संदर्भ:
हाल ही में चीन ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में भारत के खिलाफ एक औपचारिक शिकायत दर्ज की है। उसका कहना है कि भारत इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) और बैटरी निर्माण उद्योग को जो सब्सिडी और प्रोत्साहन दे रहा है, वे वैश्विक व्यापार नियमों के विरुद्ध हैं।
पृष्ठभूमि:
भारत ने पिछले कुछ वर्षों में घरेलू इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग और हरित प्रौद्योगिकी पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने के लिए तेज़ी से कदम उठाए हैं। इस उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएँ लागू की गई हैं, जिनमें प्रमुख हैं:
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- फेम/फेम II (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles) योजना: यह योजना उपभोक्ताओं की मांग बढ़ाने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करती है।
- उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन (PLI) योजना: इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण में अधिक मूल्य संवर्धन और बड़े पैमाने पर उत्पादन को बढ़ावा देना है।
- पीएम ई-ड्राइव कार्यक्रम: यह योजना स्थानीयकरण मानकों को पूरा करने वाली ईवी और बैटरी निर्माण इकाइयों को सब्सिडी देने की दिशा में काम करती है।
- राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज भंडार (NCMS) प्रस्ताव: इसके तहत भारत रेयर अर्थ मेटल्स और बैटरी उत्पादन में उपयोग होने वाले महत्वपूर्ण खनिजों का रणनीतिक भंडार तैयार करने पर विचार कर रहा है, ताकि घरेलू आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत किया जा सके।
- फेम/फेम II (Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles) योजना: यह योजना उपभोक्ताओं की मांग बढ़ाने के लिए आर्थिक प्रोत्साहन प्रदान करती है।
चीन के आरोप:
चीन की शिकायत मुख्य रूप से कई कानूनी दावों पर आधारित है:
1. राष्ट्रीय उत्पादकों को समर्थन: चीन का आरोप है कि भारत की सब्सिडी नीतियाँ घरेलू उत्पादकों को विदेशी उत्पादकों की तुलना में अधिक लाभ पहुंचाती हैं, जो विश्व व्यापार संगठन के गैर-भेदभाव सिद्धांत के खिलाफ है।
2. आयात प्रतिस्थापन सब्सिडी: चीन का तर्क है कि कुछ प्रोत्साहन "आयात प्रतिस्थापन" की प्रकृति के हैं, अर्थात ये आयात की तुलना में घरेलू स्रोतों का उपयोग बढ़ाने के लिए दिए जाते हैं, जो विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत प्रतिबंधित हैं।
3. निषिद्ध या व्यापार विकृत करने वाली सब्सिडी: कुछ योजनाओं की संरचना ऐसी हो सकती है कि वे निषिद्ध सब्सिडी के दायरे में आती हैं, विशेषकर यदि वे निर्यात प्रदर्शन या आयात घटाने पर आधारित हों।
भारत की संभावित दलीलें:
भारत अपने पक्ष में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत कर सकता है:
· सुरक्षा और सार्वजनिक हित अपवाद: शुल्क और व्यापार पर सामान्य समझौता (GATT) के अनुच्छेद XXI के तहत, यदि कोई उपाय राष्ट्रीय सुरक्षा, ऊर्जा संक्रमण या पर्यावरणीय सुरक्षा के लिए आवश्यक हो, तो उसे वैध ठहराया जा सकता है।
· सब्सिडी और कानून संरचना: भारत यह तर्क दे सकता है कि उसकी योजनाएँ विश्व व्यापार संगठन मानकों के अनुरूप डिज़ाइन की गई हैं। ये सीधे आयात घटाने या निर्यात बढ़ाने पर आधारित नहीं हैं और घरेलू उद्योग को होने वाला लाभ केवल सहायक प्रभाव के रूप में है।
· विकास और परिवर्तन का तर्क: भारत यह भी कह सकता है कि नए हरित-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के विकास के लिए सब्सिडी देना एक विकासशील देश के अधिकार में आता है और यह विश्व व्यापार संगठन के “विशेष और अलग व्यवहार (SDT)” प्रावधान के अंतर्गत वैध है।
विश्व व्यापार संगठन विवाद निपटान प्रक्रिया:
1. परामर्श चरण (60 दिन): चीन ने आधिकारिक तौर पर परामर्श की मांग की है। यदि इस अवधि में कोई समाधान नहीं निकलता, तो चीन विवाद पैनल बनाने की मांग कर सकता है।
2. पैनल चरण: इस चरण में पैनल दोनों देशों की दलीलें सुनेगा, साक्ष्यों की समीक्षा करेगा और निर्णय देगा।
3. अपील चरण: निर्णय के बाद पक्ष डब्लूटीओ की अपीलीय संस्था में जा सकते हैं। हालांकि, 2019 से अपीलीय निकाय सक्रिय नहीं है, जिससे फैसले को लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
निष्कर्ष:
इलेक्ट्रिक वाहन सब्सिडी को लेकर चीन द्वारा WTO में की गई शिकायत इस बात का संकेत है कि वैश्विक EV बाजार में प्रतिस्पर्धा तेज़ होती जा रही है। जैसे-जैसे यह विवाद आगे बढ़ेगा, इसका परिणाम न केवल भारत और चीन के रिश्तों पर, बल्कि स्वच्छ ऊर्जा व्यापार और वैश्विक वाणिज्यिक नियमों पर भी गहरा प्रभाव डाल सकता है।
