संदर्भ:
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर आगामी ब्रिक्स (BRICS) नेताओं के वर्चुअल शिखर सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। इस बैठक की अध्यक्षता ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा करेंगे। इसका मुख्य उद्देश्य अमेरिका द्वारा हाल ही में लगाए गए एकतरफा टैरिफ वृद्धि के प्रभावों पर विचार करना और उसके लिए बहुपक्षीय समाधान तलाशना है।
अमेरिकी शुल्क और वैश्विक व्यापार:
- 6 अगस्त, 2025 को अमेरिका ने ब्रिक्स देशों पर भारी टैरिफ लगाया:
- भारत और ब्राज़ील : 50%
- चीन और दक्षिण अफ्रीका : 30%
- इंडोनेशिया : 19% (प्रमुख निर्यातों के लिए छूट के साथ)
- रूस और ईरान : 10%
- इन टैरिफों ने वैश्विक दक्षिण में एकतरफावाद , व्यापार असमानता और बहुपक्षीय व्यापार मानदंडों के क्षरण के संबंध में चिंताएं उत्पन्न कर दी हैं।
यह शिखर सम्मेलन क्यों महत्वपूर्ण है?
• यह बैठक दर्शाती है कि ब्रिक्स पश्चिमी देशों के व्यापारिक प्रभुत्व का संयुक्त रूप से विरोध करने के मामले में राजनीतिक रूप से और अधिक संगठित हो रहा है।
• यह दक्षिण-दक्षिण सहयोग (South-South Cooperation) को नई मजबूती देता है और संकेत करता है कि उभरती अर्थव्यवस्थाएँ मिलकर वैश्विक आर्थिक ढांचे को बदलने के लिए संगठित प्रयास कर रही हैं।
• भारत के लिए यह कूटनीतिक संतुलन साधने का अवसर है, एक ओर वैश्विक दक्षिण में नेतृत्व स्थापित करना और दूसरी ओर पश्चिमी देशों के साथ रणनीतिक संबंध बनाए रखना।
ब्रिक्स के बारे में:
• ब्रिक्स की शुरुआत वर्ष 2001 में BRIC (ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन) के रूप में हुई थी। 2010 में दक्षिण अफ्रीका के जुड़ने के बाद यह BRICS कहलाने लगा।
• वर्ष 2024–25 में इसका विस्तार होकर BRICS+ बना, जिसमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और इंडोनेशिया को शामिल किया गया। इस विस्तार ने यह स्पष्ट कर दिया कि ब्रिक्स का उद्देश्य केवल एक आर्थिक समूह बनना नहीं है, बल्कि व्यापक "वैश्विक दक्षिण गठबंधन" बनने की महत्वाकांक्षा रखता है।
ब्रिक्स का बढ़ता महत्व:
• ब्रिक्स विश्व की लगभग 35% जीडीपी और 46% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करता है।
• अनुमान है कि 2024 से 2029 के बीच वैश्विक जीडीपी वृद्धि में इसका योगदान लगभग 58% रहेगा।
• यह समूह विश्व के करीब 44% कच्चे तेल उत्पादन पर नियंत्रण रखता है।
• ब्रिक्स न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) और कंटिजेंट रिज़र्व अरेंजमेंट (CRA) का संचालन करता है, जिन्हें पश्चिमी वित्तीय संस्थानों के विकल्प के रूप में देखा जाता है।
• यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक में सुधार का लगातार समर्थन करता है।
चुनौतियाँ:
ब्रिक्स की एकजुटता बढ़ने के बावजूद, इसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है:
• चीन का प्रभुत्व
• आंतरिक प्रतिद्वंद्विता (जैसे भारत-चीन, ईरान-सऊदी अरब)
• अलग-अलग राजनीतिक व्यवस्था और आर्थिक मॉडल
• सीमित संस्थागत ढाँचा और तालमेल की कमी
निष्कर्ष:
अमेरिकी शुल्कों पर ब्रिक्स का यह वर्चुअल शिखर सम्मेलन वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह केवल व्यापारिक अवरोधों का जवाब नहीं, बल्कि इस बात का संकेत है कि ब्रिक्स अब वैश्विक दक्षिण की सामूहिक आवाज़ बनकर पश्चिमी वर्चस्व को चुनौती देने के लिए तैयार है। भारत की सक्रिय भागीदारी न सिर्फ उभरती अर्थव्यवस्थाओं के साथ उसकी एकजुटता को दर्शाती है, बल्कि यह भी स्पष्ट करती है कि वह वैश्विक व्यापार नियमों को निर्भरता के बजाय कूटनीति और सहयोग के आधार पर नया स्वरूप देने की दिशा में अग्रसर है।