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Blog / 11 Nov 2025

भारत में क्रॉनिक किडनी रोग: बढ़ता बोझ, कारण और सरकारी पहल | Dhyeya IAS

सन्दर्भ:

हाल ही में द लैंसेट पत्रिका में प्रकाशित वैश्विक रोग बोझ (Global Burden of Disease – GBD) 2023 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 13.8 करोड़ लोग दीर्घकालिक क्रॉनिक गुर्दा रोग (Chronic Kidney Disease – CKD) से प्रभावित हैं। भारत में यह संख्या चीन (15.2 करोड़) के बाद विश्व में दूसरे स्थान पर है, जो भारत में इस रोग की तेज़ी से बढ़ती प्रवृत्ति और जन-स्वास्थ्य के लिए गंभीर चेतावनी को दर्शाती है।

दीर्घकालिक गुर्दा रोग क्या है?

दीर्घकालिक गुर्दा रोग (Chronic) एक ऐसी लंबे समय तक बनी रहने वाली रोग अवस्था है, जिसमें गुर्दे धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और वे रक्त से अपशिष्ट पदार्थ तथा अतिरिक्त द्रव को छानने की अपनी प्राकृतिक क्षमता खो देते हैं।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष :

    • वैश्विक स्थिति:
      • वर्ष 2023 में  दीर्घकालिक गुर्दा रोग (CKD)विश्व में मृत्यु का 9वां सबसे बड़ा कारण था।
      • इस रोग से लगभग 15 लाख लोगों की मृत्यु हुई।
    • क्षेत्रवार प्रसार :
      • उत्तर अफ्रीका और मध्य पूर्व: लगभग 18%
      • दक्षिण एशिया: लगभग 16%
      • उप-सहारा अफ्रीका और लैटिन अमेरिका: लगभग 15%
      • भारत: 138 मिलियन (13.8 करोड़) मामलेविश्व में दूसरा स्थान
    • CKD और हृदय रोग का संबंध :
      • CKD से वैश्विक स्तर पर होने वाली हृदय संबंधी मौतों का लगभग 12% जुड़ा हुआ है।
      • यह हृदय रोग से होने वाली मृत्यु का सातवां प्रमुख कारण है, और डायबिटीज़ तथा मोटापे  से आगे है।

मुख्य जोखिम कारक:

अध्ययन में 14 प्रमुख जोखिम कारक बताए गए, जिनमें सबसे ज़्यादा प्रभावशाली हैं:

      • मधुमेह (Diabetes mellitus)
      • उच्च रक्तचाप (Hypertension / High blood pressure)
      • मोटापा
      • खानपान से जुड़ी आदतें (Dietary risks):
      • फल और सब्ज़ियों का कम सेवन
      • ज़्यादा नमक (sodium) का सेवन
      • स्वास्थ्य सेवाओं और जाँच की सीमित पहुँच
    • अन्य कारणों में शामिल हैं
      • बढ़ती उम्र , पर्यावरणीय प्रदूषण और जीवनशैली में बदलाव ।

भारत की विशेष चुनौतियाँ :

      • भारत में CKD की प्रचलन दर लगभग 16% है, जो गैर-संचारी रोगों में वृद्धि को दर्शाती है।
      • ज़्यादातर मामलों का पता देर से चलता है,जब मरीज को डायलिसिस  या किडनी प्रत्यारोपण की ज़रूरत पड़ती है, जो दोनों ही बहुत महंगे हैं और आम लोगों के लिए मुश्किल से उपलब्ध हैं।
      • भारत में CKD की जाँच और इलाज की सुविधाएँ शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में असमान  हैं।

नीतिगत सुझाव और सिफारिशें:

शोधकर्ताओं का मानना है कि CKD को एक प्रमुख गैर-संचारी रोग के रूप में वैसे ही गंभीरता से लिया जाना चाहिए, जैसे डायबिटीज़ और हृदय रोगों  को लिया जाता है।

मुख्य रणनीतियाँ:

      • प्रारंभिक जाँच और रोकथाम: मधुमेह और उच्च रक्तचाप वाले मरीजों के लिए नियमित किडनी जाँच अनिवार्य की जाए।
      • जन-जागरूकता अभियान: स्वस्थ आहार और कम नमक के सेवन को बढ़ावा दिया जाए।
      • सस्ती और समान स्वास्थ्य सेवाएँ: सरकारी योजनाओं के तहत डायलिसिस और प्रत्यारोपण की सुविधाएँ बढ़ाई जाएँ।
      • प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को सशक्त बनाना: आयुष्मान भारतहेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में CKD की जाँच और इलाज की सुविधा को शामिल किया जाए।

निष्कर्ष:

वैश्विक रोग बोझ (GBD) 2023 की रिपोर्ट भारत के लिए एक चेतावनी है। CKD की बढ़ती दर बताती है कि भारत को अब उपचार-आधारित नीति से हटकर रोकथाम-आधारित नीति अपनानी होगी।  इसमें नियमित स्क्रीनिंग, जीवनशैली सुधार और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं का समावेश जरूरी है। यदि समय पर कदम नहीं उठाए गए, तो दीर्घकालिक गुर्दा रोग भारत की आने वाले दशकों की सबसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं में से एक बन सकता है।