संदर्भ:
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन फ्रांसिस्को (UCSF) के वैज्ञानिकों ने लकवाग्रस्त व्यक्तियों के लिए सहायक तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने एक ऐसा ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) विकसित किया है, जो एक लकवाग्रस्त व्यक्ति को केवल अपने विचारों के माध्यम से एक रोबोटिक भुजा (arm) को नियंत्रित करने में सक्षम बनाता है। यह प्रणाली लगातार सात महीनों तक बहुत कम पुनः समायोजन (री-कैलिब्रेशन) के साथ सफलतापूर्वक कार्य करती रही। इस शोध के परिणाम प्रतिष्ठित शोध पत्रिका Cell में प्रकाशित हुए हैं।
ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) क्या है?
ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) एक ऐसी प्रणाली है जो हमारे मस्तिष्क की गतिविधियों से यह पहचानती है कि हम क्या करना चाहते हैं, जैसे किसी वस्तु को हिलाना, चलाना या किसी उपकरण से जुड़ना। अर्थात, यह तकनीक हमें अपने दिमाग से बिना शारीरिक क्रियावली के किसी डिवाइस को नियंत्रित करने की सुविधा देती है।
यह विशेष रूप से शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के लिए उपयोगी है, क्योंकि जब शरीर से कोई गति संभव नहीं होती, तब यह प्रणाली केवल विचारों के माध्यम से कार्य करने में मदद करती है।
ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस के मुख्य घटक:
1. सिग्नल डिटेक्शन: एक डिवाइस मस्तिष्क से उत्पन्न संकेतों को पहचानती और रिकॉर्ड करती है।
2. सिग्नल प्रोसेसिंग: कंप्यूटर इन संकेतों का विश्लेषण करता है ताकि यह समझ सके कि व्यक्ति का इरादा क्या है।
3. डिवाइस नियंत्रण: इन संकेतों के आधार पर कोई बाहरी डिवाइस या एप्लिकेशन नियंत्रित किया जाता है।
4. फीडबैक लूप: उपयोगकर्ता को यह प्रतिक्रिया मिलती है कि उनके विचार कितनी प्रभावी तरीके से एक्शन में बदलें, जैसे दृश्य, श्रवण या स्पर्श के माध्यम से।
“टेलीपैथी” सिस्टम क्या है?
यह BCI तकनीक का एक उन्नत रूप है, जिसमें अत्यंत पतले धागों (threads) को मस्तिष्क में प्रत्यारोपित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि उपयोगकर्ता केवल अपने विचारों से ही मोबाइल या कंप्यूटर को नियंत्रित कर सके। यह तकनीक विशेष रूप से उस स्थिति में उपयोगी होती है जब मस्तिष्क और शरीर के बीच का संचार टूट जाता है।
UCSF की BCI प्रणाली कैसे काम करती है?
· इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक ऐसे व्यक्ति पर शोध किया जो स्ट्रोक के कारण बोलने और शरीर को गतिशील बनाने में असमर्थ था। वैज्ञानिकों ने उसके मस्तिष्क की सतह पर छोटे-छोटे सेंसर लगाए, जो मस्तिष्क के उस हिस्से की गतिविधि को रिकॉर्ड करते हैं जो गति (मूवमेंट) से संबंधित होता है।
· जब कोई व्यक्ति किसी अंग, जैसे उंगलियों या अंगूठे को हिलाने की कल्पना करता था, तो ये सेंसर मस्तिष्क में उस समय उत्पन्न होने वाली गतिविधियों को दर्ज कर लेते थे।
· शोध के दौरान यह पाया गया कि मस्तिष्क में इन गतिविधियों के पैटर्न प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा बदलते रहते हैं, जिससे BCI प्रणाली अस्थिर हो सकती है। UCSF की टीम ने मशीन लर्निंग एल्गोरिदम की मदद से इन प्रतिदिन होने वाले बदलावों को समझा और प्रणाली को उसी के अनुसार ढाल दिया। इसी कारण यह सिस्टम सात महीनों तक स्थिर और प्रभावी रूप से कार्य करता रहा।
ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक के उपयोग:
1. शारीरिक अक्षमता और उम्र बढ़ने में मदद: BCI कृत्रिम अंगों को नियंत्रित करने में मदद करता है और बुज़ुर्गों को उनकी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं को बनाए रखने में सहारा देता है।
2. चिकित्सा उपचार: यह तकनीक पार्किंसन रोग, मिर्गी, रीढ़ की चोट और बोलने में अक्षम लोगों की मदद कर सकती है।
3. दिमागी शोध और भावनाओं की पहचान: BCI मस्तिष्क की गतिविधियों को समझने में मदद करता है और कोमा या बेहोशी की स्थिति में भावनाओं और चेतना का पता लगाने में सहायक रहा है।
निष्कर्ष:
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सैन फ्रांसिस्को (UCSF) की यह सफलता ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस तकनीक को अधिक स्थिर, प्रभावी और लंबे समय तक टिकाऊ बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। इसने यह दिखाया है कि अगर मस्तिष्क के संकेतों में होने वाले बदलावों को समझकर उन्हें संभाला जाए, तो हम एक दिन ऐसे सिस्टम बना सकते हैं जो लकवाग्रस्त लोगों को केवल सोचकर अपने आसपास की चीजों को नियंत्रित करने में सक्षम बना सकें।