सन्दर्भ:
"प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति ने आगामी जनगणना में जातिगत आंकड़ों को शामिल करने की मंजूरी दी है।"
जाति जनगणना के बारे में:
"जाति जनगणना का तात्पर्य “सरकार द्वारा देश की जनसंख्या की जातिगत पहचान से संबंधित जानकारी एकत्रित करना” है। भारत के संदर्भ में यह विषय अत्यंत महत्वपूर्ण और कई बार विवादास्पद भी रहा है, क्योंकि यहां जाति व्यवस्था न केवल सामाजिक ढांचे का हिस्सा है, बल्कि यह आर्थिक अवसरों, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सरकारी नीतियों को भी गहराई से प्रभावित करती है।
भारत में जाति जनगणना से जुड़े मुख्य बिंदु:
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
· भारत में व्यापक तरीके से अंतिम जाति जनगणना 1931 में ब्रिटिश शासन के दौरान की गई थी।
· आज़ादी के बाद की जनगणनाओं (जैसे 2011 की जनगणना) में केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आंकड़े जुटाए गए, जबकि अन्य जातियों से संबंधित जानकारी नहीं ली गई।
2. सामाजिक-आर्थिक और जाति जनगणना (SECC) 2011:
· यह 2011 की जनगणना के साथ एक अलग प्रक्रिया के रूप में की गई थी, जिसमें सामाजिक-आर्थिक स्थिति और जाति से संबंधित आंकड़े एकत्र किए गए।
· इस प्रक्रिया में ग्रामीण और शहरी परिवारों की आय, पेशा, शिक्षा और जातिगत विवरण शामिल था।
· हालांकि, इस जनगणना में जाति से संबंधित डाटा आज तक पूरी तरह से सार्वजनिक नहीं किया गया, क्योंकि इसकी गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर सवाल उठे थे।
3. हाल की घटनाएं:
· 2021 में केंद्र सरकार ने संसद में यह घोषणा की थी कि वह 2021 की जनगणना में (SC/ST को छोड़कर) जाति से संबंधित जानकारी नहीं जुटाएगी।
· 2022-2023 में बिहार सरकार ने अपनी स्वतंत्र जाति आधारित जनगणना कराई और 2023 में इसके आंकड़े जारी किए।
· इस आंकलन में सामने आया कि राज्य की आबादी में ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) और ईबीसी (आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग) की हिस्सेदारी 60% से अधिक है।
· इसके बाद अन्य राज्यों से भी इसी तरह की मांगें उठने लगीं और आरक्षण तथा सामाजिक न्याय को लेकर बहस फिर से तेज हो गई।
पक्ष और विपक्ष में तर्क:
पक्ष में तर्क:
o यह समय के अनुसार अद्यतन डेटा प्रदान करेगा, जिससे कल्याणकारी योजनाओं को अधिक प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा।
o सटीक और ताजे जनसंख्या आंकड़ों के आधार पर नीतियों का निर्माण करना सरल होगा।
o आरक्षण जैसी सकारात्मक कार्रवाई को वर्तमान जातिगत संरचना के अनुसार और प्रभावी ढंग से लागू किया जा सकेगा।
विपक्ष में तर्क:
o इससे जातिगत पहचान और अधिक मजबूत हो सकती है, जिससे समाज में पहले से मौजूद विभाजन और गहरा हो सकता है।
o डेटा का दुरुपयोग राजनीतिक लाभ लेने या साम्प्रदायिक तनाव भड़काने के लिए किया जा सकता है।
o इस प्रक्रिया का संचालन जटिल है और प्रशासनिक दृष्टिकोण से यह एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
भारत में जनगणना का संवैधानिक आधार:
• भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची में जनगणना को संघ सूची में शामिल किया गया है।
• जनगणना की प्रक्रिया ‘जनगणना अधिनियम, 1948’ के तहत होती है।