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Blog / 26 Dec 2025

ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी (BoPS)

संदर्भ:

हाल ही में केंद्र सरकार ने मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 2025 के अंतर्गत ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी (BoPS) को एक वैधानिक निकाय के रूप में गठित किया है। यह कदम भारत की समुद्री सुरक्षा से जुड़ी शासन व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण संस्थागत सुधार को दर्शाता है, जिसका उद्देश्य बंदरगाहों और समुद्री अवसंरचना की सुरक्षा को अधिक संगठित, प्रभावी और समन्वित बनाना है।

समर्पित पोर्ट सुरक्षा प्राधिकरण की आवश्यकता:

      • पूर्व में भारत में बंदरगाह और तटीय सुरक्षा की जिम्मेदारियाँ भारतीय नौसेना, भारतीय तटरक्षक बल, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, राज्य समुद्री पुलिस तथा बंदरगाह प्राधिकरण जैसी अनेक एजेंसियों में विभाजित थीं।
      • यह बहु-एजेंसी व्यवस्था संचालन की दृष्टि से सक्षम थी, किंतु किसी एक केंद्रीय वैधानिक नियामक के अभाव में समन्वय की कमी, अधिकार क्षेत्रों का अतिव्यापन तथा सुरक्षा मानकों के असमान क्रियान्वयन जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही थीं। इन्हीं चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी की स्थापना एक नोडल नियामक प्राधिकरण के रूप में की, जो नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो के समान भूमिका निभाते हुए पोर्ट सुरक्षा को एकीकृत, मानकीकृत और अधिक प्रभावी बनाने का कार्य करता है।

ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी के बारे में:

      • ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी की स्थापना मर्चेंट शिपिंग अधिनियम, 2025 की धारा 13 के अंतर्गत की गई है तथा इसका प्रशासनिक नियंत्रण पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अधीन है। इसकी प्रकृति नियामक एवं पर्यवेक्षणात्मक है और यह एक गैर-संचालनात्मक संस्था के रूप में प्रमुख एवं गैर-प्रमुख बंदरगाहों, जहाज़ों तथा समुद्री अवसंरचना पर लागू होती है।
      • BoPS का मुख्य उद्देश्य नीति निर्माण, सुरक्षा मानकों का निर्धारण, अनुपालन सुनिश्चित करना, विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय तथा निगरानी करना है, जबकि फील्ड-स्तरीय सुरक्षा की जिम्मेदारी संबंधित संचालन एजेंसियाँ निभाती हैं। यह पारंपरिक एवं उभरते समुद्री खतरों जैसे समुद्री आतंकवाद, तस्करी, अवैध प्रवासन, समुद्री डकैती, अवैध शिकार तथा बंदरगाह-संबंधी संगठित अपराधों से निपटने पर केंद्रित है। साथ ही, आधुनिक बंदरगाहों की डिजिटल निर्भरता को देखते हुए, BoPS राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा एजेंसियों के सहयोग से बंदरगाहों की सूचना एवं परिचालन प्रौद्योगिकी प्रणालियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।

अंतरराष्ट्रीय दायित्व:

ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी (BoPS) यह सुनिश्चित करता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय जहाज़ और बंदरगाह सुविधा सुरक्षा संहिताका अनुपालन करे, जो अंतरराष्ट्रीय समुद्री व्यापार से जुड़े बंदरगाहों और जहाज़ों के लिए न्यूनतम वैश्विक सुरक्षा मानक निर्धारित करता है।

पोर्ट सुरक्षा में CISF की भूमिका:

      • पोर्ट सुरक्षा के संदर्भ में, BoPS ढाँचे के अंतर्गतकेंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल  को एक मान्यता-प्राप्त सुरक्षा संगठन के रूप में नामित किया गया है। इसके तहत CISF की प्रमुख जिम्मेदारियों में मानकीकृत पोर्ट सुरक्षा योजनाओं का निर्माण, सुरक्षा आकलन करना तथा बंदरगाहों पर तैनात निजी सुरक्षा एजेंसियों को प्रशिक्षण देना शामिल है।

CISF की प्रमुख जिम्मेदारियाँ:

      • मानकीकृत पोर्ट सुरक्षा योजनाओं का निर्माण
      • सुरक्षा आकलन करना
      • बंदरगाहों पर तैनात निजी सुरक्षा एजेंसियों को प्रशिक्षण देना

रणनीतिक महत्व:

      • रणनीतिक महत्व की दृष्टि से, BoPS की स्थापना मैरीटाइम इंडिया विजन 2030 के अनुरूप है। यह विश्व-स्तरीय बंदरगाह अवसंरचना के विकास, हरित और दक्ष शिपिंग को बढ़ावा देने, सुरक्षित समुद्री व्यापार मार्ग सुनिश्चित करने तथा इंडो-पैसिफिक समुद्री सुरक्षा ढाँचे में भारत की भूमिका को सुदृढ़ करने से संबंधित लक्ष्यों के साथ संरेखित है।

भारत का समुद्री और तटीय परिदृश्य:

    • भारत का समुद्री और तटीय परिदृश्य इस संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि देश की तटरेखा 11,000 किलोमीटर से अधिक है, जिससे समुद्री सुरक्षा रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत आवश्यक हो जाती है। वर्ष 2025 तक भारत में केंद्र सरकार के अधीन 12 प्रमुख बंदरगाह हैं, जबकि 217 गैर-प्रमुख बंदरगाह मौजूद हैं, जिनमें से 66 बंदरगाहों पर कार्गो संचालन होता है। प्रमुख बंदरगाह भारत के कुल समुद्री कार्गो यातायात का 50 प्रतिशत से अधिक संभालते हैं।

निष्कर्ष :

ब्यूरो ऑफ पोर्ट सिक्योरिटी की स्थापना भारत की समुद्री सुरक्षा शासन व्यवस्था को संस्थागत, समन्वित और भविष्य-उन्मुख बनाने की दिशा में एक निर्णायक कदम है। एक केंद्रीय नियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य करते हुए, BoPS भारत की बढ़ती समुद्री अवसंरचना को पारंपरिक एवं उभरते खतरों से सुरक्षित रखने की क्षमता को मजबूत करता है। हालाँकि, इसकी वास्तविक प्रभावशीलता सहकारी संघवाद , उन्नत तकनीकी एकीकरण तथा संचालन एजेंसियों के साथ निर्बाध समन्वय पर निर्भर करेगी।