संदर्भ:
हाल ही में पुणे स्थित राष्ट्रीय वायरोलॉजी संस्थान (NIV) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि एंटीवायरल दवा फेविपिराविर (Favipiravir) ने प्री-क्लिनिकल परीक्षणों में चांदीपुरा वायरस के खिलाफ प्रभावशाली सुरक्षा प्रदान की है।
चांदीपुरा वायरस के बारे में:
चांदीपुरा वायरस (CHPV) एक उभरता हुआ एंसेफेलाइटिक वायरस है, जो दिमागी बुखार का कारण बनता है और मुख्य रूप से मध्य भारत में पाया जाता है। इसकी पहचान सबसे पहले 1965 में महाराष्ट्र में बुखार से पीड़ित कुछ मरीजों में की गई थी।
- यह वायरस रैबडोविरिडी (Rhabdoviridae) परिवार से संबंधित है और माना जाता है कि इसका प्रसार बालू मक्खियों (sand flies) जैसे कीटों के जरिए होता है।
- यह खासकर 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। इसके लक्षणों में तेज बुखार, दौरे (झटके) और गंभीर मामलों में दिमागी सूजन (एंसेफेलाइटिस), कोमा और मृत्यु शामिल हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चांदीपुरा वायरस के हालिया प्रकोप को पिछले दो दशकों का सबसे बड़ा मामला बताया है। अब तक 64 मामलों की पुष्टि हुई है, जिनमें से 61 मामले गुजरात से और बाकी महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों से सामने आए हैं।
इससे पहले, 2003 में तत्कालीन आंध्र प्रदेश में एक बड़ा प्रकोप हुआ था, जिसमें 300 से अधिक बच्चे संक्रमित हुए और मृत्यु दर 50% से अधिक रही।
2003 से 2007 के बीच महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्र, तेलंगाना और गुजरात में भी इस वायरस के कई मामले सामने आए।
तब से अब तक इन क्षेत्रों में कुछ मामले आते रहे हैं, लेकिन 2024 में फिर से फैला प्रकोप इसे एक गंभीर और पुनः उभरता खतरा बना रहा है।
फेविपिराविर के बारे में:
· फेविपिराविर एक एंटीवायरल दवा है, जिसका उपयोग आमतौर पर इन्फ्लुएंजा वायरस के इलाज में किया जाता है। जापान में इसे नए प्रकार के इन्फ्लुएंजा संक्रमण के उपचार के लिए अनुमोदित किया जा चुका है। अब यह दवा चांदीपुरा वायरस के खिलाफ एक नई आशा के रूप में उभर कर सामने आई है।
· चूहों पर किए गए प्रयोगों में यह देखा गया है कि फेविपिराविर वायरस की मात्रा को कम करने और मृत्यु दर घटाने में प्रभावी साबित हो रही है।
रोकथाम और सार्वजनिक स्वास्थ्य उपाय:
- वर्तमान में चांदीपुरा वायरस (CHPV) के इलाज के लिए कोई विशेष एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है। मरीजों का उपचार केवल लक्षणों के आधार पर किया जाता है, और चिकित्सा प्रबंधन मुख्य रूप से सहायक देखभाल तक सीमित है।
- इस स्थिति में फेविपिराविर की संभावित दवा के रूप में पहचान लक्षित (targeted) उपचार की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रगति मानी जा रही है। इसके साथ ही, वैज्ञानिक CHPV के खिलाफ एक टीका (वैक्सीन) विकसित करने के प्रयास में भी जुटे हैं।
- चूंकि यह वायरस विशेष रूप से बच्चों के लिए अत्यधिक घातक साबित होता है और न ही इसके लिए कोई प्रभावी इलाज या टीका उपलब्ध है, ऐसे में वैक्सीन विकास को दीर्घकालिक समाधान के रूप में देखा जा रहा है।
- वर्तमान में, उपलब्ध निवारक रणनीतियों में केवल वेक्टर नियंत्रण, बेहतर स्वच्छता और सार्वजनिक जागरूकता शामिल हैं।
- बालू मक्खियों से यह वायरस फैलने की संभावना है, इसलिए इनकी आबादी को नियंत्रित करने, कीटनाशकों का उपयोग करने और स्थानीय लोगों को जागरूक करने की सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीति आवश्यक है।
निष्कर्ष:
चांदीपुरा वायरस का पुनः उभरना इस बात की याद दिलाता है कि भारत में अब भी कुछ कम चर्चित लेकिन अत्यंत घातक वायरस सक्रिय हैं, जो गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट बन सकते हैं। हालांकि फिलहाल यह वायरस कुछ सीमित क्षेत्रों तक ही फैला है, लेकिन बच्चों में इसकी अत्यधिक मृत्यु दर के कारण इसे नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। फेविपिराविर की प्रभावशीलता और टीका विकास की दिशा में हो रहे प्रयास इस उपेक्षित वायरस के खिलाफ लड़ाई में नई उम्मीद जगा रहे हैं।