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Blog / 23 Aug 2025

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा 2.0

संदर्भ:

हाल ही में इस्लामाबाद में चीन और पाकिस्तान के बीच आयोजित छठी रणनीतिक वार्ता ने भारत की भू-राजनीतिक चिंताएं फिर से बढ़ा दी हैं। चीनी विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार सीपीईसी 2.0 की समीक्षा कर रहे हैं। सीपीईसी का यह उन्नत चरण गहन सहयोग, तकनीकी एकीकरण और संवेदनशील क्षेत्रों में विस्तार को शामिल करता है, जो भारत के लिए गहन समीक्षा की आवश्यकता उत्पन्न करता है।

सीपीईसी 2.0: विस्तार और महत्व:

·         2013 में शुरू हुआ चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) काशगर (चीन) को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) के रास्ते ग्वादर (पाकिस्तान) से जोड़ता है।

·         सीपीईसी 2.0 में डिजिटल बुनियादी ढांचा, ऊर्जा गलियारा, विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZs) और संभावित रूप से अफगानिस्तान को भी शामिल किया गया है।

·         अनुमानित कुल निवेश $62 बिलियन है।

·         यह चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) से रणनीतिक रूप से जुड़ा हुआ है।

भारत की चिंताएँ:

1.        संप्रभुता का उल्लंघन:
CPEC का मार्ग पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू एवं कश्मीर (PoJK) से होकर गुजरता है, जिस पर भारत अपना कानूनी दावा करता है। भारत इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन मानता है।

2.      रणनीतिक खतरा:

·         CPEC के माध्यम से ग्वादर बंदरगाह पर चीन की नौसैनिक पहुंच बढ़ेगी, जिससे भारत के पश्चिमी तट के समीप चीन की उपस्थिति मजबूत होगी।

·         यह दोहरे उपयोग वाले सैन्य बुनियादी ढांचे के रूप में भी काम कर सकता है, जिससे चीन को सैन्य तैनाती में तेजी मिलेगी।

·         CPEC के जरिए अफगानिस्तान से चीन का संपर्क भारत को रणनीतिक रूप से घेर सकता है।

3.      चीन-पाकिस्तान धुरी को मजबूत करना:

CPEC 2.0 चीन-पाकिस्तान के गहरे रणनीतिक सहयोग का प्रतीक है, जो भारत के क्षेत्रीय प्रभाव को कम करता है और दक्षिण एशिया व मध्य एशिया में भारत की रणनीतिक गतिशीलता को सीमित करता है।

भारत के उपाय:

1.      कूटनीतिक और रणनीतिक कदम:

·         बीआरआई शिखर सम्मेलनों का बहिष्कार: भारत वैश्विक मंचों पर सीपीईसी और बीआरआई का कूटनीतिक विरोध जारी रखे हुए है।

·         चाबहार बंदरगाह का विकास: भारत, ईरान और अफगानिस्तान के साथ मिलकर वैकल्पिक क्षेत्रीय संपर्क बढ़ा रहा है।

·         भारत-मध्य पूर्व-यूरोप गलियारा (IMEC): यह सीपीईसी और बीआरआई के लिए भारत का दीर्घकालिक प्रतिकार है।

2.      सहयोगियों से जुड़ाव:

·         चीन-पाकिस्तान की निकटता को संतुलित करने के लिए रूस, अमेरिका, ईरान और खाड़ी देशों के साथ संबंध मजबूत करना।

·         हिंद-प्रशांत और यूरेशिया में लोकतांत्रिक तथा नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देना।

निष्कर्ष:

सीपीईसी 2.0 केवल एक द्विपक्षीय पहल नहीं, बल्कि भारत के मूल हितों को प्रभावित करने वाला एक रणनीतिक पुनर्संतुलन है। भारत को सतर्क रहकर संप्रभुता के उल्लंघनों का कड़ा विरोध करना चाहिए और क्षेत्रीय व वैश्विक गठबंधनों को मजबूत बनाना चाहिए। बहुपक्षीय जुड़ाव, बुनियादी ढांचा कूटनीति और निरंतर वैश्विक समर्थन भारत की क्षेत्रीय अखंडता और रणनीतिक स्वायत्तता की रक्षा के लिए आवश्यक हैं।