संदर्भ:
हाल ही में चीन ने विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान समझौते के तहत भारत के साथ औपचारिक परामर्श की मांग की है। यह शिकायत मुख्य रूप से भारत द्वारा सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उत्पादों पर लगाए गए शुल्क और सौर ऊर्जा क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी से संबंधित है। चीन का आरोप है कि भारत की ये नीतियाँ विश्व व्यापार संगठन के मूलभूत नियमों का उल्लंघन करती हैं, जिनमें राष्ट्रीय उपचार का सिद्धांत और आयात-प्रतिस्थापन आधारित सब्सिडी पर प्रतिबंध शामिल हैं। यह वर्ष 2025 में भारत के खिलाफ चीन द्वारा दायर किया गया दूसरा विवाद है। इससे पहले चीन ने इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी से जुड़ी सब्सिडी को लेकर भी भारत के खिलाफ शिकायत की थी। इन घटनाओं से दोनों देशों के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव का संकेत मिलता है।
विवाद के प्रमुख मुद्दे:
चीन की शिकायत मुख्य रूप से भारत द्वारा अपनाई गई दो प्रमुख नीतिगत व्यवस्थाओं पर केंद्रित है:
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सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों पर शुल्क:
- भारत ने घरेलू विनिर्माण और मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयातित सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उत्पादों पर अपेक्षाकृत उच्च शुल्क बनाए रखे हैं। यह नीति मेक इन इंडिया और विभिन्न उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का हिस्सा है।
- चीन का तर्क है कि ये शुल्क विश्व व्यापार संगठन के अंतर्गत भारत द्वारा निर्धारित अधिकतम शुल्क प्रतिबद्धताओं से अधिक हैं, और राष्ट्रीय उपचार के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं, जिसके अनुसार किसी भी आयातित वस्तु को घरेलू बाजार में प्रवेश के बाद समान घरेलू वस्तुओं की तुलना में कम अनुकूल व्यवहार नहीं दिया जाना चाहिए।
- भारत ने घरेलू विनिर्माण और मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयातित सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) उत्पादों पर अपेक्षाकृत उच्च शुल्क बनाए रखे हैं। यह नीति मेक इन इंडिया और विभिन्न उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं का हिस्सा है।
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सौर क्षेत्र में दी जा रही सब्सिडी:
- भारत ने सौर फोटोवोल्टिक विनिर्माण और सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार की सब्सिडी और प्रोत्साहन योजनाएँ लागू की हैं। इनका उद्देश्य एक मजबूत और आत्मनिर्भर घरेलू सौर पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना और आयात पर निर्भरता को कम करना है।
- चीन का तर्क है कि इनमें से कुछ प्रोत्साहन योजनाएँ आयात-प्रतिस्थापन आधारित सब्सिडी के समान हैं, जिन्हें विश्व व्यापार संगठन के नियम सीमित करते हैं, क्योंकि ये लाभ को घरेलू उत्पादों के उपयोग से जोड़ती हैं और आयातित वस्तुओं के उपयोग को हतोत्साहित करती हैं तथा घरेलू उत्पादकों को विदेशी आपूर्तिकर्ताओं की तुलना में अनुचित प्रतिस्पर्धात्मक लाभ प्रदान करती हैं।
- भारत ने सौर फोटोवोल्टिक विनिर्माण और सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार की सब्सिडी और प्रोत्साहन योजनाएँ लागू की हैं। इनका उद्देश्य एक मजबूत और आत्मनिर्भर घरेलू सौर पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करना और आयात पर निर्भरता को कम करना है।
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विश्व व्यापार संगठन और विवाद निपटान तंत्र:
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- विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना 1995 में सामान्य सीमा शुल्क एवं व्यापार समझौते (GATT) के उत्तराधिकारी के रूप में की गई थी। यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों को नियंत्रित करने वाली प्रमुख वैश्विक संस्था है। इसका उद्देश्य वैश्विक व्यापार को सुचारू, पूर्वानुमेय और भेदभाव-रहित बनाना है। WTO व्यापार वार्ताओं का संचालन करता है, व्यापार समझौतों की निगरानी करता है और विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
- विश्व व्यापार संगठन की एक प्रमुख विशेषता इसकी बाध्यकारी विवाद निपटान प्रणाली है, जिसे विवाद निपटान निकाय द्वारा संचालित किया जाता है। इस प्रक्रिया में सामान्यतः निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
- परामर्श: अधिकतम 60 दिन के लिए, ताकि पक्षकार आपसी सहमति से समाधान निकाल सकें।
- पैनल कार्यवाही: स्वतंत्र विशेषज्ञ विवाद की जांच और विश्लेषण करते हैं।
- अपील समीक्षा: कानूनी बिंदुओं पर अपील की जाती है।
- निर्णय का क्रियान्वयन और अनुपालन निगरानी: निर्णय लागू होने पर इसकी निगरानी की जाती है।
- प्रतिशोधात्मक उपाय: यदि निर्णय लागू नहीं होता, तो WTO सदस्य देशों को सीमित प्रतिशोधात्मक कार्रवाई की अनुमति देता है।
- परामर्श: अधिकतम 60 दिन के लिए, ताकि पक्षकार आपसी सहमति से समाधान निकाल सकें।
- वर्ष 2019 से WTO की अपील व्यवस्था प्रभावी रूप से निष्क्रिय हो गई है, क्योंकि कुछ देशों ने न्यायाधीशों की नियुक्ति को रोक दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि विवाद निपटान की प्रभावशीलता कमजोर हो गई। इस स्थिति से निपटने के लिए चीन और यूरोपीय संघ सहित कुछ देशों ने अस्थायी बहु-पक्षीय अपील व्यवस्था (MPIA) को अपनाया है।
- विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना 1995 में सामान्य सीमा शुल्क एवं व्यापार समझौते (GATT) के उत्तराधिकारी के रूप में की गई थी। यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों को नियंत्रित करने वाली प्रमुख वैश्विक संस्था है। इसका उद्देश्य वैश्विक व्यापार को सुचारू, पूर्वानुमेय और भेदभाव-रहित बनाना है। WTO व्यापार वार्ताओं का संचालन करता है, व्यापार समझौतों की निगरानी करता है और विकासशील देशों को तकनीकी सहायता प्रदान करता है।
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निष्कर्ष:
सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों पर शुल्क और सौर क्षेत्र की सब्सिडी को लेकर भारत के विरुद्ध चीन द्वारा विश्व व्यापार संगठन में परामर्श की मांग, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच बढ़ते व्यापारिक तनाव को दर्शाती है। यह विवाद भारत के सामने एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करता है कि एक ओर उसे रणनीतिक औद्योगिक नीति और आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों को आगे बढ़ाना है, वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों और प्रतिबद्धताओं का पालन भी सुनिश्चित करना है। इन परामर्शों का परिणाम न केवल भारत–चीन आर्थिक संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि यह इस व्यापक बहस में भी योगदान देगा कि उभरती अर्थव्यवस्थाएँ विकास की अपनी आवश्यकताओं और बहुपक्षीय व्यापार नियमों के बीच संतुलन किस प्रकार स्थापित कर सकती हैं।
