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Blog / 13 Sep 2025

बाल पोषण रिपोर्ट 2025

संदर्भ:

हाल ही में यूनिसेफ ने बाल पोषण रिपोर्ट 2025 जारी की, जिसमें बच्चों के आहार और स्वास्थ्य की वैश्विक स्थिति को लेकर गंभीर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि 5 से 19 वर्ष के बच्चों और किशोरों में कम वज़न की तुलना में मोटापा कुपोषण का सबसे आम रूप बन गया है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

·         2025 में ऐतिहासिक बदलाव: वर्तमान समय में 5–19 वर्ष के बच्चों में 9.4% मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि 9.2% कम वज़न वाले हैं। यह वैश्विक कुपोषण की प्रवृत्ति में एक बड़ा बदलाव है।

·          संख्या में वृद्धि: वर्ष 2000 से अब तक अधिक वज़न वाले बच्चों और किशोरों की संख्या 194 मिलियन से दोगुनी होकर 391 मिलियन हो गई है।

·         विकासशील देशों पर गहरा प्रभाव: वर्तमान में 80% से अधिक अधिक वज़न वाले बच्चे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं, जहाँ कुपोषण और मोटापा एक साथ मौजूद हैं।

·         बचपन में खराब आहार: छोटे बच्चे (6–23 महीने) अक्सर फलों, सब्ज़ियों और प्रोटीन जैसे पौष्टिक भोजन से वंचित रहते हैं। इसके विपरीत, मीठे, नमकीन और अत्यधिक प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थ बहुत कम उम्र से ही उनके आहार का हिस्सा बन जाते हैं।

अस्वास्थ्यकर आहार वातावरण के कारण:

·         आक्रामक और लक्षित विज्ञापन: एक वैश्विक सर्वेक्षण के अनुसार, हर चार में से तीन बच्चों ने पिछले सप्ताह जंक फूड का विज्ञापन देखा। यह विज्ञापन विशेष रूप से डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिखाई देते हैं, जिन्हें माता-पिता या नियामक संस्थाओं के लिए नियंत्रित करना कठिन है।

·         जंक फूड की आसान उपलब्धता: दुनिया के कई हिस्सों में जंक फूड ताज़ा और पौष्टिक भोजन की तुलना में सस्ता और अधिक सुलभ है। इसका सबसे अधिक प्रभाव कम आय वाले परिवारों पर पड़ता है।

·         कमज़ोर नीतियाँ: प्रभावी नियमों और उनके सख़्त पालन की कमी के कारण स्कूलों और शहरी क्षेत्रों में अस्वास्थ्यकर भोजन और पेय पदार्थ आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं।

निष्क्रियता के परिणाम:

·         जीवनभर की स्वास्थ्य समस्याएँ: आज के बच्चों को भविष्य में मोटापे से जुड़ी गंभीर बीमारियों जैसे डायबिटीज़, हृदय रोग और कुछ प्रकार के कैंसर का उच्च जोखिम रहेगा।

·         आर्थिक बोझ: वर्ष 2035 तक मोटापा और अधिक वज़न का वैश्विक आर्थिक बोझ सालाना 4 ट्रिलियन डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। इससे स्वास्थ्य सेवाओं, उत्पादकता और पूरी अर्थव्यवस्था पर भारी असर पड़ेगा।

यूनिसेफ की सिफारिशें:

1.        मज़बूत खाद्य नीतियाँ लागू करना:

·         बच्चों को जंक फूड के विज्ञापन और बिक्री पर प्रतिबंध।

·         शर्करायुक्त पेय पदार्थों पर कर लगाना।

·         पैकिंग पर स्पष्ट चेतावनी लेबल का उपयोग।

2.      शुरुआत से ही स्वस्थ आहार को बढ़ावा देना:

·         केवल स्तनपान को प्रोत्साहित करना।

·         ताज़ा और स्थानीय खाद्य पदार्थों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।

·         माता-पिता और देखभाल करने वालों को पोषण संबंधी शिक्षा देना।

3.      युवाओं की भागीदारी बढ़ाना:

·         खाद्य न्याय से जुड़े अभियानों में युवाओं के नेतृत्व को समर्थन देना।

·         किशोरों को खाद्य नीति से जुड़ी चर्चाओं में शामिल करना।

4.     डेटा और निगरानी को मज़बूत करना:

·         आहार पैटर्न, खाद्य वातावरण और बचपन में मोटापे के रुझानों की निगरानी के लिए नियमित रूप से डेटा एकत्र करना और उसका उपयोग करना।

भारत में कुपोषण से निपटने के लिए प्रमुख सरकारी कार्यक्रम:

1.        पोषण अभियान (POSHAN Abhiyaan)

o    बच्चों (0–6 वर्ष), गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को लक्षित करता है।

o    जीवन के पहले 1,000 दिनों पर खास ध्यान।

o    तकनीक, विभागों के बीच तालमेल और सामुदायिक भागीदारी पर आधारित।

2.      एकीकृत बाल विकास सेवाएँ (ICDS)

o    पूरक पोषण, स्वास्थ्य जांच और प्री-स्कूल शिक्षा उपलब्ध कराता है।

o    चुनौतियाँ: अपर्याप्त फंडिंग, गुणवत्ता की कमी और स्टाफ की कमी।

3.      पीएम पोषण (मिड-डे मील योजना)

o    स्कूल के बच्चों को पका हुआ भोजन उपलब्ध कराता है।

o    पोषण और स्कूल उपस्थिति को बढ़ावा देता है।

o    लेकिन 6 वर्ष से छोटे बच्चे शामिल नहीं हैं और कोविड-19 के दौरान योजना प्रभावित हुई।

निष्कर्ष:

रिपोर्ट विश्व समुदाय से आह्वान करती है कि तुरंत और साहसिक कदम उठाए जाएँ,  भोजन के वातावरण में सुधार किया जाए, जंक फूड के विज्ञापन और प्रसार को नियंत्रित किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रत्येक बच्चे को पौष्टिक, सस्ता तथा सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त आहार उपलब्ध हो। यदि समय पर कार्यवाही नहीं की गई तो आने वाली पीढ़ी अस्वस्थ और असुरक्षित भविष्य की ओर चली जाएगी।