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Blog / 01 May 2025

जलवायु परिवर्तन और बंगाल की खाड़ी में समुद्री उत्पादकता

संदर्भ:

हाल ही में नेचर जियोसाइंस में प्रकाशित एक नई समीक्षात्मक शोध में बंगाल की खाड़ी में समुद्री उत्पादकता के लिए एक गंभीर खतरे को उजागर किया गया है, जिसे भारत के गर्मी के मानसून में जलवायु-प्रेरित परिवर्तनशीलता से सीधे जोड़ा गया है।

  • शोध में चेतावनी दी गई है कि अगर मानसून की तीव्रता में अत्यधिक उतार-चढ़ाव होते हैं, तो वे समुद्र में पोषक तत्वों के चक्र को अपूरणीय रूप से बाधित कर सकते हैं, जिससे दक्षिण एशिया में खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

 

मानसून की परिवर्तनशीलता और समुद्री उत्पादकता

इस अध्ययन में फोरामिनिफेरा नामक सूक्ष्म प्लवकों के जीवाश्म रूपी खोलों का विश्लेषण करके पिछले 22,000 वर्षों के समुद्री और मानसूनी आंकड़ों का अध्ययन किया गया। ये कैल्शियम कार्बोनेट से बने खोल पर्यावरणीय संकेतों को संरक्षित रखते हैं। इस पैलियोसागरीय अध्ययन से पता चला कि अत्यधिक मजबूत या अत्यधिक कमजोर मानसून दोनों ही समुद्री मिश्रण को बाधित करते हैं, जिससे सतह पर पोषक तत्वों की आपूर्ति कम हो जाती है और फाइटोप्लवक (शैवाल) की वृद्धि प्रभावित होती है।

  • कमजोर मानसून (जैसे हाइनरिच स्टेडियल 1, 17,500–15,500 वर्ष पूर्व) के दौरान, पवन-चालित पोषक तत्वों का प्रवाह कम हो जाता है, जिससे समुद्र की गहराई से पोषक तत्व ऊपर नहीं आ पाते।
  • मजबूत मानसून (जैसे प्रारंभिक होलोसीन, 10,500–9,500 वर्ष पूर्व) के दौरान अत्यधिक मीठे पानी की वर्षा समुद्र की सतह पर एक "ढक्कन" जैसी परत बना देती है, जो नीचे के पोषक तत्वों को सतह तक नहीं आने देती।
  •  इन दोनों परिस्थितियों में समुद्री उत्पादकता में लगभग 50% की गिरावट देखी गई, जिससे समुद्री खाद्य श्रृंखला की नींव पर सीधा असर पड़ा और मछलियों की आबादी पर खतरा उत्पन्न हो गया।
  • आधुनिक समुद्री आंकड़े और जलवायु मॉडल भी इन ऐतिहासिक निष्कर्षों की पुष्टि करते हैं। अध्ययन के अनुसार, भविष्य की जलवायु परिस्थितियाँ सतही जल का तापमान बढ़ाएंगी और मानसून की तीव्रता में अत्यधिक उतार-चढ़ाव लाएँगी, जो पहले की पारिस्थितिक आपदाओं जैसी स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं।

Changes in monsoon affect marine productivity in Bay of Bengal

बंगाल की खाड़ी का महत्व:

बंगाल की खाड़ी, जो वैश्विक समुद्री सतह का केवल 1% से भी कम है, दुनिया के लगभग 8% मत्स्य उत्पादन में योगदान देती है। यह लगभग 15 करोड़ लोगों का पोषण और आजीविका सुनिश्चित करती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण योगदान है हिल्सा मछली, जो क्षेत्रीय आहार का एक मुख्य हिस्सा है और पारंपरिक मत्स्य उद्योग की आर्थिक रीढ़ है।

यह उभरता हुआ जलवायु संकट पहले से मौजूद अत्यधिक मछली पकड़ने की समस्या को और भी गंभीर बना देता है, खासकर पारंपरिक मछुआरों के लिए, जो बांग्लादेश के समुद्री पकड़ का 80% हिस्सा हैं। इनमें से कई पहले से ही टिकाऊ स्तरों से नीचे कार्य कर रहे हैं, जिससे वे जलवायु से उत्पन्न उत्पादकता के झटकों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। हिल्सा मछली विशेष रूप से इस पारिस्थितिक परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है और बार-बार उत्पादकता में गिरावट के कारण इसका अस्तित्व संकट में पड़ सकता है।

 

नीतिगत और शोध से जुड़े निष्कर्ष

  • क्षेत्रीय जलवायु मॉडलों को परिष्कृत किया जाए ताकि मानसून की परिवर्तनशीलता और उसके समुद्री प्रभावों का सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सके।
  • समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की क्षमता बढ़ाने के लिए अत्यधिक मछली पकड़ने पर नियंत्रण सहित टिकाऊ मत्स्य प्रबंधन नीतियाँ लागू की जाएं।
  • तटीय विकास योजनाओं में जलवायु अनुकूलन रणनीतियों को शामिल किया जाए ताकि समुद्री संसाधनों पर निर्भर समुदायों का समर्थन किया जा सके।

 

निष्कर्ष

यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक दोहन के दोहरे खतरे से निपटने के लिए तत्काल और बहु-आयामी कार्रवाई की एक गंभीर आवश्यकता को दर्शाता है। वैश्विक मत्स्य उद्योग और क्षेत्रीय खाद्य सुरक्षा में इस क्षेत्र की केंद्रीय भूमिका को देखते हुए, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा, टिकाऊ प्रथाओं को सुदृढ़ करने और वैश्विक तापन के प्रभावों को कम करने के लिए समन्वित प्रयास अत्यावश्यक हैं।