्यक्ति बरी हो जाता है या कानूनी रूप से योग्य होता है, तो पुनर्नियुक्ति की अनुमति देता है। इससे कानूनी अनिश्चितता के दौरान अस्थायी रूप से पद से हटाने की आवश्यकता और निष्पक्षता के बीच संतुलन बना रहता है।
उद्देश्य:
· संवैधानिक नैतिकता का संरक्षण:
यह सुनिश्चित करना कि गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे व्यक्ति मंत्री पद पर बने न रहें, ताकि जनता का विश्वास प्रभावित न हो।
· स्वच्छ शासन:
सुशासन के सिद्धांतों के अनुरूप, हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को कार्यकारी पदों पर बने रहने से रोकना।
विवाद और चिंताएँ:
· संभावित दुरुपयोग: आलोचक यह मानते हैं कि इस विधेयक का उपयोग विपक्षी नेताओं को चुनिंदा गिरफ्तार या हिरासत में लेने के लिए किया जा सकता है, जिससे निर्दोषता की अवधारणा कमजोर हो सकती है।
· संघवाद और शक्तियों के पृथक्करण: यह विधेयक संघवाद तथा शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांतों का उल्लंघन कर सकता है, जिससे इसकी संवैधानिकता पर विवाद उत्पन्न हो सकता है।
संयुक्त संसदीय समिति के बारे में:
· संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) लोकसभा के नियमों के तहत गठित एक तदर्थ, द्विदलीय समिति है, जो विशिष्ट विधेयकों या नीतिगत मामलों की गहन जाँच करती है। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा गठित यह समिति दोनों सदनों के सदस्यों (आमतौर पर लोकसभा से 21 और राज्यसभा से 10) से मिलकर बनती है और यह पार्टीगत अनुपात को दर्शाती है।
· जेपीसी दस्तावेज़, गवाहों और विशेषज्ञों को बुलाने का अधिकार रखती है। यद्यपि इसकी सिफ़ारिशें सलाहकार होती हैं, लेकिन ये कानून निर्माण प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। आमतौर पर, समिति को रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए 90 दिन का समय दिया जाता है, जिसे बाद में संसद में प्रस्तुत किया जाता है।
आगे की राह:
संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 ने सार्वजनिक पदों पर जवाबदेही और उचित प्रक्रिया व संघवाद के सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाने पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) अपनी समीक्षा शुरू कर रही है, ऐसे में लोकतांत्रिक मानदंडों को नुकसान पहुँचाए बिना सुधार सुनिश्चित करने के लिए एक संतुलित, आम सहमति से प्रेरित दृष्टिकोण महत्वपूर्ण होगा।