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Blog / 17 May 2025

चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के कुछ स्थानों का नाम बदलना

संदर्भ:
हाल ही में चीन ने एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताते हुए वहां के स्थानों के नए नामों की पाँचवीं सूची जारी की है। चीन अरुणाचल प्रदेश को जांगनानया दक्षिण तिब्बत कहता है और लगभग 90,000 वर्ग किलोमीटर भारतीय क्षेत्र पर अपना दावा करता है। भारत ने चीन के इस कदम को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा है कि यह नाम बदलने की कोशिशें राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित और अवैध हैं।

चीन की नाम बदलने की रणनीति के पीछे रणनीतिक उद्देश्य:

चीन की यह रणनीति उसकी व्यापक योजना का हिस्सा है, जिसके तहत वह घरेलू और वैश्विक स्तर पर अपने क्षेत्रीय दावों को वैध ठहराना चाहता है। इसमें शामिल हैं:

  • राजनयिक दबाव: भारतीय नेताओं की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर आपत्ति जताना।
  • वीजा से इनकार: अरुणाचल प्रदेश के खिलाड़ियों को वीजा देने से इनकार करना।
  • मानचित्र आक्रामकता: ऐसे नक्शे प्रकाशित करना जिनमें अरुणाचल प्रदेश को चीन का हिस्सा दिखाया गया हो।

चीनी अधिकारी इस नामकरण की तुलना भारत द्वारा बॉम्बे को मुंबई जैसे नामों में परिवर्तन से करते हैं, लेकिन यह तुलना गलत है क्योंकि भारत ने अपने निर्विवाद क्षेत्रों के नाम बदले हैं, जबकि चीन एक ऐसे क्षेत्र पर दावा जता रहा है जो उसका है ही नहीं।

भारत-चीन सीमा विवाद:

भारत-चीन की 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा कई हिस्सों में अस्पष्ट बनी हुई है। 1962 के युद्ध के बाद स्थापित "वास्तविक नियंत्रण रेखा" (LAC) कार्यशील सीमा के रूप में कार्य करती है, परंतु कई स्थानों पर इसकी स्पष्टता नहीं है। सीमा को तीन भागों में बाँटा गया है:

  • पश्चिमी सेक्टर: लद्दाख
  • मध्य सेक्टर: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड
  • पूर्वी सेक्टर: अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम

मुख्य विवादित क्षेत्र:

  • अक्साई चिन (पश्चिमी सेक्टर): वर्तमान में चीन के नियंत्रण में है, भारत द्वारा लद्दाख का हिस्सा माना जाता है। यह क्षेत्र चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के निकट होने के कारण सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
  • अरुणाचल प्रदेश (पूर्वी सेक्टर): भारत द्वारा प्रशासित एक पूर्वोत्तर राज्य है, जिसे चीन "दक्षिण तिब्बत" कहकर पूर्ण रूप से अपना दावा जताता है।

भारत की प्रतिक्रिया:

1. क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत बनाना

  • नेपाल के साथ: 2024 में भारत-नेपाल ने 10 वर्षों में 10,000 मेगावाट विद्युत् के निर्यात हेतु समझौता किया। साथ ही रक्सौल-पर्वानिपुर, कुशाहा-कतैया और न्यू नौतनवा-मैनहिया जैसी तीन अंतरराष्ट्रीय पारेषण लाइनें शुरू कीं।
  • भूटान के साथ: गेलेफू माइंडफुलनेस सिटी (2500 किमी) शून्य-कार्बन परियोजना को समर्थन।

2. "नेकलेस ऑफ डायमंड्स" रणनीति

  • चीन की "स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स" रणनीति का जवाब।
  • समुद्री ठिकानों का विकास, सैन्य उपस्थिति में वृद्धि और क्षेत्रीय कूटनीति के माध्यम से हिंद महासागर और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के प्रभाव को सीमित करना।

3. बुनियादी ढांचा विकास:

2024 में सीमा सड़क संगठन (BRO) ने कुल 111 परियोजनाएँ पूरी कीं, जिनकी कुल लागत ₹3,751 करोड़ थी। इसमें ₹1,508 करोड़ की 36 परियोजनाएँ शामिल हैं, जैसे कि अरुणाचल प्रदेश में अत्याधुनिक सेला सुरंग।

4. वैश्विक रणनीतिक गठबंधन:

  • क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया): समुद्री सुरक्षा और व्यापार को बढ़ावा।
  • I2U2 (भारत, इज़राइल, अमेरिका, UAE): पश्चिम एशिया में भारत की स्थिति को सुदृढ़ करना।
  • भारत -मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा ( आईएमईसी ): चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का विकल्प; मध्य पूर्व के ज़रिए व्यापारिक मार्ग को बेहतर बनाना।
  • आईएनएसटीसी (इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर): 7,200 किमी लंबा व्यापार मार्ग, जो चाबहार बंदरगाह के माध्यम से CPEC का रणनीतिक विकल्प प्रदान करता है।

निष्कर्ष:

चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के स्थानों का नाम बदलना भारतीय क्षेत्र पर झूठे दावों को स्थापित करने का जानबूझकर किया गया प्रयास है। भारत ने इसका कड़ा विरोध करते हुए राजनयिक विरोध, सैन्य तत्परता, बुनियादी ढांचे के विकास, क्षेत्रीय सहयोग और वैश्विक गठबंधनों के माध्यम से अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय हितों की रक्षा के लिए एक व्यापक और मजबूत रणनीति अपनाई है।