सन्दर्भ:
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय वन्य जीव और वनस्पति प्रजातियों के व्यापार पर अभिसमय (CITES) ने भारत से यह आग्रह किया है कि वह गोरिल्ला, चिंपांज़ी, ओरंगुटान और हिम तेंदुए जैसी अत्यंत संकटग्रस्त प्रजातियों (critically endangered species) के आयात को रोक दे, जब तक कि उचित नियम, निगरानी और सुरक्षा प्रणाली स्थापित न हो जाए।
पृष्ठभूमि:
CITES सचिवालय की तकनीकी टीम ने 15 से 20 सितंबर 2025 तक भारत का दौरा किया। इस दौरान उसने गुजरात के जामनगर स्थित वंतारा पहल (Vantara Initiative) के तहत दो संस्थानों का निरीक्षण किया —
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- ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर (GZRRC)
- राधा कृष्णा टेंपल एलीफेंट वेलफेयर ट्रस्ट (RKTEWT)
- ग्रीन्स जूलॉजिकल रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर (GZRRC)
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यह निरीक्षण इसलिए किया गया क्योंकि कुछ सदस्य देशों ने भारत द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों के बड़े पैमाने पर आयात और उनके स्रोत (origin) को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की थी। अधिकतर जानवर इन्हीं केंद्रों के लिए लाए जा रहे थे।
मुख्य निष्कर्ष:
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- रिपोर्ट में यह पाया गया कि भारत ने वन्य जीवों के आयात में पर्याप्त सतर्कता और सत्यापन नहीं किया।
- सभी आयात वैध CITES परमिट के तहत हुए थे, लेकिन जानवरों की वास्तविक उत्पत्ति (true origin) को लेकर शंका बनी हुई है।
- कुछ मामलों में पाया गया कि जंगली से पकड़े गए जानवरों को गलत तरीके से कैद में पले हुए (कैप्टिव-ब्रेड) बताकर प्रस्तुत किया गया।यह न केवल नैतिक चिंता का विषय है बल्कि अंतरराष्ट्रीय वन्यजीव संरक्षण मानकों का भी उल्लंघन माना जा सकता है।
- रिपोर्ट में यह पाया गया कि भारत ने वन्य जीवों के आयात में पर्याप्त सतर्कता और सत्यापन नहीं किया।
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CITES और भारत की जिम्मेदारियाँ:
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- CITES एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसे 1973 में अपनाया गया और 1975 में लागू किया गया।
- इसका मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतरराष्ट्रीय व्यापार से किसी भी वन्य जीव या पौधे की प्रजाति के अस्तित्व को खतरा न हो।
- इसमें हजारों प्रजातियाँ शामिल हैं जिन्हें उनके संकट के स्तर के आधार पर तीन वर्गों — परिशिष्ट-I, II और III में रखा गया है।
- भारत 1976 में CITES से जुड़ा और अपने राष्ट्रीय प्राधिकरणों को आयात-निर्यात की अनुमति जारी करने की जिम्मेदारी दी।
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अंतर्गत कोई भी चिड़ियाघर केवल मान्यता प्राप्त संस्थान से ही जानवरों का लेन-देन कर सकता है। इसलिए वन्यजीवों के आयात से पहले गहन जांच और पारदर्शिता अत्यंत आवश्यक है।
- CITES एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसे 1973 में अपनाया गया और 1975 में लागू किया गया।
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CITES मिशन की सिफारिशें:
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- भारत को वन्यजीव आयात की प्रक्रिया में सतर्कता, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ानी चाहिए।
- सभी आयातित जानवर के स्रोत और वैधता की गहराई से जांच होनी चाहिए, विशेषकर उन देशों से आने वाले जानवरों की जहां ऐसी प्रजातियों का प्रजनन सामान्य नहीं है।
- केवल परमिट की उपलब्धता को वैधता का प्रमाण न माना जाए; यह सुनिश्चित किया जाए कि व्यापार वास्तव में कानूनी और नैतिक है।
- संदेह की स्थिति में जानवरों की देश के भीतर ही देखभाल और पुनर्वास व्यवस्था हो, ताकि जांच प्रक्रिया पूरी की जा सके।
- भारत को वन्यजीव आयात की प्रक्रिया में सतर्कता, पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ानी चाहिए।
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निष्कर्ष:
CITES की यह रिपोर्ट भारत के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी आयातित वन्य जीव वास्तव में कैद में पाले गए और कानूनी रूप से प्राप्त हों और उनका व्यापार पूरी तरह पारदर्शी और अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप हो। इसके लिए राष्ट्रीय CITES प्राधिकरणों, सीमा शुल्क विभाग और जूलॉजिकल संस्थानों के बीच मजबूत समन्वय और सूचना-साझाकरण जरूरी है।
