संदर्भ:
रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान) के शोधकर्ताओं ने एक नया प्रयोगात्मक तरीका विकसित किया है। इस तकनीक की मदद से वे यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि जटिल तरल पदार्थ “विशेष रूप से वर्मलाइक माइसेलर फ्लुइड्स (WMFs), जो सर्फ़ैक्टेंट अणुओं के द्वारा बनते हैं” सूक्ष्म स्तर पर किस प्रकार का व्यवहार करते हैं।
वर्मलाइक माइसेलर फ्लुइड्स (WMFs) क्या होते हैं?
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- वर्मलाइक माइसेलर फ्लुइड्स एक प्रकार के जटिल तरल पदार्थ हैं, जो सर्फ़ैक्टेंट अणुओं के स्वयं-संगठन से बनने वाली लंबी, लचीली और बेलनाकार संरचनाओं (micelles) से मिलकर बनते हैं।
- ये माइसेल आपस में मिलकर एक अस्थायी नेटवर्क तैयार करते हैं, जिससे तरल में विस्कोइलास्टिक गुण (जिसमें चिपचिपा और इलास्टिक दोनों गुण होते हैं) और शेयर-थिनिंग जैसी विशिष्टताएँ विकसित होती हैं, जो पॉलीमर घोलों के समान होती हैं।
- इन फ्लुइड्स का उपयोग तेल निष्कर्षण, सौंदर्य प्रसाधनों, शैंपू, जेल और विभिन्न पॉलीमर-आधारित उत्पादों में व्यापक स्तर पर किया जाता है। इसी कारण इनका विस्तृत अध्ययन उद्योगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- पानी जैसे साधारण न्यूटनियन फ्लुइड्स में गिरने वाली वस्तुएँ कुछ समय बाद एक स्थिर टर्मिनल वेलोसिटी प्राप्त कर लेती हैं, लेकिन नॉन-न्यूटनियन फ्लुइड्स में ऐसा नहीं होता, इनमें वस्तुएँ अक्सर स्थिर गति तक नहीं पहुँचतीं। इनके आसपास लगातार बनने और टूटने वाली स्थानीय संरचनाओं के कारण उनकी गति अव्यवस्थित (chaotic) और बदलती रहती है।
- वर्मलाइक माइसेलर फ्लुइड्स एक प्रकार के जटिल तरल पदार्थ हैं, जो सर्फ़ैक्टेंट अणुओं के स्वयं-संगठन से बनने वाली लंबी, लचीली और बेलनाकार संरचनाओं (micelles) से मिलकर बनते हैं।
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वैज्ञानिकों के मुख्य अवलोकन:
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- रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रयोगात्मक सेटअप तैयार किया, जिसमें उन्होंने एक रिओमीटर के भीतर सुई जैसी पतली प्रोब को दो सिलेंडरों के बीच तरल के अंदर आगे बढ़ाया। इस व्यवस्था से वे प्रोब पर लगने वाले बल को माप सके और तरल के भीतर बनने वाली संरचनाओं को वास्तविक समय में देख पाए।
- कम गति पर प्रोब पर लगने वाला बल सामान्य तरल की तरह स्थिर बना रहा। लेकिन जैसे ही गति बढ़ाई गई, बल धीरे-धीरे बढ़ा और फिर अचानक गिर गया, जिससे एक “सॉ-टूथ” (आरी जैसी दाँतेदार) पैटर्न उत्पन्न हुआ।
- प्राप्त छवियों से स्पष्ट हुआ कि यह व्यवहार इसलिए होता है क्योंकि प्रोब के पीछे एक पूँछ जैसी संरचना बनती है और फिर अचानक टूट जाती है, बिल्कुल वैसे ही जैसे खिंची हुई रबर बैंड अचानक छोड़ दी जाए।
- रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रयोगात्मक सेटअप तैयार किया, जिसमें उन्होंने एक रिओमीटर के भीतर सुई जैसी पतली प्रोब को दो सिलेंडरों के बीच तरल के अंदर आगे बढ़ाया। इस व्यवस्था से वे प्रोब पर लगने वाले बल को माप सके और तरल के भीतर बनने वाली संरचनाओं को वास्तविक समय में देख पाए।
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टर्मिनल वेलोसिटी क्या होती है?
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- टर्मिनल वेलोसिटी वह अधिकतम स्थिर गति है, जिस पर किसी वस्तु के गिरते समय गुरुत्वाकर्षण का बल तथा तरल (जैसे हवा या पानी) द्वारा उत्पन्न द्रव प्रतिरोध (ड्रैग) और उछाल (buoyancy) बल से पूरी तरह संतुलित हो जाता है।
- इस संतुलन के बाद वस्तु पर लगने वाला शुद्ध बल शून्य हो जाता है, जिसके कारण वस्तु आगे और तीव्र नहीं होती तथा एक निश्चित, स्थिर गति से ही गिरती रहती है।
- टर्मिनल वेलोसिटी वह अधिकतम स्थिर गति है, जिस पर किसी वस्तु के गिरते समय गुरुत्वाकर्षण का बल तथा तरल (जैसे हवा या पानी) द्वारा उत्पन्न द्रव प्रतिरोध (ड्रैग) और उछाल (buoyancy) बल से पूरी तरह संतुलित हो जाता है।
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निष्कर्ष:
यह शोध जटिल सामग्रियों की यांत्रिकी को विभिन्न स्तरों पर समझने का एक सशक्त और विश्वसनीय तरीका उपलब्ध कराता है। छोटे प्रोब तरल में कैसे गति करते हैं, इसे समझकर वैज्ञानिक तेल उद्योग में उपयोग होने वाले सर्फ़ैक्टेंट, कॉस्मेटिक उत्पादों, जेल और पॉलीमर सॉल्यूशनों को अधिक प्रभावी ढंग से डिज़ाइन और ऑप्टिमाइज़ कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त, यह प्रयोगात्मक सेटअप इतना लचीला है कि इसमें अलग-अलग आकार के प्रोब का उपयोग कर कई प्रकार की सामग्रियों के व्यवहार का अध्ययन करना संभव हो जाता है।
